- गया जिला में जलवायु अनुकूल ज्वार, बाजरा, सांवा, मक्का, स्वीट कॉर्न, एवं बेबी कॉर्न की खेती को बढ़ावा।
गया। कृषि विज्ञान केन्द्र, मानपुर में खरीफ अभियान 2024 की शुरुआत संयुक्त निदेशक, मगध प्रमंडल, गया के कर कमलों द्वारा किया गया। सभागार में उपस्थित कृषि कर्मियों का स्वागत करते हुये उन्होंने कहा कि जलवायु के बदलते मे परिवेश में अन्न मोटा अनाज की खेती एक अच्छा विकल्प होगा। कम वर्षा होने पर भी मक्का एवं अन्य मोटे अनाज की खेती की जा सकती है। गया जिला कम जल जमाव का क्षेत्र है ऐसे में मक्का की खेती बेहतर विकल्प है। किसान अपने इच्छा से चयनित प्राईवेट कम्पनी के संकर मक्का के बीज क्रय करने पर अनुदान का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि मिट्टी नमूना संग्रहण में गया जिला राज्य में प्रथम स्थान पर है। जिला कृषि पदाधिकारी, गया ने ज्वार, बाजरा, मड़ुआ, मक्का स्वीट कॉर्न एवं बेबी कॉर्न की खेती पर कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे अनुदान के बारे बताया गया है। उन्होंने कहा कि खरीफ 2024 में 23850 एकड़ में मक्का की खेती लिये अनुदान पर बीज उपलब्ध कराया जा रहा है एवं ज्वार, बाजरा, रागी,मड़ुआ एवं सांवा की खेती पर प्रत्यक्षण कार्यक्रम चलाया जाना है, जिसमें बीज उपादान के क्रय पर अनुदान के रुप में 2000 रुपये एवं इसकी खेती करने पर प्रोत्साहन के रुप में 2000 रुपये दिया जायेगा। गया जिला में मुख्य फसल धान की खेती के लिये लगभग 180000 हे० लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मक्का एवं मिलेट्स की सभी योजनाओं का कार्यान्वयन क्लस्टर में किया जाना है।उप निदेशक कृषि, बामेति, पटना शारदा शर्मा ने कहा कि जलवायु के बदलते परिवेश में मक्का एवं मिलेट्स की खेती में सेन्टर आंफ एक्सेस आसीआईआरसीटी मायापुर, टनकुप्पा से गया जिला को काफी मदद मिलेगी। मिलेट्स की खेती क्लसटर में कराने का मुख्य उद्देश्य बाजार को विकसित करने का है, कम उत्पादन होने पर प्रोसेसिंग की समस्या होगी। क्लस्टर में उत्पादन होने पर प्रोससिंग यूनिट आसानी से लगाया जा सकता है, और उत्पादन की खपत के लिये बाजार भी आसानी से मिलेगी।आइसी आर सी टी हैदराबाद के वैज्ञानिक डा० शोभन सज्जा एवं डा० राहुल प्रियदर्शी ने कहा कि मिलेट्स की खेती क्यारियों को बनाकर पंक्ति में बोआई से करने पानी के जमाव की समस्या नही होती है। मिलेट्स की बोआई मल्टी क्रॉप प्लान्टर यंत्र का उपयोग सबसे फायदेमंद है। जल जमाव की स्थिति में क्यारियों से पानी निकालना आसान होता है। सेन्ट्र आफ एक्स, मायापुर बहुत से प्रकार के मिलेट्स की खेती की जा रही है जिसमें गया जिला के जलवायु के अनुकूल ज्वार, बाजरा रागी,मड़ुआ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने मिलेट्स की खेती में उर्वरता प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, कटाई एवं दौनी के बारे में विस्तृत जानकारी दी है।डा० एस०बी० सिंह, मुख्य वैज्ञानिक, के०वी०के०, आमस ने बताया कि अच्छे बीज का उपयोग करने वाबजूद फसल अच्छी नही हो रही है। इसका मुख्य कारण है मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमजोर रहना है। ज्यादा रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो गयी है। इसके लिये आवश्यक है कि किसान ढ़ैंचा की खेती करें, इससे मिट्टी एवं पौधों का संतुलि मात्रा में नाईट्रोजन मिल सकेगा। ढ़ैंचा की खेती करने लिये सभी कृषि कर्मियों को खुद भी जागरुक होना है किसानों को भी जागरुक करना है। तभी जलवायु अनुकूल खेती करके धान, मोटे अनाज फसल का उत्पादन एवं उत्पादकता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण ने बताया कि इस खरीफ मौसम में विभाग की सभी योजनाओं को मक्का एवं मिलेट्स की खेती को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। पौधा संरक्षण कार्यालय द्वारा बीज टिकाकरण अभियान, आर के भी वाइ योजना अन्तर्गत बगीचों में समेकित कीट प्रबंधन मिशन के तहत उद्यानक फलों, आम एवं अमरुद पर 75 प्रतिशत अनुदान पर किटनाशक का छिड़काव करेंगे। किट,व्याधि प्रबंधन हेतु 75 प्रतिशत अनुदान पर फेरोमैन ट्रैप्स, स्टिकी ट्रैप्स एवं लाइफ टाईम ट्रैप्स पर किसानों को उपलब्ध कराया जायेगा। आज के खरीफ कर्मशाला में सुधीर कुमार, संयुक्त निदेशक शष्य, मगध प्रमंडल, गया, उप निदेशक कृषि, बामेति, पटना शारदा शर्मा, ICRISAT, हैदराबाद के वैज्ञानिक डा० शोभन सज्जा एवं डा० राहुल प्रियदर्शी, डा० एस०बी० सिंह, मुख्य वैज्ञानिक, के०वी०के०, आमस, डा० मनोज कुमार राय, मुख्य वैज्ञानिक -सह प्रधान, के०वी०के०, मानपुर, सहायक निदेशक, रसायन, सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण, आनन्द कुमार, सहायक निदेशक कृषि अभियंत्रण, सभी अनुमंडल कृषि पदाधिकारी, सभी प्रखंड कृषि पदाधिकारी, सभी कृषि समन्वयक, बीटीएम, एटीएम एवं किसान सलाहकार तथा प्रखंड स्तरीय कर्मी उपस्थित हुये है।
