वरिष्ठ पत्रकार अनूप नारायण सिंह की कलम से
लोकसभा चुनाव के दौरान ही पत्रकारों ने पटना एयरपोर्ट पर उपेंद्र कुशवाहा से उनके खिलाफ निर्दलीय मैदान में उतर रहे पवन सिंह के बारे में सवाल पूछा था उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि फिजिक्स के विद्यार्थी से कॉमर्स का सवाल नहीं पूछते पर जब चुनाव का परिणाम सामने आया तो पता चला कि कॉमर्स का विद्यार्थी तो पास मार्क लेकर आया पर फिजिक्स का विद्यार्थी फेल हो गया।सोशल मीडिया पर जो कुछ लिखा जाता है वह सत्य नहीं होता है बिहार में लोकसभा चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर कई तथा कथित राजनीतिक पंडित यह भ्रम फैलाने में लगे हुए हैं कि अकेले पवन सिंह के निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण एनडीए को चार सीटों का घाटा हो गया। पवन सिंह ने काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़कर लगभग 3 लाख वोट लाकर दूसरा पोजीशन प्राप्त किया जिनके लिए लोगों को ज्यादा दर्द हो रहा है उनका नाम है उपेंद्र कुशवाहा चुनाव जीते तो निश्चित है इस बार केंद्रीय मंत्री बनते प्रवेश तीसरी पोजीशन पर रहे पवन से लगभग 30-35000 वोट काम आया। मध्य बिहार की पाटलिपुत्र जहानाबाद औरंगाबाद काराकाट आरा सासाराम और बक्सर सीट एनडीए हार गई पिछले बार यहां से चुनाव जीती थी इनमें से काराकाट सासाराम और बक्सर में प्रत्याशी बदले गए थे जो सफल नहीं हुए काराकाट का सियासी समीकरण पवन सिंह के चुनाव लड़ने के कारण जरूर बदल गया पर यहां चुनाव अंतिम चरण में था जबकि बगल की औरंगाबाद सीट पर चुनाव प्रथम चरण में था जो लोग उपेंद्र कुशवाहा के कुशवाहा होने के कारण घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं वह अगर प्रथम चरण में सुशील सिंह के साथ खड़े रहते तो यह सीट बीजेपी नहीं हारती वहां उन्हें कमल का फूल नहीं अपना कुल नजर आ रहा था। हालांकि सुशील कुमार सिंह के चुनाव हारने के पीछे सबसे बड़ा कारण में खुद रहे लेकिन गद्दारी तो इधर से सबसे ज्यादा हुई इसी का परिणाम था कि काराकाट के राजपूतों को पवन सिंह के रूप में एक बड़ा विकल्प मिल गया चुनाव के दौरान ही भाजपा ने पवन सिंह को पार्टी से निलंबित कर दिया प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री समेत देश के तमाम बड़े राजपूत नेताओं को वहां लगाया गया और युद्ध इसके लोग पवन सिंह को छोड़ने को तैयार नहीं थे जबकि कुशवाहा मतदाताओं को लगा कि उपेंद्र कुशवाहा चुनाव नहीं जीतेंगे तो ऑप्शन के रूप में महागठबंधन के उम्मीदवार राजाराम सिंह जो कुशवाहा ही जाति के थे उनके खेमे में चले गए। सांसद आरके सिंह ने पवन सिंह के खिलाफ खूब आग उगला इसका परिणाम था कि सुपौल से आकर दो टर्म चुनाव जीत चुके आरके सिंह के प्रति आरा के राजपूत भी बगावत कर बैठे उपेंद्र कुशवाहा का फैक्टर आरा में भी कायम रहा और यहां कुशवाहा मतदाता भाजपा की तरफ नहीं गए बक्सर सेट ब्राह्मणों के वोटो में बिखराव अश्वनी चौबे के टिकट कटने के बाद उनके समर्थकों का मिथिलेश तिवारी के साथ नहीं जुड़ना आईपीएस की नौकरी छोड़कर आए एक निर्दलीय उम्मीदवार के द्वारा ब्राह्मण वोटो में सिंह मेरी रही सासाराम में भी नए उम्मीदवार पुराने कार्यकर्ताओं को एकत्रित नहीं रख पाए। जहानाबाद में भूमिहार फैक्टर रहा जबकि पाटलिपुत्र में राजद ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया था। पवन सिंह का राजनीतिक व्यक्ति सिनेमा से जुड़े हैं उनके साथ भीड़ है शुरू से यह बात थी कि वीर वोट में कितना तब्दील हो पाएगी यह कहना मुश्किल है जितना भी वोट में तब्दील हुआ वह पवन सिंह के जात का ही वोट नहीं था बल्कि इसमें दूसरी जातियों के भी लोग थे। अगर पवन सिंह के चलते शाहाबाद में चार सीट एनडीए हार गया तो यह बताना चाहिए कि फिर प्रथम चरण में पूर्णिया और उसके बाद कटिहार किशनगंज सीट एनडीए क्यों हारा। बिहार की राजनीति में कोई जाति किसी जाति का विरोध करें या ना करें अपने ही जात का नेता अपने ही जात के उभरते हुए दूसरे नेता को आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकता और बड़ी साजिश रचता है यह कोई बड़ी बात या नहीं बात नहीं है। बिहार में कई सारे बड़े कुशवाह नेता एक साथ हो गए हैं और भी नहीं चाहते हैं कि उनके कद का कोई दूसरा नेता हो फिर इसका फैसला तो कुशवाहा वोटरों को ही करना होगा इसमें पवन सिंह आरके सिंह और सुशील सिंह के चुनाव हार जाने से क्या लेना देना है। अगर यही फैक्टर काम करता तो सिवान में कुशवाहा जाति की उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाती। पूर्णिया में संतोष कुशवाहा के हर पर क्यों नहीं चर्चा हो रही है सबसे बड़ी कीमत तो बिहार के राजपूतों को चुकानी पड़ी औरंगाबाद आर जैसी परंपरागत सिम हर कर और एनडीए को पांच सांसद जीत कर देने के बाद भी एक भी मंत्री पद नहीं मिला केंद्र में फिर सोचिए घाटा किसका हुआ।