- स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी रामऔतार प्रसाद वर्मा
अशोक वर्मा
मोतिहारी : महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए सफल चंपारण सत्याग्रह ने पूरे देश के आंदोलनकारियों को शक्ति दी थी। बापू ने चंपारण में सत्याग्रह आंदोलन चलाकर यहां के भोली भाली जनता किसान,छात्र नौजवान एवं महिलाओं के अंदर दबी हुई आत्मविश्वास की शक्ति को जागृत किया था परिणाम हुआ कि नमक सत्याग्रह में काफी लोग भाग लिए और 1942 मे जब गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया तो काफी संख्या में यहां के नौजवानों ने आंदोलन में अपनी भागीदारी दी और लड़ाई को मंजिल तक पहुंचाने में मदद की। इसी कड़ी में पश्चिम चंपारण के रतन माला सीमा अंतर्गत भगड़वा गांव के मूलनिवासी रामऔतार प्रसाद वर्मा जो सिद्धू लाल के चौथे पुत्र थे, स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था। पिता से बगावत कर वे गोविंदगज थाना अंतर्गत बनाए गए ऋषि दल में शामिल हुए ।उस समय रामषिँ देव ऋषि जी के नेतृत्व में युवकों की एक क्रांतिकारी टोली बनी थी जिसमें चंपारण जिले के कोने कोने से आंदोलनकारी आकर शामिल हुये थे। रामऔतार प्रसाद वर्मा अपने पिता से छुप कर घर छोडकर भागे भागे उस दल में शामिल हुये थे। दल के सदस्यों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते थे । अंग्रेज पुलिस को तबाह करना, सरकारी कार्यालयों पर झंडा फहराना, रेल लाइन को तोड़ना इन लोगों का मुख्य काम था। ऋषि दल के नेता रामषिँ देव कई टोली बनाकर क्रांतिकारियों को अलग अलग जगहो पर लगाते थे और जिले के विभिन्न क्षेत्रों में भेजकर आंदोलन को गति देते थे। 1930 में जब नमक सत्याग्रह आंदोलन चला उसके बाद काफी लोगों ने नमक बनाकर कानून को तोड़ा था।उसी सत्याग्रह में रामऔतार प्रसाद वर्मा1932 मे गिरफ्तार किए गए और उन्हें दो माह की सश्रम कारावास की सजा हुई ।जब पुलिस हथकड़ी डाल कर थाना ले जा रही थी तो उनकी कलाई पतली होने से हथकड़ी बार-बार निकल जाती थी ।पुलिस ने कलाई से हथकड़ी निकालकर ऐसे ही उन्हें थाना ले जाने लगी। रामऔतार बाबू ने पुलिस से कहा कि आप मुझे हथकड़ी लगा करके ही ले चलो ,मैं देश के लिए गिरफ्तार हुआ हूं , बिना हथकडी लगाये नहीं जाऊंगा। एक दुबले-पतले आंदोलनकारी की कड़क आवाज सुन पुलिस भी सकते में आ गई और उसने हथकड़ी पहना करें उन्हें थाना ले गई। जैसे ही रामअवतार प्रसाद वर्मा के पिताजी सिद्धू प्रसाद को गांव में जानकारी मिली कि उनके पुत्र आंदोलन में गिरफ्तार हो गए वे आनन-फानन में साइकिल चलाकर रातो रात चल गोविंद गंज थाना पहुंचे। अपने पिता को देखकर रामअवतार बाबू ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा दिया ,उस दौर के लडके अपने पिता से बहुत डरते थे, उनके सामने खड़े भी नहीं होते थे। पिता ने आदेश दिया कि पुलिस से माफी मांगो और घर चलो ।रामअवतार बाबू ने सर झुकाए हुए कहा कि मैं देश के लिए गिरफ्तार हुआ हूं मैं घर नहीं जा सकता हूं ।बेटा के जवाब को सुनकर पिता सिद्धू लाल हतप्रभ रह गए। जो बेटा कभी उनके सामने खड़ा होने की हिम्मत नहीं करता था उस बेटे ने आज उन्हें जवाब दे दिया ।वे गुस्सा में आग बबुला होकर वहां से वापस घर लौट आए । इस तरह रामऔतार प्रसाद वर्मा जेल गए और दो माह की सजा काटकर वापस आए तो और उग्र हो गए ।अंग्रेजो के खिलाफ हमेशा मुहिम चलाते रहे ,कभी भूमिगत होकर ,कभी प्रत्यक्ष रहकर लगातार आंदोलन मे लगे रहे ।वे पुन: गिरफ्तार किए गए और इस बार उन्हें चार माह की सजा हुई ।सजा काटकर जब वे जेल से निकले उसके बाद लगातार आंदोलन से जुड़े रहे।19 42 आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया बाद में देश आजाद हुआ और उनकी गृहस्थी बसी। जेल से छूटने के बाद वे मोतिहारी के मिसकौट मुहल्ले मे स्थाई रूप में रहने लगे ।उनको दो पुत्र एवं चार पुत्री हुये।बड़े पुत्र का नाम हृदेश कुमार वर्मा एवं छोटे पुत्र का नाम अशोक कुमार वर्मा है।चार पुत्री हुई जो क्रमशः आशा शरण, रेखा श्रीवास्तव ,शकुंतला श्रीवास्तव एवं गौरी श्रीवास्तव हैं।सभी पुत्र पुत्रियों ने संस्कारी पिता के आदर्श को जीवन में समाहित किया और आज सभी शिक्षित,चरित्रवान रह देश के लिए हर समय अपना योगदान दे रहे हैं। रामअवतार बाबू का जन्म 1912 में भगडवा गांव मे हुआ था तथा उनकी मृत्यु 1978 में मोतिहारी मिसकौट आवास पर हुई।आज वे हमारे बीच नहीं है लेकिन ऐसे महान सेनानी जिन्होंने देश के लिए जीवन के कीमती समय को दिया आज नई पीढ़ी पर उनके परिकल्पना को साकार रूप देने की जिम्मेवारी है।
सत् सत् नमन