अशोक वर्मा
मोतिहारी : आदमी हूँ
आदमियत की कोशिश है
लंग कैंसर के स्टेज 4 का मरीज हूँ
लाइव हूँ
अलाइव हूँ
और क्या चाहिए….
ये शब्द रवि प्रकाश के हैं। रवि प्रकाश मे उनकी पत्रकारिता के शुरुआती समय से ही गजब की जीवटता और जिंदादिली थी। जीवन को बरतने वाले इंसान थे रवि। जैसी ज़िंदगी जी वैसी ही पत्रकारिता भी की।
रवि प्रकाश पूर्वी चंपारण के घोड़ासहन के रहने वाले थे। देश में विभिन्न जगहों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपनी पत्रकारिता के माध्यम से अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई और प्रतिष्ठा अर्जित की। रवि प्रकाश का जाना हमारे लिए एक निजी क्षति है। रवि प्रकाश सिर्फ पत्रकार नहीं बल्कि साहित्यकार भी थे और उनकी पत्रकारिता की शुरुआत हिंदुस्तान दैनिक घोड़ासहन रिपोर्टर के रूप में हुई थी।चुकि मूल रूप से वे घोड़ासहन के निवासी थे पिता शिक्षक थे और पुत्र से बहुत कुछ उम्मीद इसलिए रखे थे कि रवि प्रकाश काफी मेधावी छात्र रहे थे। व्यवहार, विचार के साथ-साथ समाज के विभिन्न विषयों पर उनकी विशेष पकड़ थी ।कला संस्कृति से लेकर राजनीति पर उनकी टिप्पणी आती थी। अपनी मजबूत लेखनी के बल पर पत्रकारिता मे वे आगे बढ़ते गये। वे प्रभात खबर के संपादक तक हुए और वर्तमान समय में बीबीसी के लिए कार्य कर रहे थे ।कैसर के चौथे स्टेज से उन्होंने युद्ध किया ।दृढ संकल्प और मनोबल के बदौलत उन्होंने लगभग चार वर्षो तक कैंसर को परास्त किया रहा जो विश्व का अपने आप में एक रिकॉर्ड है। चौथी स्टेज का कैंसर का मरीज कैसे जिंदा है डॉक्टर आश्चर्य चकित थे लेकिन रवि की जिंदादिली ने उन्हें जीवीत रखा।अततः रवि प्रकाश मौत के आगोश में समा गए।जैसे ही मृत्यु की खबर आई पत्रकारिता क्षेत्र के लोगों में मायूसी छा गई काफी लोगों ने शोक संवेदना व्यक्त की।सुख सुविधा व्यक्त करने वालों मे टाइम्स आफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभूषण पांडे ,वरिष्ठ पत्रकार अशोक वर्मा, हिंदुस्तान के रिपोर्टर शंभू नाथ झा ,दैनिक जागरण के प्रभारी संजय उपाध्याय ,प्रभात खबर के व्यूरो सच्चिदानंद सत्यार्थी, इंतजारूल अहमद, दैनिक भास्कर के रितेश वर्मा ,गौरी शंकर प्रसाद ,सिद्धार्थ वर्मा,पत्रकार सागर सूरज ,गांधी संग्रहालय के सचिव बृजकिशोर सिह, नगर विधायक प्रमोद कुमार,दैनिक जागरण के पूर्व प्रभारी सुदिष्ट ठाकुर, कुणाल प्रताप सिंह, आदि है
