जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की जयंती पर विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग में हुई संगोष्ठी

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दरभंगा। राजेश मिश्रा की रिपोर्ट
जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के तत्वावधान में विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार की अध्यक्षता में संगोष्ठी आयोजित की गई।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि केदारनाथ अग्रवाल पर एक नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। वो जनवाद के कवि हैं इसलिए उनके लिए जनवाणी सर्वोपरि है। उनकी वैचारिकी पर मार्क्स, डार्विन और फ्रायड का प्रभाव है। लेकिन मैं चित्रकला की शब्दावली में कहूं तो केदार जी लोक कला के सबसे नजदीक ठहरते हैं। उनकी कविता में लोक का मन है। उन्होंने वास्तविक अर्थों में लोक की परिकल्पना को अपने लेखन में साकार किया।
उन्होंने आगे कहा कि केदार जी के यहां प्रकृति का सानिध्य मुक्ति से जुड़ा है। केदार जी लोक के प्रति, जनसामान्य के प्रति जीवनपर्यंत समर्पित रहे। इसलिए शोषितों की मुक्ति उनकी कविता का प्राण है।
नागार्जुन की केदार जी को समर्पित कविता के माध्यम से उन्होंने अग्रवाल जी की भीतरी और बाहरी विशेषताओं को बताया।
विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि बांदा में उनसे मेरी भेंट हुई थी। उनसे मिलना दरअसल समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से मिलना है।
केदारनाथ अग्रवाल हिन्दी कविता को छायावाद के दौर से मुक्त कराते हैं। हिन्दी की पूरी काव्य परंपरा में उनका  वैशिष्ट्य है कि वे जीवनभर अपनी धरती, अपनी पत्नी और केन नदी से जुड़े रहे। इसलिए उन्हें केन का कवि भी कहते हैं। केन अंतःसलिला की तरह उनकी कविता में विद्यमान है। उनकी प्रकृतिपरक कविताएं छायावादी प्रकृति चित्रण से बिल्कुल अलहदा है। उनकी कविता में कोई रहस्य और पलायन नहीं है। जिस कवि की दृष्टि में अलसी, सरसो और राहर है, वह आमजन की प्रकृति का ही चितेरा हो सकता है, कुलीन वर्ग का नहीं। उनके यहां प्रेम का बोध भी आमजन का है। बल्कि उन्होंने आजीवन कुलीन काव्यधारा के विपरीत चलने का प्रयत्न किया। वो आमजन के सुख–दुःख के कवि हैं। कृषक चेतना के कवि हैं। यही कारण है कि जहां ‘किसान’ शब्द  हिन्दी कविता में उनके पहले आता ही नहीं। अपवादस्वरूप निराला की बादल राग कविता में एक बार जिक्र है लेकिन ‘किसान’ केदार जी की कविताओं की धुरी है।
यकीनन केदार जी आमजन की अपराजित जिजीविषा के कवि हैं! आंदलानों के कवि हैं।
वहीं प्रो. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने बाबा नागार्जुन के शब्दों में केदारनाथ अग्रवाल को जन गण मन का जाग्रत शिल्पी, जन संस्कृति का प्राणकेंद्र पुस्तकागार कहा।
उन्होंने कहा कि केदार जी धरती के पुत्र, गगन के जामाता के साथ ही मेहनतकश अवाम की मुक्ति के अमर गायक हैं। उनको नया हिंदुस्तान बनाने वाले दुर्धर्ष योद्धा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। केदार जी परिमल से तो जुड़े थे लेकिन परिमलवादी बिल्कुल नहीं थे। उनका रचनाकाल दुनिया की तीन महान परिघटनाओं की पृष्ठभूमि में शुरू हुआ। वे घटनाएं थीं – डार्विन के विकासवाद का सिद्धांत, मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत और फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद का उदय। केदार जी पर इन तीनों सिद्धांतों का गहरा प्रभाव पड़ा। मार्क्स ने दुनिया के मेहनतकशों से कहा कि मजदूरों एक हो! केदार जी उन्हीं मजदूरों के गीत लिखते हैं। वे श्रम और सौंदर्य के अनूठे कवि हैं। उनको मजदूरों की बड़ी गोलबंदी चाहिए सर्वहारा क्रांति के लिए। जब सर्वहारा के घर बच्चा पैदा होता है तो केदार जी बहुत प्रसन्न होते हैं, उन्हीं के शब्दों में – ‘एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ है/माता रही विचार, सवेरा करनेवाला और हुआ है/ सुन ले सरकार, कयामत ढानेवाला और हुआ है।’
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो. आनंदप्रकाश गुप्ता ने केदारनाथ जी के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केदारनाथ अग्रवाल छायावादोत्तर कविता की सभी प्रमुख प्रवृतियों का वहन करते हैं। इलाहबाद की प्रतिष्ठित संस्था परिमल से भी इनका जुड़ाव रहा। केदार जी अपने ढंग के अनूठे कवि हैं!
मौके पर जाकिर हुसैन बीएड कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मंजूर सुलैमान, शोधार्थी कंचन रजक, बेबी कुमारी, रूबी कुमारी, अमित कुमारी नबी हुसैन, मलय नीरव, सुभद्रा कुमारी, बबिता कुमारी, खुशबू कुमारी, दीपक कुमार, साक्षी कुमारी, सरिता कुमारी, अनुराधा कुमारी, संजय कुमार राय, बिनीता कुमारी, प्रियंका कुमारी ने भी अपनी बातें रखीं। वही धन्यवाद ज्ञापन शोध छात्र मलय नीरव ने किया।
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