अनूप नारायण सिंह
बिहार की राजनीति में एक बार फिर से वही दौर लौट आया है, जब सत्ता के लिए समीकरण बनाए और बदले जाते हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में सीटों का बंटवारा फाइनल हो चुका है। भाजपा को 125, जदयू को 75 और सहयोगी दलों (लोजपारा, हम, रालोमो) को 43 सीटें दी गई हैं। यह बंटवारा दिखाता है कि बिहार की राजनीति अब पूरी तरह से भाजपा के नियंत्रण में आ गई है और मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए नीतीश कुमार को अपनी पार्टी की राजनीतिक मजबूती की कुर्बानी देनी पड़ रही है।
जातीय समीकरण और सत्ता का संतुलन
बिहार की राजनीति जातीय संतुलन के बिना अधूरी है। भाजपा ने अपने कोर ओबीसी और उच्च जाति के मतदाताओं को साधते हुए सीटों का वितरण किया है, जबकि जदयू के पास अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और कुछ हद तक मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण को संभालने की जिम्मेदारी होगी। सहयोगी दलों को मिली सीटें दिखाती हैं कि भाजपा अपने गठबंधन में अन्य छोटी जातियों और दलित वोट बैंक को भी साधने की कोशिश कर रही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह जातीय गणित सत्ता की गारंटी दे सकता है?
नीतीश कुमार की ‘राजनीतिक कुर्बानी
नीतीश कुमार की सियासत हमेशा सत्ता के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 2013 में भाजपा से नाता तोड़ने के बाद, 2015 में महागठबंधन में शामिल हुए, फिर 2017 में भाजपा के साथ लौट आए, और 2022 में दोबारा महागठबंधन में जाने के बाद 2024 में फिर भाजपा के साथ। इस उठा-पटक के कारण उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।
अब सीट बंटवारे में जदयू को भाजपा से काफी कम सीटें मिली हैं, जो दर्शाता है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को नेतृत्व में नंबर दो की स्थिति में धकेल दिया है। मुख्यमंत्री पद को लेकर भी कोई स्पष्ट सहमति नहीं बनी है, जो यह संकेत देता है कि भाजपा चुनाव बाद मुख्यमंत्री पद की चाबी अपने पास रखना चाहती है।
भाजपा की रणनीति और बिहार का भविष्य
भाजपा का लक्ष्य बिहार में 2025 के बाद पूरी तरह से नीतीश कुमार की राजनीति को अप्रासंगिक करना है। मुख्यमंत्री पद के लिए अब भाजपा के कई चेहरे तैयार हो रहे हैं, और यह तय माना जा रहा है कि यदि एनडीए जीतता है, तो नीतीश कुमार को वही करना होगा जो दिल्ली हाईकमान चाहेगा।
अगले कुछ महीनों में क्या होगा?
जातीय गोलबंदी बढ़ेगी: भाजपा और जदयू अपने-अपने परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश करेंगे।
मुख्यमंत्री पद को लेकर असमंजस रहेगा: नीतीश कुमार को अगर दसवीं बार मुख्यमंत्री बनना है, तो उन्हें भाजपा की सभी शर्तों को मानना होगा।
महागठबंधन की चुनौती: राजद और कांग्रेस इस मौके का फायदा उठाकर भाजपा और जदयू के बीच असंतोष पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
बिहार की राजनीति फिर से एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। सीट बंटवारे से साफ है कि भाजपा का दबदबा बढ़ गया है, जबकि जदयू के लिए अस्तित्व की लड़ाई शुरू हो चुकी है। नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए अपनी राजनीतिक स्वायत्तता की कुर्बानी देनी होगी, लेकिन क्या यह कुर्बानी उन्हें सत्ता में बनाए रखेगी? यह देखना दिलचस्प होगा।
