आध्यात्मिकता ही सफलता की कुंजी : बीके सीता

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शिवरात्रि महोत्सव में गूँजा आत्मशक्ति का संदेश
परमात्मा का अवतरण भारत की भूमि पर हो चुका है : बीके मीरा
अशोक  वर्मा
मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर  के भगवानपुर मे संचालित  प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सुख शांति भवन में 89वां शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन भव्य रूप से संपन्न हुआ। इस पावन अवसर पर सैकड़ों भाई-बहनों ने भाग लिया और परमात्मा शिव के दिव्य ज्ञान से अपने जीवन को नई दिशा देने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुख शांति भवन, आमगोला रोड की बी.के. सीता ने किया। उन्होंने परमपिता शिव के झंडे के नीचे उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य ने भौतिक सुख-सुविधाओं को ही असली खुशी समझ लिया है, जबकि सच्ची सुख-शांति तो आत्मिक चेतना में ही निहित है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में लोग बाहरी साधनों की तलाश में अपनी आंतरिक शांति को खोते जा रहे हैं, जिससे समाज में मानसिक तनाव और बीमारियाँ निरंतर बढ़ रही हैं। अगर हम अपने विचारों की दिशा को सकारात्मक रूप से बदलें, तो न केवल स्वयं को बल्कि पूरे समाज को एक नई ऊर्जा और सशक्त मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
भगवानपुर केंद्र की संचालिका बी.के. मीरा ने सभी को राजयोग की अनुभूति कराई और बताया कि योग से हम अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को संतुलित कर सकते हैं। यह हमें आत्मबल प्रदान करता है और हमारी सोच को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। बी.के. लक्ष्मी ने भी राजयोग के महत्व को विस्तार से समझाते हुए कहा कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का दिव्य मार्ग है, जिससे हम अपने हर कार्य में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
इस आयोजन में बिहार राज्य पूर्व सैनिक संघ के उपाध्यक्ष राम प्रवेश सिंह, मृत्युंजय कुमार, धीरज कुमार, रामशंकर भाई, बी.के. रामशंकर, बी.के. शिव कुमार, बी.के. संजय, बी.के. मुकेश, बी.के. पुष्पा, नीलम, वंदना समेत अनेक भाई-बहन उपस्थित थे, जिन्होंने इस आध्यात्मिक समागम में भाग लेकर आत्मचिंतन और जागरूकता का संदेश दिया।
आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में हम बाहरी दुनिया की चकाचौंध में खो चुके हैं। हमारी प्राथमिकताएँ भौतिक सुख-सुविधाएँ बन चुकी हैं, और इसी दौड़ में हम अपने अंदर की शांति और खुशियों को खोते जा रहे हैं। यही कारण है कि मानसिक तनाव, अवसाद और असंतोष बढ़ता जा रहा है। शिवरात्रि महोत्सव का संदेश हमें यही सिखाता है कि सच्ची खुशी बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि अपने भीतर की शक्ति को पहचानने में है।
अगर हम अपने जीवन में राजयोग और सकारात्मक चिंतन को अपनाएँ, तो न केवल स्वयं को, बल्कि अपने परिवार और समाज को भी एक सुखद दिशा दे सकते हैं। आध्यात्मिकता, आत्मअनुशासन और ईश्वरीय ज्ञान के मार्ग पर चलकर हम जीवन को शांति, प्रेम और सद्भाव से भर सकते हैं।
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