बिहार के फिल्मी कलाकारों ने अपनी शक्ति को पहचाना

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  • बिहार सिनेमा एवं सांस्कृतिक समिति ने बिहार सरकार के समक्ष 7 सूत्री मांगों को रखा।
  • संपूर्ण बिहार के फिल्मी एवं रंगमंच के कलाकार संगठन के बैनर तले अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरेंगे  ।
अशोक वर्मा
मोतिहारी : आजादी के बाद से बिहार के कलाकार फिल्म निर्माण के क्षेत्र में बिहार सरकार से सहयोग एवं सब्सिडी की मांग लगातार करते रहे हैं।  सरकारी स्तर पर लंबी चौड़ी घोषणायें की जाती है लेकिन जमीन पर उसे नहीं उतारा जाता है ।सोशल मीडिया एवं यूट्यूब चैनल के बढ़ते दौर मैं नए पुराने फिल्मी कलाकारों एवं फिल्म उद्योग से जुड़े तमाम लोगों के समक्ष नई -नई चुनौतियां सामने आ रही है जिससे फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े बिहार के कलाकार अपने को कमजोर एवं असहाय समझते हैं साथ-साथ आर्थिक तंगी के दौर से भी गुजरने को विवश होते हैं ।
बिहार कला के क्षेत्र में हमेशा अव्वल रहा है प्राकृतिक  लोकेशन, ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल, वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के अलावा चंपारण सत्याग्रह स्थल ,जॉर्ज ऑरवेल की जन्मभूमि एवं अन्य काफी ऐसे लोकेशन हैं जिसमे मोतीझील ,काली बाग मंदिर बेतिया, प्राचीन चर्च ,मंदिरों एवं विश्व प्रसिद्ध गोपाल सिंह नेपाली की नगरी बेतिया ,गुप्त सत्याग्रह स्थल, चंपारण में बिखरे प्रकृति से प्राप्त  नेचुरल खूबसूरत विहंगम नजारा के साथ-साथ ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थलों की गोद में पले बढ़े चंपारण के कलाकार अपने जन्म धरती को इसलिए नहीं छोड़ते हैं कि जिस धरती  ने उन्हें कला की विधा देकर कलाकारों को परिपूर्ण किया, बिहार के कलाकार प्रकृति से मिले वरदान एवं विशेष प्रतिभा को बिहार रह कर  चुकता करना चाहते हैं । बिहार के कलाकारों में एक विशेष तरह की छटपटाहट है अगर उन्हें सरकारी स्तर  पर सुविधा एवं प्रोत्साहन मिले तो वे बॉलीवुड को  टक्कर देने की क्षमता रखते है। बिहार के कलाकार बिहार में ही रह कर बिहार की धरती के ऋण को चुकाना चाहते हैं। वे अपने कलाकृति के जलवा  को विश्व मानस पटल पर लाने के लिए आतुर है । प्रकृति एवं परमात्मा के द्वारा प्राप्त कलाकारी को वे छोड़ नही सकते है। कला ही उनका जीवन है, वे चाह कर भी  अन्य कोई व्यवसाय नहीं कर  सकते।
बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी का निर्माण तेजी से जारी है। बिहार ने  बॉलीवुड को बड़े-बड़े कलाकार एवं तकनीशियन दिए हैं। फिल्मी नगरी में बिहार के कलाकारों ने बिहार का मान बढ़ाया है,  लेकिन फिल्म निर्माण एवं रंगमंच को बढ़ावा देने के लिए  बिहार सरकार सिर्फ  घोषणाएं करती रही है । कलाकारों के समक्ष आज भी समस्याएं सुरसा के समान मुंह बाए खड़ी है ।पूर्वी चंपारण में एक से एक बड़े कलाकार हुए कुछ जो मुंबई चले गए और संघर्ष किए वे कुछ कामयाब तो जरुर हुए लेकिन जो लोग बिहार में रह कर आज भी उममीद पर जी रहे  हैं।वे उपलब्ध स्थानीय संसाधन एवं कमजोर वित्तीय स्थिति के बीच फिल्म निर्माण एवं कलाकारी से आज भी जुड़े हुए हैं ।वे बिहार में ही अपनी सेवा देना चाह रहे है। आज उनके समक्ष सबसे बड़ी समस्या वित्त की है। फिल्मी एवं रंगमंच के कलाकार सरकार से हमेशा अनुदानित वित्तीय सहयोग की मांग करते रहे हैं, लेकिन अब  संगठन की शक्ति के साथ बिहार के कलाकार हर जिले में अपनी स्थिति मजबूत बनाकर   उत्तर प्रदेश एवं अन्य प्रदेशों के समान  बिहार को भी फिल्म उद्योग नगरी बनाने की  जोरदार मांग कर रहे हैं । 35 वर्षों से  फिल्मों में काम करने वाले
बिहार सिनेमा एवं सांस्कृतिक समिति के चंपारण प्रभारी सौरभ वर्मा राजा ने
 बिहार सरकार से  मांग की है कि–
(1) बिहार में फिल्म निर्माण को अवि लंब फिल्म उद्योग का दर्जा दिया जाए।
(2) बिहार में वही भोजपुरी फिल्में रिलीज हो जिन फिल्मों में 75% कलाकार,लोकेशन,आदि सबकुछ बिहार की धरती की हो,
इससे  बिहार के कलाकार ,निर्माता निर्देशक एवं अन्य तकनीशियनो का बिहार समेत संपूर्ण देश में मान और मांग बढेगी साथ साथ सम्मान और प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। सरकारी प्रोत्साहन मिलने के बाद फिल्मी लाइन से जुड़े तमाम लोगों की  प्रतिभा निखरेगी। फिल्म निर्माण को उद्योग का दर्जा मिलने से इस उद्योग को बढ़ावा मिलेगा जिससे बिहार की इकोनॉमी मे वृद्धि होगी।
(3) बिहार में फिल्म सिटी का निर्माण हो
(4) बिहार में रंगमंच को बढ़ावा दिया जाए
(5) भोजपुरी गाने और फिल्मों को अश्लीलता मुक्त करने के लिए  बिहार में सेंसर बोर्ड बनाया जाए।
(6) बिहार के सिनेमा हॉल की अच्छी देखरेख और सिनेमा हॉल संचालकों को सरकारी मदद मुहैया कराई जाए।
(7) बिहार में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ऋण देने की व्यवस्था सुगम बनाई जाए तथा सब्सिडी लागू हो।
बिहार में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए 50% लागू सब्सिडी सिस्टम मे फिल्म उद्योग को शामिल किया जाय
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