Live News 24×7 के लिए मोतिहारी से कैलाश गुप्ता की रिपोर्ट।
मोतिहारी। कहावत है कि, करे कोई और, भरे कोई और….जी हाँ यह कहावत पूर्ण रूप से पूर्वी चम्पारण जिला के शिक्षा विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों पर सटीक बैठती है। बताया जाता है कि जिस मामले में पूर्वी चम्पारण के तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार का निलंबन हुआ है, उक्त मामले में वर्तमान अधिकारी और स्थापना शाखा के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए।
विदित हो कि विभागीय विशेष सचिव सह निदेशक प्रशासन सुबोध कुमार चौधरी के अनुसार उप विकास आयुक्त पूर्वी चम्पारण के द्वारा जिला पदाधिकारी को समर्पित जांच प्रतिवेदन के आधार पर संजय कुमार को निलंबित कर दिया गया है।
मजे की बात तो यह कि एक साधारण शिक्षक के विरुद्ध कारवाई हेतु वरीय अधिकारी के जांच प्रतिवेदन के बावजूद संबंधित शिक्षक से बार-बार स्पष्टीकरण की मांग किया जाता है, उसके बावजूद कारवाई का नतीजा ‘ढाक के तीन पात’ वाली होती है। जबकि सूचनानुसार मोतिहारी के तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार से किसी प्रकार का स्पष्टीकरण भी नहीं किया गया और आनन-फानन में इन्हे निलंबित कर दिया गया?
चौकाने वाली बात तो यह है कि विभागीय विशेष सचिव सह निदेशक प्रशासन सुबोध कुमार चौधरी के द्वारा गत 23 मई को पत्र जारी किया गया है तथा 27 मई को सूचना प्रसारित किया गया और 27 मई तक निलंबित पदाधिकारी कार्य करते? तो क्या इस बीच इनके द्वारा किए गए कार्यों/जारी पत्रों को मान्यता मिलेगी? मंत्री सुनील कुमार के द्वारा अनुमोदन के उपरांत श्री संजय का निलंबन हुआ है जबकि इन्ही के द्वारा मोतिहारी के कार्यकाल में संजय कुमार को उत्कृष्ठ कार्य के लिए दो बार सम्मानित भी किया गया है।
वही बताया जाता है कि संजय कुमार का तबादला 27 फरवरी 24 को हुआ है और बेंच-डेस्क की आपूर्ति व भुगतान कार्य मार्च में हुआ है। बेंच-डेस्क की गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति कराने के लिए श्री संजय के द्वारा एक पत्र 588 दिनांक 21-02-24 को जारी कर सभी प्रभारी प्रधानाध्यापक, चयनित संवेदक व संबंधित कनीय अभियंताओं को स्पष्ट आदेश दिया गया था तथा उसी दरम्यान इनका तबादला हो गया और इनके बाद पदस्थापित जिला शिक्षा पदाधिकारी संजीव कुमार के द्वारा पत्रांक 1013 दिनांक 22 मार्च 24 को एक पत्र निकाला गया जिसमें कहा गया था कि बेंच-डेस्क की गुणवत्ता की जांच 1 अप्रैल से किया जाएगा जबकि लगभग 39 करोड़ रुपये का भुगतान संवेदकों के बीच 31 मार्च तक कर दिया गया ऐसा क्यों? जब 22 मार्च को आपूर्ति किये गए सामग्रियों के गुणवत्ता की जांच के लिए पत्र निकाला गया तो भुगतान पूर्व जांच नही कराया गया क्यों?
यह भी बताया जाता है कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना के चहेते कर्मी तथा कुछ बिचौवलिए टाइप के शिक्षक (जिनकी आज भी कार्यालय में बोल-बाला है) के माध्यम से करोड़ों का वारा-न्यारा किया गया। यहाँ तक कि अ-सत्यापित एवं अलग-अलग विधालयों द्वारा उपलब्ध कराए गए एक ही फोटोग्राफ़ों, अभिश्रव की छायाप्रति पर भुगतान तथा जीएसटी एवं टिडीएस की कटौती किए बिना ही करोड़ों की भुगतान की गई है। यहाँ तक कि चहेते एक संवेदक को 31 मार्च को ही 44 लाख 5 हजार व 49 लाख 25 हजार तथा एक संवेदक को 46 लाख रुपये का अग्रिम भुगतान भी कर दिया गया, जबकि बिहार कोषागार संहिता 2011 में स्पष्ट है कि बिना विपत्र किसी प्रकार का अग्रिम भुगतान नहीं किया जा सकता है। वही संवेदकों को भुगतान में जीएसटी एवं टिडीएस की कटौती अनिवार्य है परंतु इसका अनुपालन नहीं किया गया क्यों?
इस बात की खुलासा 20 सितम्बर 24 को सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी बिहार के द्वारा स्थापना को दिए गए जांच प्रतिवेदन से हुआ है। जांच प्रतिवेदन में कहा गया है कि विभाग द्वारा प्रारंभिक विधालयों के लिए प्राप्त आवंटन मो0 28 करोड़ 87 लाख 70 हजार एवं माध्यमिक-उच्चतर माध्यमिक विधालयों के लिए प्राप्त आवंटन मो0 10 करोड़ 52 लाख 40 हजार रुपये यानि कुल 39 करोड़ 40 लाख 10 हजार रुपये का आवंटन प्रदान किया गया था। जांच के दौरान स्थापना कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए संचिका के अनुसार लेखा परीक्षा अधिकारी ने पाया कि प्रारंभिक विधालयों में 27 करोड़ 28 लाख 65 हजार 50 रुपये एवं माध्यमिक-उच्चतर माध्यमिक विधालयों में 8 करोड़ 65 लाख 51 हजार 680 रुपए का अभिश्रव में कई विसंगतियाँ पायी गई।
प्रतिवेदन में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि परिशिष्ठ ‘क’ में उपलब्ध कराई जाने वाली प्रतिवेदन के अनुसार बेंच-डेस्क क्रय हेतु जिला शिक्षा पदधिकारी के कार्यालय आदेश की स्व-अभिप्रमाणित छायाप्रति संलग्न किया जाना था परंतु नमूना जांच क्रम में किसी भी अभिश्रव के साथ उक्त प्रति संलग्न नहीं पाया गया। वही क्रय किए गए बेंच-डेस्क की फ़ोटो उपलब्ध कराया जाना था परंतु कुछ को छोड़कर कई अभिश्रव के साथ नहीं पाया गया। वही एक संवेदक लक्ष्य इटरप्राइजेज के द्वारा एक ही तरह के फ़ोटो कई अभिश्रव के साथ पाए जाने की बात काही गई है। जांच प्रतिवेदन में कहा गया कि धीरज इंटरप्राइजेज को किए गए भुगतान में जीएसटी एवं टिडीएस की कटौती नहीं कर मो0 30 हजार का अदेय लाभ प्रदान किया गया है।
वही सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी ने जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना से परिशिष्ठ ‘क’ में उपलब्ध कराई जाने वाले प्रतिवेदन में उल्लेखित दस्तावेजों के अभाव में अभिश्रव पर भुगतान किस प्रकार किया जा रहा है सहित परिशिष्ठ ‘क’ में उपलब्ध कराई जाने वाले प्रतिवेदन के अनुसार बेंच-डेस्क के अ-सत्यापित एवं अलग-अलग विधालयों द्वारा उपलब्ध कराए गए एक ही फोटोग्राफ़ों पर किस आधार पर अभिश्रव का भुगतान किया जा रहा है तथा अभिश्रव के छायाप्रति पर भुगतान के क्या कारण थे? जीएसटी एवं टिडीएस की कटौती किए बिना धीरज इंटरप्राइजेज को मो0 30 हजार का अदेय लाभ दिए जाने का क्या कारण था? आदि बिंदुओं पर मांग किया था परंतु सूचनानुसार जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना द्वारा अबतक इसका जबाब नहीं दिया गया है। बहराल देखना यह है कि क्या विभाग इस पर संज्ञान लेगी, दोषियों पर कारवाई करेगी…
