छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में खाकी वर्दी की एक अलग छाप देखने को मिली. पुलिस की वर्दी और कड़क मिजाज के पीछे एक नरम दिल इंसान भी छिपा होता है. समाज में हालातों के अनुसार खुद को ढालने वाली पुलिस वक्त पड़ने पर अनजान लोगों के लिए रिश्ते निभाने से भी नहीं चूकती है. ऐसे ही कोरबा पुलिस के एक एएसआई ने बेटे की तरह बनकर अनजान अज्ञात वृद्धा के लिए मानवता की एक मिसाल पेश की है.
करीब 65 वर्षीय वृद्धा का शव 21 अगस्त की शाम लगभग दर्री की ओर से आने वाले गर्म पानी के नहर में बहते हुए सर्वमङ्गला नहर तक आया था. वृद्धा के दाएं हाथ और पैर में गोदना गोदाया हुआ है. उसकी पहचान कराने की काफी कोशिश की गई. फिर भी शिनाख्त नहीं हो सकी. न ही किसी लापता वृद्धा की तलाश करते हुए कोई परिजन थाना या पुलिस चौकी पहुंचा.
4 दिन तक रखा रहा शव
अंतिम समय में उसे न तो परिजनों का सहारा मिला और न ही कंधा मिला. 4 दिन से इस अज्ञात वृद्धा का शव जिला अस्पताल की मर्च्युरी में पहचान होने और परिजनों के इंतजार में पड़ा रहा. आखिरकार जब शव खराब होने की स्थिति में पहुंचने लगा तो पुलिस के उच्च अधिकारियों एसपी यू. उदयकिरण को इस मामले की जानकारी दी गई.
बेटे की तरह निभाया फर्ज
इसके बाद उदयकिरण के निर्देश में सर्वमंगला पुलिस सहायता केंद्र के प्रभारी एएसआई विभव तिवारी ने मानवता के नाते अज्ञात वृद्धा के लिए एक बेटे की तरह फर्ज निभाया. उन्होंने शव को यूं ही किसी वाहन में लादकर आसपास ले जाकर दफन कर देने की औपचारिकता नहीं निभाई, बल्कि अर्थी बनवाकर उस पर पुष्पांजलि अर्पित कर कांधा देते हुए अंतिम यात्रा श्मशान घाट तक निकाली. इस तरह उन्होंने सद्गति की प्रार्थना करते हुए वृद्धा को अंतिम विदाई दी.
स्थानीय लोगों ने की पुलिस प्रशासन की प्रशंसा
एएसआई ने सहकर्मी एएसआई प्रकाश रजक, आरक्षक उमेश डडसेना और सुखनंदन टंडन के साथ अज्ञात वृद्धा की अर्थी को कांधा दिया. स्थानीय लोग उसकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए. पुलिस सहायता केंद्र के निकट स्थानीय मुक्तिधाम में विधि-विधान के साथ वृद्धा का अंतिम संस्कार किया गया. जिला पुलिस के इस मानवीय कार्य की जहां स्थानीय लोगों ने प्रशंसा की है. वहीं, एएसआई विभव तिवारी ने कहा कि उन्हें इस तरह के सामाजिक कार्यों की प्रेरणा अपने उच्च अधिकारियों से मिलती रहती है.
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