जीएनएम स्कुल बेतिया में एईएस/जेई प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य कर्मियों का हुआ प्रशिक्षण

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  • पहचान होने पर समय पर हो उपचार जरुरी: सीएस
  • बच्चे के इलाज में ओझा गुणी में समय नष्ट न करें
बेतिया। गर्मियों के मौसम में बच्चों में होने वाले एईएस और जेई जैसे गंभीर रोगों के पहचान होने पर इसके बेहतर प्रबंधन को लेकर इमरजेंसी मेडिकल टेक्निशियन्स (ईएमटी) को एक दिवसीय प्रशिक्षण जीएनएम स्कुल बेतिया में कराया गया। प्रशिक्षण दो दिनों तक अलग अलग बैच को दिया गया। प्रशिक्षण भीबीडीएस प्रकाश कुमार, अरुण कुमार एवं सुजीत कुमार के द्वारा कराया गया। मौके पर प्रशिक्षण के दौरान ईएमटी को बच्चों का प्रारंभिक इलाज करने, उनके लक्षणों की पहचान करने, उचित प्राथमिक उपचार देने, समय पर एम्बुलेंस पहुंचाने, ऑक्सीजन की व्यवस्था करने, ग्लूकोमीटर से शुगर लेवल चेक करने, मरीज का तापमान जाँचने, पल्स रेट, हृदय गति, बीपी, डीहाईडरेशन की स्थिति सहित कई जाँच करने को लेकर ट्रेनिंग दी गई। चमकी होने पर 102 डायल कर एम्बुलेंस बुलाने पर तुरंत पहुंचने की बातें बताइ गईं। वहीं सावधानियों के बारे में बताया गया कि अपने बच्चों को तेज धूप से बचाएँ। बच्चों को दिन में दो बार स्नान कराएँ। गर्मी के दिनों में बच्चों को ओआरएस अथवा नींबू पानी-चीनी का घोल पिलाएँ। रात में बच्चों को भरपेट खाना खिलाकर ही सुलाएं।इस दौरान भीडीसीओ रमेश मिश्रा भी उपस्थित थें।
ध्यान देनेवाली महत्वपूर्ण बातें: 
तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ताजे पानी से पोछें एवं पंखा से हवा करें ताकि बुखार 100°F से कम हो सके। पारासिटामोल की गोली/सीरप मरीज को चिकित्सीय सलाह पर दें। यदि बच्चा बेहोश नहीं है तब साफ एवं पीने योग्य पानी में ओआरएस का घोल बनाकर पिलायें। चमकी आने पर, मरीज को बाएँ या दाएँ करवट में लिटाकर ले जाएं। बच्चे के शरीर से कपड़े हटा लें एवं गर्दन सीधा रखें। अगर मुँह से लार या झाग निकल रहा हो तो साफ कपड़े से पोछें, जिससे कि सांस लेने में कोई दिक्कत ना हो, बेहोशी/मिर्गी की अवस्था में बच्चे को छायादार एवं हवादार स्थान पर लिटाएँ।
चमकी के दौरान क्या ना करें:
बच्चे को कम्बल या गर्म कपडों में न लपेटें। बच्चे की नाक बंद नहीं करें। बेहोशी/मिर्गी की अवस्था में बच्चे के मुँह से कुछ भी न दें। बच्चे का गर्दन झुका हुआ नहीं रखें। चूंकि यह दैविक प्रकोप नहीं है बल्कि अत्यधिक गर्मी एवं नमी के कारण होने वाली बीमारी है, अतः बच्चे के इलाज में ओझा गुणी में समय नष्ट न करें। मरीज के बिस्तर पर ना बैठे तथा मरीज को बिना वजह तंग न करें। ध्यान रहें की मरीज के पास शोर न हो और शांत वातावरण बनाये रखें।
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