अशोक वर्मा
मोतिहारी : एक कहावत है दृढ़ इच्छा शक्ति एवं मजबूत इरादा जिसके पास भी है सफलता उसका कदम चूमती है ।इस कहावत को डॉक्टर मोबिन हाशमी ने चरितार्थ किया। मुंशी सिंह महाविद्यालय से बीएससी आनर्स की डिग्री प्राप्त करने वाले डॉक्टर मोबिन हाशमी की यात्रा घोड़ासहन से शुरू हुई क्योंकि वे मूलनिवासी घोड़ा सहन के थे।पढाई के बाद उन्होंने मोतिहारी में अपना निजी व्यवसाय आरंभ किया लेकिन उनके जीवन का लक्ष्य डॉक्टर बनना था और जब केंद्र में आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी तथा तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण ने आयुर्वेदिक डॉक्टर डिग्री बीएएमएस डिग्री को एमबीबीएस के बराबर का दर्जा देकर कैबिनेट में पास किया, उसके बाद मोबीन हाशमी के लिए मंजिल प्राप्त करना आसान हो गया उन्होंने मोतिहारी के आयुर्वेद कॉलेज में अपना एडमिशन कराया तथा पढ़ाई पूरी कर नगर के बैंक रोड में अपना निजी कलीनिक खोली। आरंभ में किराये के कच्चा मकान मे कलीनिक खोली। छप्पर के अंदर उन्होंने प्लास्टिक टांगी ताकि वर्षात का पानी अंदर नहीं चुये।
कलीनिक खोलने के बाद अपनी संवेदनशीलता व्यवहारकुशलता एवं अच्छे ट्रीटमेंट देने के कारण बहुत कम समय में बहुत आगे बढ़ गए। रूलही में चल रहे टासफरका चिकित्सा केंद्र पर भी उन्होंने सेवा दी। कुछ नया कर गुजरने का हिम्मत रखने वाले डॉक्टर मोबिन हाशमी ने नस संबंधित बीमारी जिसमें पोलियो लकवा आदि पर विशेष अनुसंधान किया। इस विषय के देश मे जो भी बड़े-बड़े डॉक्टर निकले थे सभी के चिकित्सा पद्धति को उन्होंने जानने की कोशिश की, संपर्क किया और आयुर्वेद एलोपैथ चिकित्सा के मिश्रण तैयार उन्होंने एक नया तेल निकाला जो पोलियो के बच्चों के लिए रामबाण साबित हुआ। देखते-देखते पोलियो के इलाज में इन्होंने महारत हासिल की उस समय पोलियो पूरी तरह नियंत्रित नहीं हुआ था लेकिन कई बच्चों को इन्होंने अपनी इलाज से ठीक कर दौड़ा भी दिया।
चमत्कारिक लाभ की ख्याति न सिर्फ चंपारण में हुई बल्कि नेपाल में भी उनके नाम की गूंजन गई और वहां से काफी मरीज यहां आने लगे ।बाद के दिनों में लकवा या नस संबंधित बीमारियों के लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टर के रूप में इनकी पहचान बनी। आरंभ में कई स्थापित एलोपैथ के डॉक्टरों ने इनका मजाक भी उडाया लेकिन इन्होंने अपने मंजिल को देखा और सेवा भावना के साथ अपनी सेवा देते रहे ।सेवा के क्षेत्र मे उनके अंदर जो सबसे बड़ी विशेषता थी कि किसी भी मुफ्त मेडिकल शिविर में बुलावा आता तो ये न सिर्फ वहां जाकर चिकित्सा करते थे बल्कि फिजिशियन सैंपल की दवा का स्टॉक जो जाम रहता था सारे दवा को लेकर वहां पहुंचकर मुफ्त वितरण करते थे।शिविर मे इलाज कर पुण्य का भागीदार होते थे। विशेष चिकित्सा सेवा के बारे में जब उनसे पूछा गया कि आपको शक्ति कैसे मिली? उन्होंने कहा कि खुदा का मेरे ऊपर विशेष रहमो करम है। मैं पांचो टाइम नमाज पढ़ता हूं तथा अपनी सेवा को नमाज के रूप में ही लेता हूं। गरीब मरीजो के लिए मेरे यहां कोई फीस नहीं है। भोजन तक की व्यवस्था मै कर देता हूं ।कहा कि चिकित्सा सेवा कार्य कमाई मे एक अंश लोगों के सेवार्थ देना भी है। डॉक्टर मोबिन हाशमी कई बार हज यात्रा भी कर चुके हैं आज उनकी ख्याति अब सिर्फ बिहार नहीं बल्कि देश भर मे है ।बड़े-बड़े सेमिनार में इनकी बुलाहट होती है ।और ये नस संबंधित बीमारी पर अपना शोध पत्र पेश करते हैं जिन्हें देश-विदेश के उपस्थिति डॉक्टर लोग चाव से पढते और सुनते है। आज डॉक्टर मोबिन हाशमी का क्लीनिक औफिस की दिवारे फ्रेम जडीत अवार्ड सर्टिफिकेट से भरे पड़े हैं। एक बड़ा नर्सिंग होम आईसीयू के साथ सारी इमरजेंसी सुविधा से लैस है।कुशल एवं संवेदनशीँल सेवाधारी ट्रेंड स्टाफ है। कभी प्लास्टिक टांगकर सेवा करने वाले डा मोबिन साहब वर्तमान समय बड़े नर्सिंग होम को चला रहे हैं ।आज उनके पुत्र चाइना से न्यूरो सर्जन की डिग्री लेकर नर्सिंग होम में अपनी सेवा दे रहे हैं। व्यस्तता के बावजूद डॉक्टर हाशमी नमाज पढ़ना नहीं छोडते। मस्जिद में जाने का समय अभाव मे कभी कभी अपने क्लीनिक चेंबर में ही जमीन पर बैठ नवाज अदा करते हैं। सभी धर्म के प्रति आदर एवं श्रद्धा रखने वाले मोबिन हाशमी का कहना है कि खुदा गाड तो एक हीं है, इबादत का तरीका अलग-अलग है। सभी धर्म में आपसी प्रेम ,भाईचारा , क्षमा ,दया करूणा , ममता की हीं सीख दी गई है। यही सच्ची इबादत है।
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