ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान, दरभंगा द्वारा 10 दिवसीय बकरी पालन प्रशिक्षण शिविर जारी

Live News 24x7
5 Min Read
राजेश मिश्रा की रिर्पोट
  • बकरी का दूध मां के दूध के समान, जिसमें रोग प्रतिरोध क्षमता अधिक- निदेशक संजय कुमार
  • उमानाथ झा द्वारा 35 लोगों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण, सभी को ग्रामीण स्वरोजगार मंत्रालय द्वारा दिए जाएंगे प्रमाण पत्र
  • गरीबों की गाय कही जाने वाली बकरी अपने पालकों के लिए एटीएम सदृश- डॉ चौरसिया
दरभंगा के बहादुरपुर ब्लॉक के पास स्थित ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरसेटी) में 35 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षक उमानाथ झा द्वारा 11 से 20 जून के बीच बकरी पालन प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस प्रशिक्षण में दरभंगा जिला के विभिन्न स्थानों के त्रिलोक, नीतीश, वीरेन्द्र, अंजू महतो, आभा, पुष्पा, दिनेश, बबीता, संजीला, अनीता, दयावती, सुनीता, कुशमा, रुक्मिणी, अभिजीत, संजीत, अशोक, चांदनी, सज्जन, खुशबू, सुनील, रमेश, विकास, संतोष, निशा, मणिरंजन, मिथिलेश, राजू, चंदन, जमील, मुरारी, रेणु, जयप्रकाश, आर्य शंकर तथा रामबाबू महतो प्रशिक्षण ले रहे हैं। प्रशिक्षण पूरा करने वाले सभी व्यक्तियों को आरसेटी, दरभंगा तथा भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रमाण पत्र दिए जाएंगे, जिनके आधार पर इच्छुक व्यक्ति केन्द्र या राज्य सरकार से सब्सिडी युक्त ऋण लेकर बकरी पालन का अपना स्वरोजगार प्रारंभ कर सकेंगे।
आज की विशेष कक्षा को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि सह संयोजक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि
प्रायः सभी जलवायु में कम लागत, साधारण आवास- व्यवस्था, सामान्य रख- रखाव तथा आसान पालन- पोषण में भी बकरी पालन संभव है। यह स्वरोजगार का प्रमुख एवं वृहत माध्यम है, जिससे आर्थिक लाभों के साथ ही आत्मनिर्भरता की प्राप्ति की जा सकती है।
बकरी का व्यवसाय बहुउद्देशीय होता है, क्योंकि इससे बकरी- बिक्री, मांस, दूध, चमड़ा तथा रेशा आदि से लाभ कमाया जा सकता है। इसका पालन छोटे किसानों, मजदूरों, गरीबों, महिलाओं तथा युवाओं द्वारा भी कहीं भी कम लागत तथा कम जगह में आसानी से शुरू किया जा सकता है। बिहार में बकरी पालन व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इसमें रोजी- रोजगार की असीम संभावनाएं हैं।
डॉ चौरसिया ने कहा कि बढ़ती आबादी, कम होती कृषि भूमि तथा लघु एवं भूमिहीन किसानों के लिए व्यावसायिक बकरी पालन वरदान सिद्ध हो सकता है। इसके उत्पादों की बिक्री के लिए हर जगह, हर समय बड़ा बाजार उपलब्ध है। वैज्ञानिक एवं आधुनिक तरीके से बकरी पालन कर कम लागत और कम समय में अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
प्रशिक्षक उमानाथ झा ने कहा कि बकरी पालन रोजी- रोजगार के साथ ही खाद्य सुरक्षा का भी महत्वपूर्ण साधन है। इसका दूध काफी पौष्टिक एवं महंगा मिलता है। पशमीना एवं अंगोरा ऊलेन बकरी के बालों से तैयार किया जाता है जो काफी अच्छा होता है।
मुख्य वक्ता के रूप में ललित कुमार झा ने कहा कि पशुपालन हमेशा अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन रहा है। बकरी पालन सेंधव सभ्यता से ही होता आ रहा है, जिसके लिए आज भी विस्तृत बाजार उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि बकरी में गुणात्मक रूप से वृद्धि होती है, जिसके पालन के लिए बहुत अधिक पढ़े- लिखे होने की आवश्यकता नहीं है। वहीं अध्यक्षीय संबोधन में निर्देशक संजय कुमार सिन्हा ने कहा कि प्रशिक्षण लेकर बकरी पालन करने से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बकरी का दूध मां के दूध के समान होता है, जिसमें रोग- प्रतिरोध की क्षमता अधिक होती है। उन्होंने कहा कि बकरी के दूध में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस तथा आयरन आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जिससे न केवल हड्डी मजबूत होती है, बल्कि खून की कमी भी दूर हो जाती है।
इस अवसर पर 35 प्रशिक्षुओं के साथ ही नीतू कुमारी, नीतीश कुमार, राहुल कुमार तथा अंकित मिश्रा आदि उपस्थित थे। आगत अतिथियों का स्वागत एवं कार्यक्रम संचालन फैकल्टी नीतू कुमारी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रशिक्षु आर्य शंकर ने किया।
82
Share This Article
Leave a review

Leave a review

Your email address will not be published. Required fields are marked *