अशोक वर्मा
मोतिहारी : वैसे तो चंपारण में स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी सूची है लेकिन कुछ ऐसे भी सेनानी हुए हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चित हुए हैं।उन्होंने न सिर्फ चंपारण के स्वतंत्रता संग्राम को गति दी बल्कि पूरे देश के आंदोलनकारियों को भी उन्होंने शक्ति दी है ।उसी कड़ी में एक नाम आता है मेहसी के वीरेश्वर आजाद का।
चंपारण और मुजफ्फरपुर के सीमा पर अवस्थित मेंहसी बाजार है। मेहसी को प्रखंड का दर्जा प्राप्त है । आजादी के पहले मेहसी दो कारणो से राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुआ। देश का प्रथम सीप बटन उद्योग कारखाना यहां स्थापित हुआ था। दूसरा है स्वतंत्रता संग्राम में 20 वर्षीय नवयुवक वीरेश्वर आजाद के नेतृत्व में आजाद क्रांतिकारी दल का गठन ।इस दल ने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिये थे। चंद्रशेखर आजाद को अपना आदर्श मानने वाले वीरेश्वर ने अपने नाम के आगे आजाद टाइटल लगाया।
1940 के आसपास वीरेश्वर आजाद ने बरगिनिया के एक क्रांतिकारी से बम बनाने का गुर सीखा था और स्कूल से रसायन चुराकर बम बनाकर मेहसी के विभिन्न सरकारी कार्यालयों के आसपास वे विस्फोट करते थे।बमो के धमाके से मेहसी के तमाम सरकारी कर्मियों में दहशत था। कई जगहों पर रेल के पटरी भी उखाड़े गए थे ,पोस्ट ऑफिस पर तिरंगा भी फहराया गया था ।पुलिस की वहां बराबर छापामारी होती थी । मेहसी में कुछ ऐसे भी लोग थे जो अंग्रेजों के मुखबिर थे ।उन लोगों को यह सब नगवार लगा और वे वीरेश्वर आजाद को सजा देने के फिराक में थे। एक दिन अकेले में बीरेश्वर आजाद पकड़ में आ गए और उन लोगों ने आजाद की जमकर पिटाई की, लहूलुहान कर दिया। घायल अवस्था में कराहते पूत्र को देख आजाद के मां पिता काफी गुस्से में थे लेकिन तत्काल उन्होंने इलाज कराया और मरहम पटटी लगा कर इस बात की जानकारी वहां के एक मदमस्त सहयोगी आंदोलनकारी रामअवतार साव को दी । इन्होंने उनसे कहा कि मेरे बेटे के साथ ऐसा हुआ है। यह भी कहा कि यह तो आजादी की लडाई लड रहा है । अगले दिन रामअवतार साव ने अपने घर पर पंचायती बुलाई और जिन लोगों ने हमला किया था उन लोगों को पंचायती में सजा दी गई कि जिस तरह बीरेश्वर आजाद को इन लोगों ने मारा है उसी तरह वीरेश्वर आजाद भी उन लोगों को मार कर के बदला लेंगे। पिटाई का जवाब पिटाई से होना चाहिए। यह सजा दे दी गई।वीरेश्वर ने कहा कि सभी उनके गांव के हीं लोग है।उन्होंने कहा कि हम इनको कैसे मारेंगे ।हमको सिर्फ ये लोग इतना ही मदद करें कि हमलोग जो आंदोलन कर रहे हैं भारत माता को आजाद करने के लिए उस आंदोलन मे रुकावट ना डालें। यही इनकी सजा होगी।इस पर पंचायती खत्म हुई और सभी लोगों ने इस निर्णय की तारीफ किये। सभी लोग लौट गये। सभी लोगों ने सोचा कि मामला शांत हो गया ,लेकिन जिन लोगों ने मारपीट की थी वे लोग इस निर्णय को अपना प्रतिष्ठा बना लिया और अगले दिन 23 अगस्त 1942 को मुजफ्फरपुर पहुंच गए ।पुलिस छावनी में जाकर अपनी बेज्जती की पूरी कहानी बताई। पंचायती में मिली सजा की भी जानकारी दी और कहा कि मेहसी मे कोई भी सरकारी कार्यालय सुरक्षित नहीं है ।रेलवे लाइन भी आंदोलनकारी उखाडते है। हम लोगों ने रोका तो हम लोगों को पंचायती मे सजा दी गई। हम लोग बेइज्जत होकर यहां आए हैं। पुलिस बातो को सुनकर आक्रोश में आई और अगले दिन 24 अगस्त को काफी संख्या में पुलिस बल मेहसी पहूंची।पुलिस वीरेश्वर आजाद को मेहसी में खोज रही थी। वीरेश्वर को उनके मां-बाप ने शौचालय में छुपा दिया था। इस बीच दहशत के लिए पुलिस वालों ने फायरिंग की , एक मजदूर शहीद हुआ और अंत में पुलिस रामअवतार साह के घर पर पहुंचकर उनसे पूरी जानकारी ली और उनको रस्सी से जीप में बांध कर घसीटते हुए 2 किलोमीटर की दूरी तय कर रेलवे स्टेशन ले गई । स्टेशन पर रामअवतार साह को कहा कि तुम लोग कैसे रेलवे लाइन उखाडते हो बताओ ।पहले से रेलवे लाइन के बीच में स्टैंड वाला कैमरा खड़ा किया हुआ था ।रामऔतार साव ने रेलवे लाइन को पकड़ा और इसी बीच उनकी तस्वीर ली गई फिर उन्हें गोली मारी गई। ग्रामीणों ने उन्हें लाद कर किसी तरह मुजफ्फरपुर अस्पताल पहुंचाया , चिकित्सा हुई लेकिन 25 अगस्त 1942 की सुबह उनकी मृत्यु हो गई। पुलिस 24 तारीख को हीं वहां से प्रस्थान करके बेतियां गई और बेतियां में 8 देशभक्तों को शहीद किया।बाद मे वीरेश्वर आजाद लगातार आंदोलन से जुड़े रहे और उनकी गिरफ्तारी भी हुई, जेल की सजा भी मिली। देश आजाद हुआ वीरेश्वर आजाद को 1972 से स्वतंत्रता सेनानी पेंशन प्राप्त होती रही और लंबे समय तक रहने के बाद 2007 में उनकी मृत्यु हुई। वीरेश्वर आजाद का जन्म 20 मार्च 1922 को हुआ था
नमन है ऐसे क्रांतिकारी राम औतार साह और वीरेश्वर आजाद को जिन्होंने देश के लिये शहीद हुये और जेल की यातनाये सही।
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