चंपारण सांस्कृतिक महोत्सव समिति ने पद्मविभूषण स्वर कोकिला शारदा सिन्हा को दी श्रध्दांजलि

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  •  पारंपरिक लोक कला के क्षेत्र में उनके अप्रतिम योगदान को सभी ने किया नमन।
अशोक वर्मा
मोतिहारी : बिहार की पारंपरिक लोककला- लोक- संस्कृति एवं संस्कार गीतों को वैश्विक पटल पर नयी पहचान दिलाने वाली पद्मश्री एवं पद्मविभूषण से अलंकृत स्वर कोकिला शारदा सिन्हा के निधन से चंपारण के कलाकर्मी स्तब्ध एवं मर्माहत हैं। शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात चंपारण सांस्कृतिक महोत्सव समिति के तत्त्वावधान में डाॅ. अतुल कुमार के नर्सिंग होम परिसर में शारदा सिन्हा की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी, जिसमें  संस्कृतिकर्मी एवं बुद्धिजीवियों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर कला के क्षेत्र में उनके अप्रतिम योगदान को नमन किया।
 चंपारण सांस्कृतिक महोत्सव समिति की वर्किंग प्रेसिडेंट डाॅ. चन्द्रलता झा ने कहा कि शारदा सिन्हा के स्वर में बिहार की सदा नीरा नदियों का प्रवाह, आम्रकुजों में गूंजित कोयल की मधुर कूक, मिथिला और भोजपुर की माटी की सोंधी महक और बिहारी ठाठ की ठसक सब कुछ एकाकार हो जाते थे। उन्होंने कहा कि भले ही शारदा सिन्हा ने अपनी भौतिक काया का परित्याग कर देवलोक में विलीन हो गई, लेकिन उनकी सुरीली आवाज़ उनके गीतो के रुप में सदियों तक फिजाओं में  तैरती रहेंगी।
 महोत्सव समिति के सचिव डाॅ. अतुल कुमार ने शारदा सिन्हा की कला- प्रतिभा एवं व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए कहा कि मौलिक लोक कला, लोक संस्कृति के क्षेत्र में उनके अप्रतिम योगदान को नयी पीढ़ी के कलाकार युगों – युगों तक अपने ह्रदय में संजो कर रखेंगे। उन्होंने कहा कि कला के क्षेत्र में शारदा सिन्हा का योगदान युवा पीढ़ी के कलाकारों का सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा। उन्होंने कहा कि बिहार के संस्कार गीत, पारंपरिक लोकगीत एवं छठ गीतों को शारदा सिन्हा ने अपने सुमधुर स्वर लहरियों के माध्यम से वैश्विक पटल पर जिस कदर नई ऊचाइयाॅ दी हैं, इससे कला के क्षेत्र में उनका योगदान सदियों – सदियों तक याद किया जाता रहेगा।
  मुंशी सिंह काॅलेज के पूर्व प्राचार्य डाॅ.अरुण कुमार ने कहा कि लोक गायिका शारदा सिन्हा ने अपने सुमधुर गायन से पूरे विश्व के संगीत प्रेमियों को अपनी अद्भुत कला प्रतिभा से न सिर्फ प्रभावित किया, बल्कि बिहार की पारंपरिक लोक संस्कृति को पूरी दुनिया में एक नयी पहचान भी दी है। डाॅ.अरुण ने कहा कि ग़ज़ल गायकी के क्षेत्र में उस्ताद मेंहदी हसन की लोकप्रियता जिस कदर है, लोक गायकी के क्षेत्र में शारदा सिन्हा ने उसी स्तर  पर ऊचाइयाॅ हासिल कीं हैं। उनकी मर्म मधुर आवाज़ रहती दुनिया तक लोगों के दिलों में गूंजती रहेगी।
 महोत्सव समिति के कोषाध्यक्ष संजय पाण्डेय ने कहा कि अपने पाॅच दशक के लंबे कैरियर में शारदा सिन्हा ने पारंपरिक लोक कला, लोक संस्कृति की गरिमा को निर्बाध गति से सदैव आगे बढ़ाया है तथा कला के उच्चतर मानको से कभी समझौते नहीं किए। उन्होंने कहा कि शारदा सिन्हा का व्यक्तित्व और कला के क्षेत्र में उनका अप्रतिम योगदान सदियों तक नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय बना रहेगा।
 संयुक्त सचिव देवप्रिय मुखर्जी ने कहा कि शारदा सिन्हा ने कला के क्षेत्र में कभी भी व्यवसायिक प्रतिस्पर्द्धा को महत्व नही दिया तथा कला के पारंपरिक मूल्यों से समझौता ना कर आज के बदलते दौर में एक मिशाल कायम की है।
     शैलेंद्र कुमार सिन्हा ने कहा कि पारंपरिक कला के क्षेत्र में शारदा सिन्हा ने जो मुकाम हासिल किया है, वह आज के दौर के कलाकारों में मिलना बेहद मुश्किल है।
कौशल किशोर पाठक ने कहा कि शारदा सिन्हा लोककला के अलावा पारंपरिक छठ महापर्व के गीतों की पर्याय बन गयी हैं तथा सदियों तक वे छठ महापर्व के गीतों के माध्यम से दुनियाभर में याद की जाती रहेंगी।
बिंटी शर्मा ने कहा कि पारंपरिक व मौलिक कला के माध्यम से शारदा सिन्हा ने भारत तथा दुनिया के कलाप्रेमियों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी है, वह अतुलनीय है।
    मौके पर डाॅ. अनिल सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त कर शारदा सिन्हा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
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