श्रद्धांजलि स्वरुप एक संस्मरण- अशोक वर्मा
मोतिहारी : मैं 1974 के छात्र आंदोलन में शामिल था। नुक्कड़ सभा, धरना, भुख हड़ताल, मशाल जुलूस, जनता कर्फ्यू, संध्या थाली पीटना आदि कार्यक्रमों में मैं अपने साथियों के साथ शामिल होता था। 22 वर्ष की उम्र थी मेरी ।उस दौर में सुशील मोदी अक्सर मोतिहारी आते थे । मोतिहारी मुख्य पथ बाटा के पास स्थित अशोक मार्केट में मेरा स्टूडियो था। उस समय सुशील मोदी दीपक जी के साथ अक्सर मेरे स्टूडियो में आते थे और घंटो चर्चा होती थी ।मैं भी अपनी राय देता था।यह सिलसिला बराबर चलता रहा। बाद में आंदोलन परवान चढ़ा ,आपातकाल लागू हुआ और सुशील मोदी समान जितने बड़े नेता थे सभी गिरफ्तार कर लिए । मेरी भी जनता कर्फ्यू के दौरान गिरफ्तारी हुई और मैं भी बजरंगी ठाकुर के साथ जेल गया बाद में जमानत पर रिहाई हुई। लेकिन आंदोलन से जुड़ा रहा, आंदोलन से मैं अलग नहीं हुआ। उस समय भी मैं अपने कैमरे और भाषण के माध्यम से छात्रों में जोश भरता था ।उस समय कैमरा लेकर जब मैं निकलता था तो कैमरे के चलते कई युवा घर से निकल आगेआकर आंदोलन मे शामिल होते थे। मेरे पास जो साधन था मैं आंदोलन में उसका सदुपयोग किया। उस दौर के रिपोर्टर में मुख्य रूप से प्रोफेसर जनार्दन बाबू, राधाकांत दुबे, कुमार कमला सिंह, के के तिवारी, चंद्रभूषण पांडे, उमाशंकर सिंह,सतीश भास्कर आदि थे । उस समय रिपोर्टर लोग न्यूज़ डाक द्वारा पटना भेजते थे ।पटना के लिए पहलेजा घाट द्वारा स्टीमर पर डाक जाता था। आज का समाचार एक सप्ताह के बाद छपता था ।
बाद में जब केंद्र में सरकार बदली तब सुशील मोदी का कद बहुत ऊंचा हो गया ,बिहार के मुख्य नेता के रूप में उन्हें लोगों ने माना। सुशील मोदी एक चरित्रवान और नियम कायदे से चलने वाले नेता थे।मोदी जी ने कभी भी वसूल से समझौता नहीं किया। जाति धर्म आदि का सहारा नहीं लिया ,किसी भी हथकंडे को भी उन्होंने नहीं अपनाया ।
एक बार 1981- 82 में सुशील मोदी मोतिहारी आए थे, विद्यार्थी परिषद का बड़ा कार्यक्रम था। मैं उस समय मीडिया सेवा मे गया था। मै स्वतंत्र रूप से देश एवं बिहार के सभी हिंदी दैनिको के साथ अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स , इंडिया टुडे, आउटलुक,जनसत्ता, रविवार आदि मे लगातार मेरी तस्वीरें छपती थी। उसे समय बिहार का मुख्य हिंदी दैनिक आर्यावर्त और प्रदीप था आर्यावर्त सत्ता पक्ष का समर्थक था और प्रदीप आंदोलन के समर्थन में था। परिणाम हुआ कि पटना के प्रदीप कार्यालय को सत्ता पक्ष वालों ने जला दिया था और प्रदीप ने अपना संपादकीय लिखना बंद कर उस स्थान को खाली रखता था, छोटे आकार में जैसे-जैसे अखबार निकलता रहा। अखबार जलाने के विभिन्न कार्यक्रम श्री मोदी ने जमकर विरोध किया था और लोकतंत्र एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कहा था ।
उस समय विहार में राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फोटो जर्नलिस्टो में चर्चित नाम कृष्ण मुरारी किशन, के एम शर्मा एपी दुबे थे।उनलोगो के साथ मेरा नाम एके वर्मा भी जुट गया था, लेकिन मेरा कार्य क्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर बिहार था। मैं राजनीतिक क्षेत्र में नहीं गया और पत्रकारिता क्षेत्र को ही चुना। जेपी के आदर्श को जीवन में उतारने का प्रयास किया। उस समय मोतिहारी मे अरविंद श्रीवास्तव, राकेश पांडे, संजय सिंह, श्यामसुंदर जी विद्यार्थी परिषद के अग्रणी नेता थे।
कार्यक्रम समापन के बाद अरविंद जी ने मेरा परिचय सुशील मोदी से कराया सुशील मोदी मुझे देखते मुस्कुरा दिए और अरविंद जी से कहा कि अरे आप इनका परिचय मुझसे करा रहे हैं, आप अशोक जी हैं आपका स्टूडियो है, मैं तो 1974 के छात्र आंदोलन में जब भी मोतिहारी आया आपके स्टूडियो में घंटो बैठता था।
मुझे उनकी पुरानी बातों को सुन बड़ी खुशी हुई, मैंने उनसे कहा चलिए आप ऐसे नेता है जो उस समय की बातो को याद रखे हुए हैं। यह आपकी महानता है।
सुशील मोदी जी का जाना बिहार के राजनीतिक क्षेत्र में शून्यता पैदा करने समान है, सुशील मोदी के संघर्ष की गाथा और सत्ता में रहते हुए भी कभी भी भ्रष्टाचार को फटकने नहीं देना उनकी मुख्य विशेषता थी। वैसे नेता के रूप में रह कर कार्य किया जो वर्तमान दौर में असंभव माना जा रहा है। उनपर कोई दाग नहीं लगा। सच में सुशील मोदी ने जेपी को फॉलो किया। बिहार की राजनीति पर जब भी चर्चा होगी सुशील मोदी वहां उपस्थित रहेंगे। चाहे पशुपालन घोटाला का मामला हो या राजनीतिक क्षेत्र में अपराधीकरण या भ्रष्टाचार का मामला हो सुशील मोदी ने जिस तरह विरोध किया उनके निर्भयता को नई पीढ़ी के युवक निश्चित ही अपनाने का प्रयत्न करेंगे। सुशील मोदी को जनता नहीं भूलेगी ।
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