चित्रगुप्त पूजा का आध्यात्मिक रहस्य

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अशोक वर्मा

मोतिहारी : दीपावली के दूसरे या तीसरे दिन चित्रगुप्त पूजा  होती  है। कायस्थ जाति से आने वाले सभी लोग अपने-अपने घरों मे विधिवत कलम दवात एवं चित्रगुप्त देवता की तस्वीर रखकर  पूजा करते हैं। चित्रगुप्त पूजा के प्रचलित पुस्तक के आधार पर बताया गया है कि कायस्थो की उत्पत्ति ब्रह्मा के काया से हुई है इसलिए इनका नाम  कायस्थ पडा। सृष्टि के आरंभ में परमपिता परमात्मा शिव बाबा की  प्रथम रचना ब्रह्मा  है जिसके द्वारा दुनिया की स्थापना और   दूसरे रूप विष्णु द्वारा पालना तथा तीसरे रूप शंकर द्वारा विनाश का कार्य  होता है। जब शिवा बाबा के द्वारा ब्रह्मा की रचना होती है तो नई दुनिया  निर्माण  कार्य की जिम्मेदारी उन्हें मिलती है। दुनिया वालो को ज्ञान देना, शिक्षित करना तथा व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए उन्हें परमात्मा से शक्ति मिलती है। ब्रह्मा बाबा के चित्र में जो उनकी  अनगिनत भुजाये दिखाई जाती है वह भुजा अलग-अलग शक्तियो से अलंकृत होती हैं लेकिन मुख्य रूप से उनकी  प्रथम उत्पत्ति कायस्थो की हुई, वही मुख्य भुजा है। कायस्थो को परमात्मा  द्वारा कुशाग्र बुद्धि, विवेक, सहनशीलता ,दयालुता, करुणा, सेवा ,ममता आदि के गुण मिले हुये है जिसके बदौलत कायस्थ जाति के लोगों ने विश्व में सेवा विस्तार किया और सभी लोगों को शिक्षाएं दी।कायस्थो ने दुनिया को गति प्रदान किया ।चित्रगुप्त पूजा पुस्तक  अनुसार जो लोग चित्र गुप्त भगवान की पूजा विधि विधान से करते हैं उनके घर शिक्षा और धन की वृद्धि होती है तथा सुख शांति कायम होती है ।                                             बिहार का सबसे प्राचीन चित्रगुप्त मंदिर पटना मे है। बताया जाता है कि वह 500 वर्ष से अधिक की है। इसके अलावा बिहार में कई  प्राचीन चित्रगुप्त मंदिर है जिसमें मुजफ्फरपुर, मोतिहारी ,बेतिया, दरभंगा आदि का स्थान आता है। इन मंदिरों में प्रतिवर्ष दीपावली के दूसरे तीसरे दिन सामूहिक पूजा होती है । मोतिहारी के ठाकुरबारी मोहल्ले में 130 वर्ष पुराना चित्रगुप्त मंदिर है जो आज भी सिद्ध मंदिर के रूप में जाना जाता है ।मंदिर मे प्रतिदिन कायस्थ जाति के लोग पूजा  करते हैं लेकिन चित्रगुप्त पूजा के दिन यहां पर सैकड़ो की संख्या में कायस्थ परिवार के लोग सामूहिक रूप से कलम दवात रख कर विधि विधान से पूजा करते हैं। हवन के साथ  यज्ञ भी होता है। तथा उस पूजा में विभिन्न जाति के प्रशासनिक एवं राजनीतिक लोग  आकर  पूजा अर्चना करते है। मंदिर परिसर में संध्या समय रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है तथा भाई भोज का भी आयोजन किया जाता है।

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