विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग में शास्त्रचूड़ामणि विद्वान् के रूप में डॉ जयशंकर झा ने किया योगदान

Live News 24x7
5 Min Read
  • राजेश मिश्रा की रिर्पोट
संस्कृत प्रेमियों ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए डॉ जयशंकर को दी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में पूर्व संस्कृत- प्राध्यापक डॉ जयशंकर झा ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा नियुक्त ‘शास्त्रचूड़ामणि विद्वान्’ के पद पर योगदान दिया। ज्ञातव्य है कि संस्कृत भाषा एवं साहित्य के प्रचार- प्रसार के उद्देश्य से इस पद पर अवकाश प्राप्त संस्कृत- विद्वान् का साक्षातकार के उपरांत नियुक्ति की जाती है तथा उनके मानदेय का भुगतान भी केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा ही किया जाता है। इस पद पर नियुक्ति दो वर्षों के लिए की जाती है तथा एक वर्ष का सेवा विस्तार भी दिया जाता है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ अजय कुमार पंडित को प्रेषित पत्र के आलोक में डॉ जयशंकर झा ने आज विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ आर एन चौरसिया के समक्ष अपना योगदान  दिया। इस अवसर पर डॉ मित्रनाथ झा, डॉ ममता स्नेही, डॉ मोना शर्मा, उज्ज्वल कुमार, सदानंद विश्वास, मंजू अकेला, विद्यासागर भारती, योगेन्द्र पासवान तथा उदय कुमार उदेश आदि उपस्थित थे, जिन्हें श्यामाभोग प्रसाद से मुंह मीठा कराया गया।
योगदान के उपरांत डॉ जयशंकर झा ने कहा कि मेरी नियुक्ति दो बार की अंतरवीक्षा के बाद हुई है। मेरी नियुक्ति महामहोपाध्याय पंडित मतिनाथ झा विरचित ‘गणेशसंभवम्’ नामक सात अंकों के नाटक की पांडुलिपि के संपादन हेतु हुई है। मुझे इस नाटक का हिन्दी और अंग्रेजी में रूपांतरण भी करना है। साथ ही इस नाटक की कथावस्तु का स्रोत, ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार का परिचय, आश्रयदाता दरभंगा महाराज रमेश्वर सिंह का परिचय तथा नाट्य शास्त्रीय समीक्षा आदि भी लिखनी है। उन्होंने कहा कि पीजी संस्कृत विभाग में योगदान कर पुनः काम करना मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।
मिथिला शोध संस्थान, दरभंगा के पूर्व शास्त्रचूड़ामणि विद्वान् डॉ मित्रनाथ झा ने डॉ जयशंकर को पाग, चादर एवं लेखनी आदि से स्वागत करते हुए हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त किया और कहा कि सेवानिवृत्ति के पश्चात् इस पद पर किसी भी शिक्षाविद् की नियुक्ति का उद्देश्य संस्कृत का अध्यापन अथवा किसी चयनित पांडुलिपि के संपादन कार्य रहा है। डॉ जयशंकर झा की नियुक्ति से केन्द्र सरकार की इस योजना के माध्यम से बहुमूल्य पांडुलिपि ‘गणेशसंभवम्’ का सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक महत्व बढ़ेगा।
बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के राज्य सलाहकार उज्ज्वल कुमार ने कहा कि डॉ जयशंकर झा बिहार से एकमात्र उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में चयनित होना सम्पूर्ण मिथिला के लिए बड़े गौरव एवं प्रसन्नता की बात है। इससे पाषाणी अहिल्या रूपी पांडुलिपि का न केवल उद्धार होगा, बल्कि संस्कृत जगत् और संबर्धित एवं समुन्नत होगा।
प्रभारी संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आर एन चौरसिया ने डॉ जयशंकर का योगदान स्वीकार करते हुए कहा कि इनके योगदान से विभागीय परिवार अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। डॉ झा का समुचित मार्गदर्शन विभाग को भविष्य में आगे की ओर ले जाएगा। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली का विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग से पूर्व में हुए एक एमओयू के तहत यहां अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण केन्द्र चल रहा है, जिससे छात्र- छात्राएं लाभान्वित हो रहे हैं। वहीं डॉ झा के योगदान से दूसरा एमओयू भी साइन हुआ है, जिनके हर तरह के वित्तीय भार केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ही वहन कर रहा है।
डॉ झा के शास्त्रचूड़ामणि विद्वान् के पद पर चयनित होने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बधाई देने वालों में पूर्व कुलपति प्रो शशिनाथ झा एवं प्रो एसपी सिंह, संदीप यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो समीर कुमार वर्मा, आचार्य सुदर्शनजी महाराज, कुलसचिव डॉ अजय कुमार पंडित, डॉ सुरेन्द्र प्रसाद सुमन, प्रो रामनाथ सिंह, डॉ घनश्याम महतो, डॉ आर एन चौरसिया, प्रो जयप्रकाश नारायण, प्रो विद्यानाथ झा, प्रो राम भारत ठाकुर, डॉ मुकेश प्रसाद निराला, डॉ एडीएनसी सिंह, डॉ शिव किशोर राय, अजय कुमार कश्यप, डॉ अंजू अग्रवाल, पूर्व डीडीसी डॉ विवेकानंद झा, डॉ संत कुमार चौधरी, कमलाकांत झा तथा नवीन सिन्हा आदि के नाम शामिल हैं।
118
Share This Article
Leave a review

Leave a review

Your email address will not be published. Required fields are marked *