अशोक वर्मा
मोतिहारी : बिहार में नित नए-नए कानून बन रहे हैं सरकार बिहार में बढ़ते हिंसा का कारण जमीनी विवाद को मानती है।
विवादों को समाप्त करने के लिए सरकार की ओर से कई कानून बने हैं लेकिन यह दुर्भाग्य है कि कानून जमीन पर नहीं उतर पा रहे है। भाजपा के साथ जब नीतीश कुमार की सरकार थी तो बिहार में एक कानून बना था जिसके तहत मठ मंदिर के जमीन को अतिक्रमण मुक्त करना था, तथा जबरन अवैध कब्जा करने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई करने की घोषणा हुई थी, लेकिन सारी बातें टांय टांय फीस्स हो गई। धार्मिक न्यास बोर्ड भी बिहार में कार्यरत है लेकिन वह सत्ता धारी दल का भोंपू भर है। उससे कोई भी समस्या का निराकरण नहीं हो पा रहा है। जब धार्मिक न्यास बोर्ड के सचिव आई पी एस किशोर कुणाल थे उस समय उन्होंने बड़े ही दम खम से पूरे बिहार में मठ मंदिरों को सुधारने का प्रयास शुरू किया था लेकिन उन्हें भी ठंढा हो जाना पड़ा। हिंसा भड़कने की संभावना थी।विहार मे काफी धर्मपरायण लोगों ने करोड़ो अरबो की जमीन मठ मंदिर को दान दी थी। जैसे-जैसे दानवीरों की मृत्यु होती गई वैसे-वैसे भू माफिया एवं गांव के दबंगों ने जमीन पर कब्जा कर लिया। सरकार और प्रशासन को जानकारी होते हुए भी इस मामले में वे अपने को अक्षम महसूस करते हैं।आज भी काफी मठ उबाऊ और लंबी प्रकृया वाले न्यायीक पेच मे फंसकर रह गया है।
पूर्वी चंपारण में अरेराज का केड़िया धर्मशाला जो दो बिगहा मे है,नगर का वृक्षा स्थान मंदिर ,कई मठ ,सुगौली मंदिर,के साथ अन्य कई मठ मंदिर है जिसके जमीन पर अवैध कब्जा है या बिक्री कर दी गई है।
इसी तरह का एक मामला नगर से सटे हुए पतौरा लाल टोला का है जहां धर्म परायण महिला मुनेश्वरी कुंवर ने 1953 में मुनेश्वरी सीताराम जालंधर शिव पार्वती मंदिर का निर्माण कराया था ।उन्होंने अपनी निजी जमीन चार बीघा 9 कठा 9 धूर मंदिर हेतु दान मे देकर उसपर मंदिर का निर्माण कराया। इतना ही नहीं उन्होंने दान वाली जमीन का ट्रस्ट बना दिया था मंदिर ट्रस्ट के द्वारा संचालित होता था। ट्रषटी मंदिर का संचालन करने के साथ पूजापाठ करते थे। जमीन पर खेती आदि की पुरी जिम्मेदारी पूजारी कपिलदेव तिवारी के जिम्मे दी गई जिसका निर्वाह उन्होंने लगातार किया।
समय के साथ-साथ धीरे-धीरे सभी ट्रस्टी दिवंगत होते गए।कपिलदेव तिवारी के पूत्र और मंदिर के वर्तमान पुजारी दीनानाथ तिवारी के धर्म परायणता एवं सादगी का लाभ उठाकर गांव के दबंग परिवार ने लगभग 30 वर्ष पूर्व मंदिर के तीन बीघा जमीन को जबरन अपने कब्जा में लिया ।उसका उपजा मंदिर में न देकर खूद ले रहा है। पुजारी के बार-बार आग्रह पर भी उसने जमीन नहीं छोड़ी बाद में जमीन पर उसने अपना मालिकपना दावा भी कर दिया। 2006 मे वर्तमान पुजारी दीनानाथ तिवारी ने जिला पदाधिकारी को आवेदन देकर जमीन मुक्त कराने का गुहार किया लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली । वर्षों से जमीन को अतिक्रमणकारियों से छुड़ाने का प्रयास प्रशासन से कर रहे हैं । लगभग तीन दशक से उस दबंग का मंदिर के जमीन पर कब्जा है। इस बीच ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर मंदिर का जिर्णोद्धार किया।कमिटी भी बनी लेकिन जमीन मुक्त नही हो सकी।
वर्तमान पुजारी दिनानाथ तिवारी ने बताया कि ट्रस्टके बंसजो के यहां भी मैंने गुहार लगाई लेकिन कहीं से कुछ भी राहत नही मिली ।आज भी मंदिर की तीन बिगहा जमीन गांव के उक्त दबंग व्यक्ति के जोत आबाद मे है और वह उसका अनाज ले रहा है।
पूर्वी चंपारण मे प्रशासनिक विफलता का यह जीवंत उदाहरण है। सरकार कानून बनाती है लेकिन उसे लागू कराने की जिम्मेदारी धार्मिक,सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र के लोगों की होती है।जिले मे भाजपा विधायकों की संख्या सर्वाधिक है।विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदि काफी मजबूत एवं सक्रिय है।उन्हें मठ मंदिरों की संपत्ति और सुरक्षा की दिशा मे सक्रिय रहना होगा। प्रशासन से काम करना पड़ता है।
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