1981 में भारतीय विकलांग संघ बनाकर जिले में प्रथम बार किसी ने विकलांगों की सुधि ली और उनके लिये पेंशन,नौकरी,रेल सुविधा,चिकित्सा आदि के मांग को लेकर लगातार सेवा करने वाले योगेंद्र कनौजिया अब 65 वर्ष के उम्र मे आकर सरकारी रवैये से क्षुब्ध है।
बिहार में विकलांगों की लड़ाई जिला से लेकर पटना तक इन्होंने लड़ी है यहां तक कि दिल्ली में भी जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर लाठी चार्ज का भी सामना किया है। शिक्षक की नौकरी पर रहते हुए कनौजिया ने अपने वेतन के पैसे से संगठन को जिंदा रखा और जिस दिव्यांगो को समाज ने तिरस्कार की नजरों से देखा उनकी सुधि कनौजिया ने ली और उनके न सिर्फ दुख सुख में सिर्फ भागीदार रहे बल्कि विभिन्न सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाकर उनको राहत दिलाई। वर्तमान समय दिव्यांग जागरण सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पूरे देश में अपनी सेवा दे रहे हैं। उन्होंने एक भेट में बताया कि यह सरकार लाचार दिव्यांगों के प्रति संवेदनशील नहीं है जबकि भारतीय संविधान की धारा 80 उप धारा 1 और-3 के अनुसार राज्यसभा विधानसभा एवं विधान परिषद में 12 सीटों पर राष्ट्रपति द्वारा ऐसे व्यक्तियों को मनोनीत करने का प्रावधान है जो विभिन्न सामाजिक क्षेत्र से सेवा करते आ रहे है।
पिछले दिनों इन्होंने नगर के गांधी चौक पर धरना देकर बिहार सरकार एवं भारत सरकार का ध्यान अपनी और आकृष्ट किया इन्होंने केंद्र सरकार गृह मंत्रालय को सौंपे मांग पत्र में राज्यसभा में मनोनीत करने के लिए आग्रह किया है,लेकिन सरकार इनकी मागो को गंभीरतापूर्वक नही लिया।अन्य मांगो मे दिव्यांग ,वृद्ध एवं विधवा को मिलने वाली पेंशन राशि को बढ़ाकर न्यूनतम ₹3000/- किया जाए ,दिव्यांगों को मिले 4% आरक्षण को बढ़ाकर 10% किया जाए ,सरकारी और गैर सरकारी पदों पर बहाली में प्राथमिकता दी जाए, दिव्यांग जनों को सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित किया जाए, संसद से लेकर पंचायत स्तर पर उन्हें आरक्षण दिया जाय, कबीर अंत्येष्टि योजना में दी जाने वाली 3000/-राशी को बढ़कर 10000/- रुपया किया जाए, संबल योजना का लाभ वंचित दिव्यांग जनों को उपलब्ध कराया जाए।
राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कनौजिया ने बताया कि अगर अविलंब इन मांगों को सरकार नहीं मांनती है तो दिल्ली जंतर मंतर पर एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर उपवास एवं धरना एवं प्रदर्शन किया जाएगा।