1974 छात्र आंदोलन के लंबे समय बाद देश को प्रशांत किशोर के रूप में  एक नई शक्ति मिली।

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  • विहार मे प्रशांत किशोर की पदयात्रा का दिखने लगा असर
  • जनता होने लगी है लामबंद, बढ़ी सियासी दलों की बेचैनी
अशोक वर्मा
मोतिहारी : जन सुराज के संस्थापक और पदयात्रा के सूत्रधार प्रशांत किशोर की पदयात्रा उत्तर बिहार के दस जिलों में पूरी हो गई है और ग्यारहवें जिला मधुबनी के गांवों में  जारी है।यात्रा के दौरान अब तक इन जिलों के 32 अनुमणडलों,188 प्रखण्डों और 87 विधानसभा क्षेत्रों के करीब 4200 गांवों की पदयात्रा कर जनता से सीधे जुड़कर उनकी समस्याओं को समझे  हैं। जनता से ऐसा सीधा संवाद और संपर्क अबतक के इतिहास की पहली घटना है। उक्त बातें आज जन सुराज के मोतिहारी कार्यालय में आयोजित दीपोत्सव मिलन समारोह में पत्रकारों से बातचीत करते हुए जिला मुख्य प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी रवीश मिश्रा ने कही। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर की इस पदयात्रा ने जहां एक ओर ग्रामीणों और आम नागरिकों को मोहित कर लिया है वहीं राजनीतिक दलों में हलचल पैदा कर दी है। पहले से स्थापित राजनीतिक दलों के नेताओं की पेशानियों पर बल आने लगे हैं।‌ दर असल प्रशांत किशोर गांव गांव पैदल-पैदल गये, लोगों से भेंट की, उनकी समस्याओं को सुना, उनकी स्थितियों का जायजा लिया और उनकी इस बदहाली के लिए नेताओं के अलावा मतदाताओं को भी  जिम्मेदार बताया। इस दौरान प्रशांत किशोर सभाएं भी करते जहां लोगों को पूरी साफगोई से दो टूक बातें करते और खरी- खोटी भी खूब सुनाते। वे ग्रामीणों को बताते चले कि आपकी इस दुर्दशा के लिए नेताओं और राजनीतिक दलों से ज्यादा आप आम जनता खुद जिम्मेदार है। वे इस बात को समझाने में सफल भी हुए हैं कि लोग बिहार में पांच वर्ष तक सरकार और नेताओं की जमकर आलोचना करते हैं। चाय की दूकान पर,खेत -खलिहान में, चौक – चौराहों पर,हाट बाजार में जहां कहीं पांच बिहारी बैठ जाएं वहां गलचौरी करते रहते हैं। मोदी जी का छप्पन ईंच का सीना, अमेरिका, चीन सब दिखाई देता है बिहारियों को परन्तु अपने बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही, शिक्षा व्यवस्था चौपट है,खाने बगैर अपने बच्चों का सीना सिकुड़ता जा रहा है,पैर में चप्पल नहीं है,शरीर पर ढंग का कपड़ा नहीं है। यह सब कुछ नहीं दिखाई देता है। प्रशांत किशोर लोगों को बताते चल रहे हैं कि पांच साल तक सांसद,विधायक और बिहार की सरकार को गालियां देने से आप सभी नहीं थकते हैं। स्कूल नहीं है, पढ़ाई नहीं है, पिलुआ वाली खिचड़ी खिलाकर गरीबों के बच्चों को समान शिक्षा के नाम पर मूर्ख और वेवकूफ बनाया जा रहा है, सड़कें टूटी हुई है, नालें ध्वस्त हैं और उन बजबजाती नालियों से निकल रही बदबू बीमारियां फैला रही है,खेत में सिंचाई नहीं है, रोजगार का उपाय नहीं है, कोई कल- कारखाना नहीं है, रोज़ी -रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में जाने को मजबूर हैं। ये सारी शिकायतें गांव के लोग रोज की बैठकों में करते तो है लेकिन जब वोट का समय आता है तब आप लोग इस सभी बातों को भूल जाते हैं। वोट देने के दिन जात और धर्म सामने आ जाता है। कोई जात के नाम पर तो कोई धर्म के नाम पर उसी को वोट करने लगते हैं जिसे रोज़ गालियां देते रहते हैं। आखिर कब तक सुधरेंगे हम सभी? कब अपने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए वोट करने जाएंगे?कोई लालू जी के जंगल राज के डर से भाजपा को तो मुसलमान भाई भाजपा के डर से राजद को वोट कर रहे हैं। प्रशांत किशोर गांवों के लोगों से जब पूछते हैं कि आप  अपने बच्चों का मुंह देख कर बताएं कि आपने कभी शिक्षा के नाम पर, रोजगार के नाम पर, बिहार के विकास के नाम पर,कल कारखाना खोलने के नाम पर कभी वोट दिया है क्या?  तब सभी चुप हो जाते हैं। चंपारण से सीतामढ़ी जिले तक की चार हजार दो सौ से अधिक गांवों की संपन्न हुई इस पदयात्रा में किसी भी गांव अथवा सभा में इस प्रश्न का किसी ने भी उत्तर नहीं दिया। सच है कि लोगों ने कभी अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए वोट किया ही नहीं है। प्रशांत किशोर घूम – घूम कर यहीं समझा रहे हैं कि अब सुधरिए। जात के नाम पर लालू – नीतीश को और धर्म मजहब के नाम पर भाजपा को वोट मत दीजिए। इनको आप जात और धर्म के नाम पर वोट दे देते हैं और ये सभी सरकार बनाकर आपके खून पसीने की गाढ़ी कमाई को गद्दी पर बैठकर लूटते हैं। अपने और अपने बच्चों को हेलिकॉप्टर पर घूमाते है, मंत्री बनाते हैं। जात वाले को और धर्म वाले को क्या मिलता है? फटेहाली,बेकारी, अशिक्षा, बेरोज़गारी और पलायन। बस इससे अधिक कुछ भी नहीं। प्रशांत किशोर के इस अभियान का ग्रामीणों में भरपूर असर दिखाई देने लगा है और लोग लामबंद होने लगे हैं। लोगों को उनकी बातें समझ में आने लगी है। लोग कहते है कि इतनी साफ-साफ और खरी – खरी बातें आज तक किसी नेता ने नहीं समझायी। लोगों की नजर में प्रशांत साधु दिखने लगे हैं और इन्हें दूसरा गांधी भी बताया जाने लगा है। जिस तरह महात्मा गांधी ने हिन्दू – मुसलमान, गरीब-  अमीर, किसान – मजदूर सभी को लामबंद किया तब अंग्रेजी सरकार के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन खड़ा हुआ और देश आजाद हुआ। ठीक आज भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्टाचार में लिप्त प्रशासन, और लकवाग्रस्त हो चुकी सरकारी व्यवस्था से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। उससे निजात दिलाने प्रशांत किशोर के रूप में फिर से एक दूसरा गांधी इस युग में जन्म लिया है जो बिहार की बौराई और भ्रष्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने और व्यवस्था परिवर्तन कर एक काबिल शासन तंत्र स्थापित करने हेतु जन सुराज के लिए गांव – गांव पैदल-पैदल चल कर लोगों को लामबंद कर रहे है। लोगों को लोकतंत्र का पाठ पढ़ा रहा है और उनके सोये हुए ज़मीर को जगा रहे है।
प्रशांत किशोर के इस अभियान का असर जैसे – जैसे बढ़ता हुआ दिखाई देने लगा है वैसे वैसे भाजपा, राजद-जदयू, कांग्रेस समेत सभी छोटे बड़े जातिवादी और धर्मवादी राजनीतिक दलों के नेताओं के पसीने छूटने लगे हैं। राजधानी में हलचल मची हुई है। नेता विश्लेषण करने लगे हैं और उन्हें मालूम है कि पिछले वर्ष सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से एक निर्दलीय प्रत्याशी अफाक अहमद को जन सुराज का समर्थन देकर प्रशांत किशोर ने कैसे सभी मठाधीशों को धूल चटाया है। प्रशांत किशोर का यह बयान भी आजकल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है जिसमें उन्होंने मधुबनी की एक सभा में कहा है कि *मैं सिर्फ चुनाव लड़ाने नहीं बिहार जीतने आया हूं।* *अभी तक कोई चुनाव नहीं हारा हूं और जिस नेता – दल का हाथ पकड़ा उसे सिंहासन पर बैठा दिया। अब बिहार की जनता का हाथ थामे है उसे भी हारने नहीं दूंगा,जीता कर ही दम लेंगे। जनता का सुन्दर राज बिहार में स्थापित होगा और हमारा खोया हुआ सम्मान पूर्ण अतीत फिर से वर्तमान बनेगा।* जरुरत है कि जनता जातिवादी और धर्मवादी राजनीति से ऊपर उठकर बिहार और बिहारियों की तकदीर और तस्वीर बदलने के लिए वोट करें और जनता के सुन्दर राज की परिकल्पना को साकार करें।
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