अशोक वर्मा
मोतिहारी : बिहार के नदियों में मिट्टी का बांध बनाने से नदियों में भयंकर बाढ़ आरती है जिससे किसानों के लाखों करोड़ों एकड़ जमीन में लगे फसल की प्रतिवर्ष क्षति होती हैऔर आम लोगों का जनजीवन खतरे में पड़ जाता है जिसका मुख्य कारण नदियों के दोनों तरफ पक्की दीवाल का बांध नहीं होने के कारण मिट्टी के बांध में चूहा छिद्र कर देता है और बाढ़ आने के वक्त पानी छिद्र से धीरे-धीरे निकलने लगता है, नदियों के पानी छिद्र से निकलने के कारण मिट्टी का बांध धीरे-धीरे टूट जाता है। जिस तरफ बांध टूटता है उस तरफ नदियों का पानी प्रलय रूप धारण करके कई गांवों में किसानो मजदूरो के घर में बाढ़ के पानी प्रवेश कर जाता है जिसके चलते किसानो मजदूरों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और किसानों के फसल भी क्षतिग्रस्त हो जाती है। यह भी कहना है कि बाढ़ का मुख्य कारण यह भी है कि नदियों में जमा मिट्टी बालू की सफाई नहीं होने के कारण बरसात के समय वर्षा के पानी खतरे के निशान से ऊपर बहने लगता है अगर बिहार के तमाम नदियों में जमा बालू मिट्टी को निकाल दिया जाए तो नदियों की गहराई नीचे चली जाएगी जिसके कारण बरसात के समय पानी नदियों के अंदर बहने लगेगा जिससे बांध को बनाने की जरूर भी महसूस नहीं होगी और नदियों के गहराई होने के कारण वर्षा का पानी सीधे नदियों में चला जाएगा तथा नदियों की गहराई होने के कारण बाढ़ आने का मौका नहीं मिलेगा । यह भी सुझाव है कि नदियों के दोनों तरफ पक्का बांध लगाया जाता है तो नदियों के अगल बगल पानी की निकासी तथा पानी प्रवेश आउटलेट बंद करने खोलने का सिस्टम छोड़ना पड़ेगा जिसके चलते नदियों में बाढ़ का पानी बढ़ेगा तो आउटलेट से निकास से पानी छोड़ा जा सकता है तथा नदियों में पानी कम रहने से बरसात का पानी आउटलेट के माध्यम से नदियों में छोड़ना पड़ेगा जिससे नदियों की पानी तथा बरसात के पानी में संतूलन बना रहेगा तथा किसानों के फसल क्षतिग्रस्त होने का संभावना कम हो जाएगी।
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