- जयप्रकाश नारायण श्रीवास्तव 1974 में कैसे बने लोकनायक जयप्रकाश नारायण
अशोक वर्मा
मोतिहारी : 1000 वर्ष की गुलामी के बाद जब भारत आजाद हुआ और जिन लोगों ने सत्ता की बागडोर थामी उन लोगों से जो कुछ भी बन पाया देश के लिए किया ।जहां एक भी उद्योग नहीं था उद्योग लगाया ,कई यूनिवर्सिटी खोले, सड़के बनी और देश को पटरी पर लाने का उन लोगों ने अपने सामर्थ्य भर प्रयास किया । आकांक्षाएं असीमित होती है। आजादी के बाद जन्मे युवा पीढ़ी जिन्हें विकास की बहुत हडबड़ी थी,और वे बहुत जल्द उचाई को छूना चाहते थे, लेकिन उसमे सबसे बडी रूकावट महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार थी। सत्ताधारी दल इसपर नियंत्रण नहीं कर पाये ,परिणाम यह हुआ कि आक्रोशित युवाओं ने 1974 मे हूकार भरी और सरकार के खिलाफ शंखनाद कर दिया। युवाओं का आक्रोश पहले गुजरात में फूटा फिर उसकी चिंगारी बिहार में गिरी।चंपारण के युवाओं ने नारा दिया बिहार भी गुजरात बनेगा और चंपारण शुरुआत करेगा।जैसा कि इतिहास गवाह हैं कि युवाओ की अंगड़ाई परिवर्तन का वाहक होती है।आजादी के 27 वर्षों के बाद युवाओं का आक्रोश फूट पड़ा। यद्यपि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता के 25 वें वर्षगांठ पर 1972 मे स्वतंत्रता सेनानी पेंशन योजना लागू की थी लेकिन वह भी व्यर्थ साबित हुआ और ज्यादातर सेनानी परिवार के बच्चे इस आंदोलन में कूद पड़े। जैसा माना जाता है कि युवा अपने उम्र के चंचलता में रहते हैं और बड़ा निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं इसलिए आदोलन मे एक नेतृत्व कर्ता की जरूरत महसूस की गई। उस समय के प्रसिद्ध सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण को युवाओं ने आमंत्रित किया और उनसे कहा कि आप हमारा नेतृत्व कबूल करें क्योंकि हम लोग अभी परिपक्व नहीं है हम बदलाव तो चाहते हैं परंतु हमें आपसे दिशा चाहिए,फिर हम नया भारत बनाएंगे। जयप्रकाश नारायण युवाओं की बातों से प्रभावित हुए और उन्होंने सशर्त आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। छपरा में एक मंच पर छात्र जब नेतागिरी मे आपस में ही उलझ गये तब मंच पर बैठे जय प्रकाश नारायण ने उनसे कहा कि जब एक मंच को आपलोग नही संभाल रहे है तो देश कैसे संभालेंगे? जयप्रकाश नारायण का यह वक्तव्य बहुत महत्वपूर्ण था और छात्र आंदोलन से जुड़े तमाम लोगों के लिए एक चेतावनी भी थी। जेपी के नेतृत्व में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई व्यापक तो हुई लेकिन अधुरी सफलता मिली सिर्फ सत्ता परिवर्तन होकर रह गया,व्यवस्था परिवर्तन नही हो सकी। जिन मुद्दों को लेकर आंदोलन हुआ वे मुद्दे पड़े के पडे रह गए ।उक्त आंदोलन में जयप्रकाश नारायण को लोकनायक की उपाधि इसलिए मिली कि वे लोक नेता बन गये थे, छात्रों को एकता के सूत्र मे बांधकर उन्होने आंदोलन चलाया, उस दौर मे यह बहुत बड़ी बात थी ।उस समय उन्होने एक फर्म भरवाया था जिसमे आंदोलनकारियो को सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हे चुनाव नही लडनी थी बल्कि सत्ता से बाहर रह करके सत्ता पर अपनी नजर और नियंत्रण रखनी थी ।उस समय तो आंदोलनकारियो ने शर्त मान ली लेकिन जैसे ही आपातकाल हटी और चुनाव घोषित हुई आदोलनकारी छात्रो मे चुनाव मे उतरने की होड मच गई।जयप्रकाश नारायण से किए गए वायदे को सभी ने ठुकरा दिया और अपने मनमानी पर वे चुनाव मे उतर गए ।यही पर आदोलन पर असफलता की मुहर लग गयी । बिहार में अभी 35 वर्षों से जेपी आंदोलन के नेताओ का राज है। वे लोग सत्ता का बागडोर तो संभाले लेकिन विहार को भ्रष्ट, बेरोजगार और मुल्य विहिन बनाकर छोड दिया। वर्तमान समय मंथन करने की आवश्यकता है। जयप्रकाश नारायण की 123 सी जयंती इस वर्ष मना रहे हैं लेकिन आजादी के बाद दूसरी आजादी की लड़ाई जो जेपी के नेतृत्व में लड़ी गई उसमें कहां भूल चुक हुई यह सब समझने और आत्म आलोचना करने की आवश्यकता है। मंथन करने की आज इसलिए ज्यादा जरूरी है कि एक बार फिर देश के युवा अंगड़ाई ले रहे हैं और वे बदलाव चाहते हैं। इस बार का बदलाव 1977 का बदलाव नहीं हो इसलिए इस जेपी जयंती पर विशेष समीक्षा होनी चाहिए।इतिहास की भूल से सबक लेने की आवश्यकता है।इस बार का बडा बदलाव पून:युवाओं के नेतृत्व में होने जा रहा है। उस समय का बदलाव अभावग्रस्त युवाओं के नेतृत्व में हुआ था जिसमें बहुत कुछ त्रुटियां रह गई थी ,उस समय गरीबी चरम पर थी महंगाई, भ्रष्टाचार,और वेरोजगारी भी चरम पर थी, आज महंगाई मुद्दा नहीं रह गया है इसलिए की सरकार अपनी तिजोरी खोल दी है चाहे वह गरीब हो या अमीर हो राशन फ्री,वेरोजगारी पेंशन ,स्टूडेंट को स्टाइपेंड, गरीब और महिला पेंशन ,विकलांग ,किसान और वृद्ध पेंशन ।और अब वोट के लिए 10-10 हजार राशी देने का दौर है।सरकार सबको दे रही है ।आज के किसान मजदूरों के घर में भी दो चार क्विंटल गेहूं या चावल जो उन्हें फ्री मिला हुआ है, उसका स्टाक जमा है। 5 बीघा जमीन रखने वालों के घर पर भी अनाज का उतना स्टॉक नहीं होगा जितना अभी गरीब कहलाने वालो के घरों में रखें हुये है।होनेवाले नये और बडे आंदोलन का सबसे बड़ा कारण यह है कि भ्रष्टाचार चरम पर है और अमीर गरीब के बीच की खाई बहुत गहरी हो गयी है। युवाओ का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। अनिश्चय का वातावरण है।युवा और छात्र एक बार फिर 1974 की तरह बहुत तेज से दौड़ लगाने के चक्कर में है। उनकी इच्छाएं अनंत है उपभोक्तावादी संस्कृति उनपर हावी होञ।एक जमाना था जब युवाओं का लक्ष्य गांधी ,नेहरू ,जयप्रकाश, लोहिया समान बनने का था परंतु आज युवाओं के आदर्श अंबानी अडानी हैं ।उनकी विलासितापूर्ण जीवन शैली , जमा अकूत धन संपदा युवाओं को आकर्षित कर रहा हैं।वर्तमान दौर खतरानाक हो चुका है पड़ोसी राष्ट्रों में आक्रोश का नमूना देखी जा चुकी है। भारत उपमहाद्वीप क्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा है वह भारत को भी प्रभावित करेगा चाहे वह बांग्लादेश हो चाहे वह लंका या फिर पड़ोसी राष्ट्र नेपाल या पाकिस्तान हो ,वहां जिस कदर आक्रोश देखा गया अगर भारत भ्रष्टाचार मुक्त होकर इमानदार विकास मार्ग पर नही चला तो भारत को भी उसी तरह के आक्रोश झेलना पड़ सकता है , युवा यह नहीं सोचते कि अंजाम क्या होगा, वे आग में कूद पड़ते हैं जिस तरह 74 में कूदे थे।उस समय जितने भी आदर्शवादी सिद्धांत वादी युवा आए जिन्होंने परीक्षा बहिष्कार किया, जेपी के विचार को जीवन में अपनाया उसमे थोड़े को पेंशन का लॉलीपॉप दे दिया गया , 1974 जयप्रकाश आंदोलन का पेंशन जिसे जेपी सेनानी पेंशन के रूप में जाना जाता है, पूरे देश में लागू किया गया ,यहीं पर डिवाइड इन रूल की पॉलिसी लागू हो गई ।जो लोग पेशन लिए वे गर्व करने लगे लेकिन बहुत लोग चंद दिनों के लिए जो जेल गए वे पेंशन से वंचित रह गए। यह भेदभाव हुआ। जेपी आंदोलन मे जो भी लोग थे वे नए आंदोलन का नेतृत्व कर सकते थे लेकिन उनको तोड़ दिया गया और भ्रष्ट व्यवस्था में थोडे को लॉलीपॉप देकर बैठा दिया गया।यद्यपि आज उनके विचारों की जरूरत नई पीढ़ी को थी लेकिन उनके विचार और तेवर पेंशन तक ही रह गए और वे अपने शेष जीवन को जैसे तैसे व्यतीत कर रहे हैं, होना यह चाहिए था कि जो आदोलनकारी एक दिन के लिए भी जेल गए उन्हें सरकार को पेंशन देनी चाहिए क्योंकि वे भी आंदोलन में थे । जेल तो गये।अधिवक्ता संघर्ष समिति ने बेल करा कर उनहे निकाल दिया ताकि आंदोलन को गति मिलती रहे लेकिन जब पेंशन लागू हुआ तो वे लोग पेंशन से वंचित हो गए और चंद लोगों को ही पेंशन मिल पाया। लोकनायक जेपी के साथ जो शब्द लगा वह आजादी के बाद ऐसे ही नहीं मिल गया जयप्रकाश नारायण ने गांधी को फॉलो किया था उनकी पत्नी प्रभावती और जेपी गांधी के निर्देश अनुसार जीवन बनाया। जिस तरह गांधी जी ने 32 वर्ष की उम्र में ब्रह्मचर्य जीवन का अनुपालन किया उन्हीं के नक्शे कदम पर जेपी और प्रभावती भी चले और ब्रह्मचर्य की जो शक्ति थी उस शक्ति के बदौलत जेपी ने बदलाव किया ।देश के युवाओ को नई सोच मिली साथ साथ देश को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा मिली ।जो लोग सत्ता के नशे मे चूर थे उनका भ्रम टूटा । जिस तरह से तानाशाही रवैया का इस्तेमाल करते हुए उन लोगों ने आपातकाल लगाया था आज देश का कोई भी सत्ताधारी दल आपातकाल लगाने का हिम्मत नहीं कर पाएगा । भारतीय संस्कृति में हिंसा की इजाजत ही नही है।आपातकाल हिसक कदम था।
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