मीडिया उन्मुखीकरण कार्यक्रम में एमटीपी एक्ट पर हुई विस्तृत चर्चा

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वैशाली। आईपास डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा औलिया अनुसंधान आध्यात्मिक केंद्र, पाउनी, हसनपुर, वैशाली के सहयोग से तथा समता ग्राम सेवा संस्थान, पटना के समर्थन में 30 मई 2025 को गांधी आश्रम, हाजीपुर में एक दिवसीय मीडिया उन्मुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत समता सेवा संस्थान के सचिव श्रघुपति सिंह द्वारा सभी मीडिया प्रतिनिधियों के स्वागत से हुई। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम “सांझा प्रयास” नेटवर्क का हिस्सा है, जो उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न जिलों में कार्यरत है और एमटीपी एक्ट 1971 के प्रति समुदाय, मीडिया एवं सरकारी अधिकारियों को जागरूक करने हेतु कार्य कर रहा है, ताकि असुरक्षित गर्भपात की घटनाओं को रोका जा सके और राज्य व देश की मातृ मृत्यु दर (एम एम आर) को कम किया जा सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि एमटीपी एक्ट का कार्यान्वयन पी सी पी एन डी टी  एक्ट (पूर्व-गर्भ और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994) के अनुरूप होना चाहिए। दोनों कानूनों को एकसाथ लागू करना आवश्यक है ताकि सुरक्षित गर्भ समापन की प्रक्रिया प्रभावशाली ढंग से की जा सके।
कार्यक्रम में ऋषव सिंह ने एमटीपी एक्ट के “डूज़ एंड डोन्ट्स” (क्या करें और क्या न करें) के साथ-साथ एक्ट की प्रमुख विशेषताओं पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह कानून मुख्य रूप से महिलाओं की स्वास्थ्य सुरक्षा और असुरक्षित गर्भपात को कम करने के लिए बनाया गया था। कानून के तहत बलात्कार, भ्रूण में विकृति, और महिला के जीवन या स्वास्थ्य को खतरे की स्थिति में गर्भ समापन की अनुमति है।
परिमल चंद्रा (वरिष्ठ शोधकर्ता, औलिया अनुसंधान आध्यात्मिक केंद्र) ने वर्ष 2021 में किए गए पांच प्रमुख संशोधनों पर प्रकाश डाला:
-गर्भ समापन की समय-सीमा 24 सप्ताह तक बढ़ाई गई, विशेष वर्गों जैसे बलात्कार पीड़िताओं, नाबालिगों, और विकलांग महिलाओं के लिए।
-गोपनीयता और निजता की रक्षा के प्रावधान।
-गर्भ समापन के कारणों का विस्तार, जिसमें भ्रूण में विकृति, बलात्कार, अनाचार आदि शामिल हैं।
-अविवाहित महिलाओं को अधिकार, अब वे भी गर्भ समापन करा सकती हैं।
-पंजीकृत चिकित्सा विशेषज्ञों की भूमिका सुनिश्चित, केवल योग्य स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ ही गर्भपात कर सकते हैं।
बिहार में स्थितियां चिंताजनक: शोध रिपोर्ट का खुलासा
कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि नवंबर 2018 की एक रिपोर्ट (गटमेकर संस्थान, 2015 डेटा पर आधारित) के अनुसार, 2015 में बिहार में अनुमानित 12.5 लाख गर्भपात हुए, जिनमें से अधिकांश (लगभग 79%) स्वास्थ्य संस्थानों के बाहर हुए। केवल 16% गर्भपात अस्पतालों में हुए, जिनमें से भी अधिकांश निजी संस्थानों में कराए गए।
रिपोर्ट के अनुसार:
लगभग 48% गर्भधारण बिहार में अनचाहे थे, जिनमें से 55% का अंत गर्भपात में हुआ।
केवल 31% स्वास्थ्य संस्थान जो गर्भपात से संबंधित सेवाएं प्रदान करते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं, जबकि 90% महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं।
सार्वजनिक संस्थानों में से 70% ने कोई गर्भपात सेवा नहीं दी।
ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे अस्पतालों की संख्या बहुत कम है जो गंभीर जटिलताओं को संभाल सकते हैं या बाद के चरणों में गर्भ समापन कर सकते हैं।
इस कार्यशाला के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि एमटीपी एक्ट और सुरक्षित गर्भपात के संबंध में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। मीडिया के माध्यम से यह जानकारी पंचायत स्तर तक पहुंचाई जानी चाहिए, ताकि महिलाएं सुरक्षित एवं कानूनी गर्भपात सेवाओं का लाभ उठा सकें और अपने जीवन को जोखिम में डालने से बच सकें।
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