दरभंगा, राजेश मिश्रा की रिपोर्ट।
विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, ल.ना.मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा द्वारा हिंदी के महान साहित्यकारों पर दो दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। निर्मल वर्मा, मन्नू भंडारी और राष्ट्र कवि माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती के अवसर पर आयोजित इस परिचर्चा की अध्यक्षता हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.उमेश कुमार ने की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से हर व्यक्ति समृद्ध होता है। प्रारंभिक पढ़ाई के दौरान ही माखनलाल चतुर्वेदीजी का विवाह हो गया था। बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति के होने के कारण उनकी कविताओं की धार कभी कुंद नहीं हुई। उन्हें प्रकृति के हर तत्त्व में क्रांति के बीज नजर आते थे। निर्मल वर्मा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे एक चित्रधर्मी कथाकार थे। वे आंख के सामने एक परिदृश्य खड़ा कर देते हैं। निर्मल वर्मा की कथाएं निश्चित रूप से लंबी होती हैं लेकिन बोझिलता कभी भी उनकी रचनाओं के आसपास नहीं फटकती। मन्नू भंडारी की स्मृति को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि वे एक समग्र साहित्यकार हैं। उन्होंने न केवल साहित्य का सृजन किया बल्कि साहित्य को जिया भी।
विशिष्ट वक्ता हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि मन्नू भंडारी को सिर्फ स्त्री विमर्श तक सीमित रखना उचित नहीं है क्योंकि उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण रचना ‘महाभोज’ है, जो विशुद्ध राजनीतिक है। आरंभिक काल से ही माखनलाल जी का संपर्क क्रांतिकारियों के साथ रहा। उनके एक हाथ में गीता और दूसरे हाथ में पिस्टल रहा करती थी। महाकौशल में इन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व किया। यद्यपि बाद में उनका कांग्रेस के साथ मतभेद और मोहभंग हुआ और वे कांग्रेस से अलग हो गए। उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनकी प्रखर रचनाशीलता को सम्मान देते हुए पद्म भूषण से पुरस्कृत किया। वे मूलतः वैष्णव थे। वैष्णवता में विश्वास रखते हुए उन्होंने साहित्य और समाज में नवीन दृष्टिकोण स्थापित किया। वे नव वैषण्वता के प्रवर्तक माने जा सकते हैं। वे बारह बार जेल गए और तिरसठ बार उनके कार्यालय पर छापा पड़ा। देश सेवा को उन्होंने ईश्वर की सेवा माना है। बलिदान उनकी रचनाओं का केंद्रीय तत्त्व है। इनकी गोपियां भी आधुनिक हैं जो सिर्फ कृष्ण के साथ लीलाएं करने में व्यस्त नहीं है बल्कि ‘एशिया की बेड़ियां’ तोड़ने हेतु प्रयासरत हैं। राजनीति में परिवारवाद पर उन्होंने उस दौर में ही जमकर अपनी कविताओं के माध्यम से प्रहार किया। वे समझौतावादी नहीं बल्कि जुझारू प्रवृत्ति के पत्रकार और कवि थे। प्रथमतः और अंततः चतुर्वेदी जी आम जन के लेखक बने रहे।
डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी और जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक जगत में आविर्भाव लगभग एक ही समय हुआ था। दोनों ही गांधीवादी मूल्यों से प्रभावित थे। चतुर्वेदी जी की रचनाओं का मूल स्वर राष्ट्रीयता है। साहित्य अकादमी और पद्म भूषण सम्मान से चतुर्वेदीजी नवाजे गए। निर्मल वर्मा और मन्नू भंडारी का हिंदी कथा साहित्य में अतुलनीय योगदान रहा है।
इस अवसर पर डॉ.मंजरी खरे ने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी, निर्मल वर्मा और मन्नू भंडारी को जितनी बार भी पढ़ा जाए वे हमेशा नए से लगते हैं। उपर्युक्त तीनों ही रचनाकार आज के दौर में बहुत प्रासंगिक हैं। मन्नू भंडारी ने सच्चे अर्थों में प्रगतिशीलता हासिल की। उनमें नवीन और मजबूत निर्णय लेने की असाधारण क्षमता थी। लेखन के लिए उन्होंने जिस प्रकार अपना नाम बदला वह भी उनकी अस्मिता और अस्तित्व का बोध कराता है।
मौके पर बी .आर. बी कॉलेज की सहायक प्राध्यापिका डा. स्नेहलता कुमारी, वरीय शोधप्रज्ञ कृष्णा अनुराग, अभिषेक कुमार सिन्हा, सियाराम मुखिया, रोहित पटेल, कंचन, बेबी, सुभद्रा और खुशी ने भी विचार प्रकट किए। मंच संचालन वरीय शोधप्रज्ञ समीर कुमार ने और धन्यवाद ज्ञापन छात्र दीपक कुमार ने किया। इस अवसर पर मनोज, देवेंद्र, बबिता, स्नेहा, खुशबू समेत बड़ी संख्या में शोधार्थी और छात्र–छात्राएं उपस्थित रहे।
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