ब्रह्मा के काया से  उत्पत्ति हुई थी  चित्रगुप्त भगवान की : विनय बर्मा

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अशोक वर्मा
मोतिहारी : यम द्वितीया के दिन कलमकारों के देवता श्री चित्रगुप्त भगवान की पूजा  कायस्थ जाति के लोग बड़े ही धूमधाम भक्ति भाव और श्रद्धा से  करते हैं।
पूजा के दिन श्री चित्रगुप्त मंदिर में  सामूहिक रूप से चित्रगुप्त  परिवार के लोग पूजा करते हैं ।कलम दवात कागज लेकर  विधि संवत पूजा कर अन्न जल ग्रहण करते हैं ।बहुत से चित्रगुप्त  परिवार के लोग अपने- अपने घरो पर परिवार के सदस्यों के साथ पूजा करते हैं। चित्रगुप्त  परिवार के जिला अध्यक्ष एवं पूर्व प्राचार्य  विनय वर्मा ने  शास्त्रों में वर्णित कथा के आधार पर चित्रगुप्त पूजा के महत्व एवं इतिहास के बारे में बताया कि  लंबे समय तक तपस्या मे लीन रहे ब्रह्मा बाबा के काया से बडे बडे भूजाओं वाले श्याम वरण कमलवत् नेत्र,शंख के तुल्य गरदन, चक्रवर्त मुख्,तेजस्वी, अति बुद्धिमान, हाथ मे कमल और दावात लिए, तेजस्वी, अतिसुंदर, विचित्रांग, स्थिर नेत्र वाले एक पुरुष अव्यक्त  ब्रह्मा के तन से उत्पन्न हुए।समाधी को छोड ब्रह्मा ने उस पुरुष को नीचे से उपर तक देख पूछा आप कौन हो? उसने कहा मैं आपके ही शरीर से उत्पन्न हुआ हूं आप मेरा नामकरण करें और मेरे योग्य कार्य भी बतावें। यह वाक्य सुनाकर ब्रह्मा जी ने उनका नामकरण चित्रगुप्त रखा और दुनिया में ज्ञान तथा शिक्षा फैलाने की जिम्मेदारी दी  वे अपने हाथों से चित्रगुप्त को कलम दवात भेंटकर अंतर ध्यान हो गए ।
ब्रह्मा द्वारा नामकरण एवं कार्य बताए जाने के बाद चित्रगुप्त महाराज दुनिया में ज्ञान  एवं शिक्षा  आदि का प्रसार  किया। उनको वंश वृद्धि हुई जो गौड,माथुर,भटनागर,सेनक,अहिगण,श्रीवास्तव,अंबसठ तथा करण हुए। श्री वर्मा ने कहा कि चित्रगुप्त भगवान के कारण ही  पूरा विश्व ज्ञान प्रकाशमय हुआ तथा भारत विश्व गुरु कहलाया। विधि विधान से जो लोग भी उनकी पूजा करते हैं उन्हें ज्ञान की अपारशक्ति प्राप्त होती है।
ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र प्रभारी बीके वीभा बहन ने चित्रगुप्त पूजा के आधयात्मिक रहस्य पर कहा कि नई सृष्टि की रचना के बाद सृष्टि को गति देने के लिए ब्रह्मा बाबा ने शक्ति सवरूपा दुर्गा, धन दाता लक्ष्मी,और विद्या दाता सरस्वती की रचना की। उसी कडी मे दुनिया मे ज्ञान शिक्षा और पढ़ाई के निमित्त उन्होंने चित्रगुप्त की रचना की। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है जो चित्र गुप्त रहे उसे चित्रगुप्त कहते हैं।सारे सृष्टि का संचालन करने वाला परमात्मा शिव हैं जो गुप्त रहकर अपनी रचना के द्वारा सभी कार्य संपादित करते है,वे अशरीरी, अजनमा है ,और आकृति मे ज्योति बिंदु है। उन्हें  ज्ञान का सागर भी कहते हैं,शिव बाबा ज्ञान के फैला व, प्रसार का दायित्व श्री चित्रगुप्त को दिया।वे अपनी गुप्त निराकरी स्वरूप की  शक्ति चित्रगुप्त को देकर दुनिया में ज्ञान फैलाने की जिम्मेदारी दिये । श्री चित्रगुप्त को परमपिता परमात्मा शिव का ही साकार रूप माना जा सकता  है क्योंकि ज्ञान प्रकाश चित्रगुप्त ही फैलाते हैं। जिस प्रकार ब्रह्मा द्वारा स्थापना विष्णु द्वारा पालना और शंकर द्वारा विनाश का कार्य संपादित होता है। ठीक उसी प्रकार नई सृष्टि मे ज्ञान प्रकाश फैलाने की जवाबदेही शिव बाबा द्वारा चित्रगुप्त देवता को दी जाती है।
चित्रगुप्त महापरिवार के अखिलेश शरण अधिवक्ता ने बताया कि पहले तो शिक्षा एवं कलम दवात की शक्ति सिर्फ कायस्थों तक सीमित थी लेकिन अब वह बात नही रही,तमाम कलम की कमाई कर  जीवन यापन करने वाले हर जाति के लोगों के देवता चित्रगुप्त  महाराज है। विधि विधान से पूजा करने वालों को चित्रगुप्त भगवान वांछित फल देते हैं।
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