पश्चिमी चम्पारण : मझौलिया प्रखंड के कृषि विज्ञान केंद्र माधोपुर में किसानों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम का किया गया आयोजन।कार्यक्रम में वरिय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ अभिषेक प्रताप ने किसानो को मक्के की खेती के बारे मे विशेष जानकारी देते हुए बताया की दिसंबर के महीने में बढ़ते तापमान का असर मक्के की फसल पर भी पड़ सकता है।तापमान बढ़ने से पौधे के विकास में तेजी आती है, अधिक इंटरनोड बढाव के कारण पौधे की अधिक ऊंचाई और जल्दी फूल आना दिखाई देगा।जिससे अनाज के आकार के लिए आवश्यक विकास अवधि कम हो जाती है।पहली सिंचाई या पहले उर्वरक के प्रयोग में देरी के मामले में पौधे को विकास के महत्वपूर्ण चरण में गंभीर क्षति की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।जिसके परिणामस्वरूप पौधे की वृद्धि कम हो सकती है और फूल जल्दी आ सकते हैं।सामान्य तौर पर बिहार में रबी मक्के को बेहतर बायोमास संचय के लिए वानस्पत्तिक विकास के दौरान लंबे समय तक ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। जिसके परिणामस्वरूप बेहतर फसल उत्पादन होता है। दिसंबर महीने में प्रचलित बढ़ते तापमान (विशेष रूप से रात में) के कारण फोटोरेस्पिरेशन में वृद्धि और कम बायोमास संचय दिखाई दे सकती है।जिसके परिणामस्वरूप मक्के की फसल में कम उपज हो सकती है। उन्होंने बताया कि मक्के की अच्छी एवं गुडवत्ता पूर्ण फसल के लिए समय पर सिंचाई करके मिट्टी में इष्टतम नमी बनाए रखें।उर्वरक की पहली विभाजित खुराक का समय पर प्रयोग करे।यदि खरपत्तवारों का संक्रमण अधिक है तो एट्राजिन 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करे एवं निराई करने के बाद उर्वरक को उपयोग करें।तना छेदक कीट को नियंत्रित करने क लिए कार्बेरिल 50 डब्ल्यू .पी. 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से या डाइमेथोएट 30 ई . सी . 250 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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