महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जयंती के अवसर पर हुई संगोष्ठी

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राजेश मिश्रा की रिपोर्ट
दरभंगा। महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग एवं विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में वनस्पति विज्ञान विभाग के सभागार में ‘राहुल सांकृत्यायन का जीवन–दर्शन’ विषयक संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. ए. के. बच्चन ने की।
इस अवसर पर सम्मानित अतिथियों ने विभागीय भित्ति पत्रिका ‘किसलय’ का लोकार्पण किया। कार्यक्रम का आरंभ शोध छात्रा खुशबू कुमारी, निशा, बेबी के द्वारा स्वागत गीत की प्रस्तुति से हुआ।
स्वागत भाषण में विश्वविद्यालय हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि राहुल जी का व्यक्तित्व मनुष्य की अपार संभावनाओं का द्योतक है। उनका जीवन मानवीय जिजीविषा की परकाष्ठा है। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक है तो उसका कारण उनकी निरंतर गतिशील उन्नत, प्रगतिशील वैचारिकी है। वे जीवन के अद्भुत चितेरे दार्शनिक, यात्री, राजनीतिक बुद्धिजीवी थे।
प्रो. उमेश कुमार ने हिन्दी विभाग की भित्ति पत्रिका किसलय के संबंध में कहा कि ‘किसलय’ एक प्रयास है। शोधार्थी ही इसका संपादन व लेखन करते हैं। बल्कि इसके प्रकाशन का सारा खर्च भी शोधार्थी ही वहन करते हैं। बौद्धिक जगत में हमारे विभाग का यह विनम्र प्रयास माना जाए।
विषय प्रवेश करते हुए पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि केदार पांडेय से राहुल सांकृत्यायन होने तक की यात्रा, एक विराट वैचारिक संघर्ष यात्रा है। उनके लेखन के कई क्षेत्र हैं, दर्शन, साहित्य, विज्ञान, राजनीति यद्यपि सबके  मूल में वर्ग संघर्ष है। उनके समूचे लेखन में एक समतामूलक वर्गविहीन, शोषणविहीन समाज की स्थापना का बौद्धिक संकल्प प्रकट होता है। राहुल ने इतिहास की विराट यात्रा की। उन्होंने यह बतलाया इतिहास बिता नहीं, बल्कि आगे है। इतिहास को उन्होंने गतिशील चिंतन के रूप में स्वीकार किया। उनका स्मरण रस्म अदायगी भर न हो बल्कि उनकी परिवर्तनकामी विचारधारा में निष्ठा रखने का  दृढ़ संकल्प साबित हो।
सह आयोजक विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. रुद्रकांत अमर ने राहुल के प्रारंभिक जीवन एवं उनके दांपत्य जीवन की चर्चा की। उन्होंने बताया कि राहुल की वैचारिक यात्रा में उनके जीवन–दर्शन की कुंजी है। उन्होंने समाज को बदलने के लिए अपने व्यक्तित्व को भी नैतिक ऊंचाई प्रदान की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. प्रभाकर पाठक ने कहा कि महापुरुषों का जीवन भटकाव और यात्राओं से भरा होता है। तभी वे अपने पथ निर्मित कर पाते हैं। अप्रैल से जून तक हिन्दी साहित्य में यात्री ही पैदा हुए। अप्रैल में महायात्री राहुल सांकृत्यायन, मई में लोकयात्री देवेंद्र सत्यार्थी और जून में नागार्जुन ‘यात्री’!
भदंत आनंद कौसल्यायन ने राहुल जी को कवि माना है। क्योंकि राहुल में अपार कल्पनाशीलता थी। वे अपनी कल्पनाशीलता में भी ऑब्जेक्टिव थे। उन्होंने ‘22 वीं शताब्दी’ नामक पुस्तक की रचना की है। उसमें क्या कल्पना करते हैं? विश्वराष्ट्रवाद की, विश्व भाषा की। ये पुस्तक युवा पीढ़ी के लिए बहुत आवश्यक है।
स्त्री–मुक्ति के लिए सामाजिक बंधनों पर  अपनी रचना ‘वोल्गा से गंगा’ में अनेक प्रहार किए हैं। ‘निशा’ कहानी तो स्त्री विमर्श की पूर्वपीठिका के योग्य मानी जाने वाली कृति है। राहुल जी ने जो कुछ भी लिखा मनीषा से लिखा। स्मरण रहे, मनीषा को अभिनव गुप्त ने असाधारण बुद्धि के बाद की अवस्था बतलाया है।
मौके पर प्रो. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि 9 अप्रैल से 14 अप्रैल तक की तारीख दुनिया के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है क्योंकि दुनिया को बदलने वाले तीन सबसे खूबसूरत मस्तिष्कों का जन्म इस तिथि क्रम में हुआ है। वे हैं – 9 अप्रैल राहुल, 11 अप्रैल ज्योतिबा फुले और 14 अप्रैल बाबासाहेब आंबेडकर। इन्होंने हिंदुस्तान को नया रास्ता दिखलाया, ब्राह्मणवाद–सामंतवाद के रथ का पहिया रोका। सच पूछिए तो राहुल और अंबेडकर का जो स्वप्न था  वही भगत सिंह का भी स्वप्न था। मेरा मानना है कि भारतीय इतिहास में बुद्ध के बाद केवल राहुल और बाबा नागार्जुन का महाभिनिष्क्रमण हुआ था। सत्य की गवेषणा की जो बेचैनी बुद्ध में थी वही राहुल में भी थी। अपनी 78 वर्ष की आयु में उन्होंने 45 वर्षों तक निरंतर यात्रा की। यह यात्रा पूरी तरह सोदेश्य थी। रूस यात्रा के दौरान वे मार्क्सवादी दर्शन से निष्णात होते हैं। उसके बाद तो उनके सामने दसों द्वार खुल जाते हैं। वहां से  आने के बाद वो सीधे किसान आंदोलन से जुड़ते है और जीवनपर्यंत कम्युनिस्ट राजनीति से जुड़े रहते हैं। राहुल जी के साहित्य ने हिंदुस्तान में हजारों कम्युनिस्ट पैदा किए। वे धर्म और जाति के साथ ही शोषण के सभी स्वरुपों के क्षय की कामना इसलिए करते हैं ताकि आम अवाम स्वतंत्रता, समानता और बंधुता अर्जित कर सके!
अध्यक्षीय उद्बोधन में मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. ए.के. बच्चन ने कहा राहुल ने दुनिया को अधिक मानवीय और सहिष्णु बनाया। सतत जीवन यात्रा में उन्होंने नाम बदले, चोले बदले लेकिन कोई भी बदलाव महज बदलाव के लिए न हो कर आमूलचूल परिवर्तन की प्रबल आकांक्षा थी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो. आनंद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि राहुल जी ने  अपनी रचनात्मकता से साहित्य को एक नई ऊंचाई दी। उनका साहित्यिक अवदान अविस्मरणीय है।
विश्वविद्यालय वनस्पति विज्ञान विभाग की अध्यक्षा प्रो. सविता वर्मा  के साथ ही साथ
विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव, पूर्णिया विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव घनश्याम राय, प्रो. एम.पी. वर्मा, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. प्रियंका, डॉ. सुनीता, डॉ. मंजरी खरे आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस मौके पर राहुल सांकृत्यायन की जयंती के उपलक्ष्य में हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में शीर्ष स्थान पाने वाले छात्र दर्शन सुधाकर, विक्रम कुमार, विनिता कुमारी तथा दीपक कुमार के नामों की घोषणा की गई।
 कार्यक्रम में डॉ. ज्वालाचंद्र चौधरी समेत बड़ी संख्या में शोधार्थियों एवं छात्र–छात्राओं की उपस्थिति रही। धन्यवादज्ञापन दर्शनशास्त्र विभाग के प्राध्यापक डॉ. संजीव कुमार शाह ने किया।
प्रेषक
विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय
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