असंयमित जीवन शैली एवं तामसी भोजन बीमारी बढ़ने का मूल कारण — सन्यासी डॉक्टर हरिशंकर सिंह ब्रह्मचारी

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अशोक वर्मा
मोतिहारी :  हर मनुष्य के शरीर में विराजमान आत्मा का हीं मुख्य पार्ट होता है किसी किसी के शरीर में पुण्य आत्मा रहती है और किसी किसी के शरीर में आसुरी आत्मा रहती है। दोनों अपने मिले पार्ट का निर्वहन करते  है। पूर्व जन्म के कर्म के हिसाब से आत्मा का संस्कार बनता है। जिनके शरीर मे पुण्य आत्मा रहती है  उन्हें परमात्मा की विशेष शक्ति प्राप्त होती है और उस शक्ति के बदौलत वह आत्मा बहुत ही बड़ा बड़ा काम कर देती हैं।पुण्य आत्मा की श्रेणी मे डॉक्टर हरिशंकर ब्रह्मचारी का नाम आता है। धर्म परायण डॉक्टर हरिशंकर सिंह ब्रह्मचारी बाल काल से हीं बहुत पूजा पाठ करते थे तथा औषधीय पौधों पर उनकी विशेष पकड़ थी , उन पौधो के बारे में  जिज्ञासा  रहती थी। बाद में मोतिहारी स्थित रविंद्र नाथ मुखर्जी  आयुर्वेद महाविद्यालय में व्याख्याता के पद पर उनकी नियुक्ति हुई।  कॉलेज  के छात्र उनसे विशेष पढ़ना चाहते थे। मोतिहारी का कॉलेज राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त किया। पंजाब, राजस्थान ,उत्तर प्रदेश, कश्मीर ,दिल्ली के छात्र इस कालेज मे आने लगे। प्लांट के बारे में ब्रह्मचारी जी विशेष पकड़ रखते थे और छात्रों में भी उनसे पढ़ने की लालसा रहती थी। कालेज काफी तेज गति से आगे की ओर बढ़ने लगा।  इस कॉलेज से निकले कई डॉक्टर विधायक बने वर्तमान में एक डॉक्टर शमीम अहमद बिहार सरकार के  कविना मंत्री  हैं । बहुत से डॉक्टर विश्व के कई भागों में फैल गए और  वहां पर अपनी सेवा दे रहे हैं । डॉ रमाशंकर पाठक कॉलेज के प्राचार्य थे और जब उनकी मृत्यु हुई उसके बाद डॉक्टर हरिशंकर सिंह ब्रह्मचारी  प्राचार्य बने ।आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य के रूप में डॉक्टर ब्रह्मचारी जब तक रहे उन्होंने अपने रिस्क पर कॉलेज एवं छात्र हित में बहुत से काम किये। भवन से लेकर अस्पताल निर्माण  उनके कार्यकाल में ही हुआ। लेकिन विगत 10 वर्षों से अभी कॉलेज में नामांकन बंद है । कॉलेज के  प्राचार्य ब्रह्मचारी जी भी अवकाश ग्रहण कर चुके है।भूमिहार परिवार से आने वाले डॉक्टर ब्रह्मचारी आध्यात्मिक दृष्टिकोण से काफी संपन्न है आर्य समाज संस्था  से जुड़े रहे हैं।  उनके प्रवचन पहले भी होते रहे हैं, इनका विषय ही रहा है भारत का सनातन धर्म एवं आयुर्वेद। अवकाश ग्रहण करने के बाद जब वे 75 वर्ष की उम्र में आए तो जो हिंदू धर्म की परंपरा है कि 25 वर्ष तक  ब्रह्मचर्य जीवन और 50 वर्ष तक  गृहस्त 50 वर्ष से ऊपर वानप्रस्थ जीवन  एवं  75 से ऊपर बढ़ने के बाद संन्यास धर्म का पालन करना है , ब्रह्मचारी जी ने इसका  पालन किया।  75 की उम्र में आते हीं इस वर्ष यानि 2023 मके नवरात्रा के दिन उन्होंने संन्यास धर्म को स्वीकार कर लिया। मंत्र उच्चारण एवं विधि विधान से  इन्होंने सन्यास धर्म की दीक्षा लेकर  गेरूआ वस्त्र धारी हो गए। अभी सनातन धर्म के प्रचार प्रचार में इनका प्रवचन बिहार के कई भागों में लगातार चल रहा है। व्यस्त कार्यक्रम  के बीच ब्रह्मचारी जी से जब भेंट हुई तो उन्होंने बताया कि अब तो मैं बिल्कुल सन्यासी हो चुका हूं। दैनिक  रूटीन पर जब उनसे बातें हुई तो उन्होंने कहा कि मैं सुबह 3:00 बजे से 4:00 बजे के बीच में बिल्कुल ही जग जाता हूं ,दैनिक कर्म से निर्मित होकर ईश्वर स्तुति, उपासना आदि करता हूं फिर पूरब दिशा की ओर मुड़कर प्राणायाम और  संध्या समय पश्चिमी दिशा में मुंह करके वेद मंत्र का पाठ करता हूं। भोजन  सिर्फ दो बार ही होता है। प्रथम भोजन दिन में  11:00 बजे और  रात्रि भोजन भी 11:00 बजे होती है। प्रवचन माला का आयोजन विभिन्न जगहों पर प्रतिदिन चल रहा है। वेद का प्रचार हवन आदि नियमित जारी है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक माह में बीमारियों का अलग-अलग प्रकोप होता है इसलिए प्रत्येक माह के लिए अलग-अलग व्यवस्था है। मंत्र उच्चारण पूजा पाठ का भी विधान हर माह के लिए अलग-अलग बनाया गया है। सभी के पीछे आध्यात्मिक कारण है।इसपर उन्होंने कहा कि मांसाहारी भोजन मनुष्य के लिए नहीं है। आज इतनी बीमारियां बढ़ गई है इसका मूल कारण मांसाहारी भोजन  है । प्रकृति के बदलते दौर में सभी को शाकाहारी भोजन लेनी चाहिये ताकि स्वस्थ रह सके। आज बहुत सी ऐसी बीमारियां हो रही है जिसे डॉक्टर भी नहीं पकड़ पा रहे हैं उन्होंने सेंधा नमक सेवन करने की बात कही और कहा की ताजा दही को मथ  करके जल मिला करके पीना चाहिए, । उन्होंने यह भी कहा कि आजकल अरवा चावल का प्रचलन बढा है लेकिन उसना चावल खाने से पेट का रोग नहीं होता है। गरिष्ठ भोजन  बर्गर पिज़्ज़ा आदि है उससे अपने को बचाना है। अभी ज्यादातर  बीमारियां उसी से हो रही है। ब्रह्मचारी जी ने अपने संदेश में आम लोगों के लिए कहा कि भगवान से संबंध जोड़कर के रहे और सिर्फ संबंध ही नहीं जोड़े बल्कि उनके द्वारा जो दिशा निर्देश दिए गए हैं जिनको श्रीमद् करते हैं, उसका पालन जीवन में करें ।धर्म धारण करने की चीज है सिर्फ धर्म पढ़ने और रखने की चीज नहीं है ।पढ़ाई तो जरूरी है लेकिन धर्म  में जो कुछ बताया गया है उसको  अगर मनुष्य अपने जीवन में उतारे तो उसका जीवन सुखमय ,और निरोगी हो जायेगा और वह हमेशा प्रसन्न चित्र रहेगा ।हरेक तरह का तनाव, घरेलू हिंसा आदि समाप्त होंगे।बीमारी बढने का मूल कारण  तामसी भोजन है, इसलिए उस भोजन  से परहेज करें ।सीजनल फल खाएं ।अधिक से अधिक लोकल फल का सेवन करें। मैदा  से परहेज रखें ।
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