मुजफ्फरपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्लास्टिक के कचरे से ईंट बनाई जा रही है। MIT के द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह कार्य किया जा रहा और अब अंतिम रूप में आईआईटी की मदद से पास कराया जाने के बाद इसका पेटेंट कराया जायेगा। इसको लेकर MIT के मैकेनिकल विभाग के हेड प्रो. आशीष ने बताया कि कॉलेज के सहयोग से प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। पहली चार वेस्ट प्लास्टिक से ईंट बनाई है और इसके लिए इ लोगों ने शहर के कई हिस्सों में डस्टबिन को लगाकर के प्लास्टिक उठाया। इसके बाद इस प्रोजेक्ट को तैयार किया।
उन्होंने बताया कि इस ईंट को बनाने के लिए जिप्सम और फ्लाई एश में प्लास्टिक को मिलाया है। यह बेहद टिकाऊ है और बहुत खड़ा उतरा है और यह भूकंप को भी झेलने वाला है। बताया जा रहा है कि इसकी टेस्टिंग भी कर ली गई है। प्रो. आशीष ने बताया कि प्लास्टिक की बनी ईंट की कांप्रेसिव स्ट्रेंथ मापने पर सामान्य इस्तेमाल होने वाली ईंटों से अधिक पाई गई। सामान्य ईंट की कांप्रेसिव स्ट्रेंथ 8.5 गीगा पास्कल की ही रहती है, जबकि एमआईटी में प्लास्टिक से बनी ईंट की कांप्रेसिव स्ट्रेंथ 11.6 पाई गई।
मैकेनिकल विभाग में प्लास्टिक की ईंटों के अलावा अंडों के छिलके का इस्तेमाल कर कंपोजिट मैटेरियल तैयार किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का फायदा होगा कि इसमें स्टील से ज्यादा मजबूत, लेकिन उससे हल्की वस्तु तैयार होगी, जिसका इस्तेमाल घर बनाने में किया जा सकता है। इस ईंट का एक बड़ा फायेंदा होगा की इससे प्रदूषण भी कम होगा।
प्लास्टिक से बनी ये ईंट सीमेंट-बालू से नहीं बल्कि यह जिप्सम से जोड़ी जाएंगी। इसको लेकर के प्रो. आशीष ने बताया कि इस ईंट से दीवार बनाने में लागत सामान्य ईंट से कम आयेंगी। उन्होंने बताया कि हम लोगों ने पहले इस ईंट का इस्तेमाल कर एमआईटी में एक कमरा तैयार करेंगे। इसके बाद इसे अगले दो तीन माह में बाजार में उतारा जायेगा। इन प्लास्टिक से बनी ईंट से घर बनाने में बाजार में मिलने वाली दूसरी ईंट की तुलना में 40 प्रतिशत कम लागत आएगी। यही नहीं बल्कि इसमें सीमेंट बालू नहीं लगने से लोगों की जेब पर कम असर होगा।
