- एमडीए अभियान पर राज्यस्तरीय मीडिया उन्मुखीकरण कार्यशाला आयोजित
- फाइलेरिया मरीजों ने किए अनुभव साझा
- बिहार के 24 जिलो में 10 फरवरी से शुरू होगा मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम
पटना: बिहार सरकार फाइलेरिया उन्मूलन हेतु प्रतिबद्धता के साथ हर स्तर पर सार्थक प्रयास कर रही है. फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के सम्बन्ध में मीडिया की सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करने के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज द्वारा अन्य सहयोगी संस्थाओं यथा विश्व स्वास्थ्य संगठन, पीरामल स्वास्थ्य , प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल, लेप्रा और सीफार के साथ समन्वय स्थापित करते हुए मीडिया सहयोगियों के साथ सोमवार को चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज , पटना में मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया।
24 जिलों में 10 फ़रवरी से एमडीए
इस अवसर पर अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, फाइलेरिया, डॉ. परमेश्वर प्रसाद ने कहा कि आगामी 10 फरवरी से राज्य के 24 जिलों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम शुरू किया जायेगा । इस कार्यक्रम में फाइलेरिया बीमारी से मुक्ति के लिए लगभग 7.57 करोड़ लोगों को फाइलेरिया रोधी दवाएँ खिलाई जायेगीं। इनमें से 14 जिलों में लाभार्थियों को 2 दवायें यानी अल्बेडाज़ोल और डी.ई.सी. खिलाई जाएगी. जबकि, शेष 10 जिलों में 3 दवायें अल्बेडाज़ोल, डी.ई.सी. और आईवरमेक्टिन खिलाई जायेगी । 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर सभी लोगों को उम्र के अनुसार फाइलेरिया रोधी दवायें प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों के सामने खिलाई जायेंगी। डॉ. प्रसाद ने बताया कि राज्य स्तर से जिला स्तर और प्रत्येक विकास खंड तक समन्वय बनाकर कार्य किया जा रहा है. कार्यक्रम के दौरान गतिविधियों की मॉनिटरिंग की सुनियोजित योजना बनाई गयी है ताकि, किसी भी स्तर पर कोई भी कमी न रह जाये । उन्होंने कहा कि राज्य को फाइलेरिया मुक्त करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
5 साल तक फाइलेरिया रोधी दवा खाने से रोग का उन्मूलन संभव:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य एनटीडी समन्वयक डॉ. राजेश पाण्डेय ने बताया कि फाइलेरिया या हाथीपांव, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या है। यह रोग मच्छर के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है । आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे: हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों में सूजन) और दूधिया सफेद पेशाब (काईलूरिया) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक भेदभाव सहना पड़ता है,जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। डॉ. पाण्डेय ने कहा कि अगर हर लाभार्थी लगातार 5 साल तक फाइलेरिया रोधी दवा खा लेता है तो फाइलेरिया उन्मूलन संभव है। डॉ. राजेश पाण्डेय ने बताया कि राज्य में राज्य में एमडीए अभियान के साथ ही लिम्फेडेमा और हाइड्रोसील के मरीजों का प्रबंधन (एमएमडीपी) भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाता है।
फाइलेरिया मरीजों ने किए अनुभव साझा
इस अवसर पर गोपालगंज से विशेष रूप से आये फाइलेरिया सपोर्ट नेटवर्क के सदस्य रामसागर भगत एवं खुश्बू निसा ने अपने अनुभव मीडियाकर्मियों से साझा किया। उन्होंने फाइलेरिया से होने वाली परेशानियों को साझा करते हुए कहा कि फाइलेरिया से ग्रसित होने के बाद भी वह आम लोगों को एमडीए में दवा सेवन के विषय में जागरूक करती हैं। उन्होंने बताया कि स्कूल, पंचायत एवं अन्य सामुदायिक वैठक के जरिए अपनी समस्या का उजागर करते हुए दवा खाने से इंकार करने वालों को फाइलेरिया रोधी दवा सेवन के लिए तैयार कर रहे हैं। खुश्बू निसा ने जोर देते हुए बताया कि महिला होने के नाते कई बार उन्हें घर से निकलने में भी परेशानी होती है। इसके बावजूद भी वह लोगों तक पहुँच रही हैं एवं दवा सेवन को लेकर कई तरह की भ्रांतियों को दूर करने के प्रयास में जुटी है।
इस अवसर पर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, क्षेत्रीय कार्यालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार डॉ. रवि शंकर ने मीडिया सहयोगियों से एमडीए पर लोगों को जागरूक करने की अपील भी की।
कार्यशाला में मीडिया सहयोगियों के साथ प्रश्न-उत्तर सत्र संपन्न किया गया ।
कार्यशाला में, राज्य स्तरीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ ही, स्थानीय मीडिया सहयोगी, विश्व स्वास्थ्य संगठन, पीरामल स्वास्थ्य, प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल, लेप्रा, सीफार एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे ।
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