कालाजार के लक्षणों को नजरअंदाज करना जानलेवा

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  • राज्य में कालाजार उन्मूलन के लिए दो सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस कार्यरत 
  • 27 हजार स्वास्थ्यकर्मी प्रशिक्षित, नियमित किया जा रहा क्षमतावार्धन 
  • रोग के विभिन्न पहलुओं व दवाओं पर आरएमआरआई में निरन्तर शोध 
पटना। दो साल पहले बिहार से कालाजार उन्मूलन की घोषणा भले हो गयी हो लेकिन यह आज भी जानलेवा बना ही हुआ है. इसके लक्षणों को नजरअंदाज करना किसी के लिए भी घातक हो सकता है. राज्य में इसीलिये अब सारण और पूर्णिया में कालाजार उन्मूलन के लिए सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस कार्यरत हैं तथा लगभग लगभग 27 हजार स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है. उल्लेखनीय है कि किसी प्रखंड में प्रति दस हजार की आबादी पर जब एक से कम मरीज कालाजार के मिलते हैं तो, इस स्थिति को कालाजार उन्मूलन हुआ मान लिया जाता है.
वेक्टर जनित रोग नियंत्रण के अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि ऐसे व्यक्ति जिन्हें लंबे समय से बुखार रह रहा हो वे अविलंब नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर अपनी जांच कराएँ. कालाजार के लक्षणों को नजरंदाज करना अथवा इसे हल्के में लेना जानलेवा साबित हो सकता है. उन्होंने बताया कि कालाजार उन्मूलन की स्थिति बरक़रार रखने के लिए राज्य में लगातार स्वास्थ्यकर्मियों का क्षमतावर्धन किया जा रहा है. राज्य में अभी तक 19,500 आशाकर्मी एवं 7,400 कालाजार इनफॉर्मर को प्रशिक्षित किया जा चुका है. इसके अतिरिक्त 95 चिकित्सकों को एकल खुराक एमबीजोन से इलाज करने के लिए राजेन्द्र मेमोरियल मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरएमआरआई) द्वारा प्रशिक्षित किया गया है. इसके अलावा, पीसीआई इंडिया द्वारा गाँव एवं प्रखंड स्तर पर जनप्रतिनिधियों का कालाजार के बारे में उन्मुखीकरण किया जा रहा है.
कालाजार उन्मूलन में सामुदायिक सहयोग आवश्यक:
डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि केंद्र सरकार के निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप बिहार से वर्ष 2022 में ही कालाजार के उन्मूलन की घोषणा हो चुकी है. लेकिन इस स्थिति को यथावत बनाये रखने के लिए सामुदायिक सहयोग भी जरूरी है. स्वास्थ्य विभाग स्वास्थ्यकर्मियों का नियमित क्षमतावार्धन एवं उन्मुखीकरण, सामुदायिक स्तर तक कालाजार निरोधी दवाओं की उपलब्धता एवं सघन अनुश्रवण सुनिश्चित कर रही है.
कालाजार मरीजों के लिए एक छत के नीचे सारी सुविधा:
कालाजार उन्मूलन के लिए कार्यरत वैश्विक संस्था “ड्रग्स फॉर नेफलेक्टेड डिजीजेज इनिशिएटिव” (डीएनडीआई) की राज्य समन्वयक मनीषा शर्मा ने बताया कि कालाजार मरीजों को एक छत के नीचे सभी संबंधित चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए राज्य में सारण एवं पूर्णिया में सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस संचालित है. पहले कालाजार से संबंधित कई तरह की जांच के लिए संदिग्ध मरीजों को पटना जाना पड़ता था. अब सारण एवं पूर्णिया में सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस संचालित होने से उक्त जिलों के साथ आस पास के क्षेत्रों के संदिग्ध मरीजों को भी सहूलियत हो गयी है. इन सेंटरों पर सुविधाओं का नियमित उन्नयन किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि सारण स्थित सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस में कालाजार मरीजों के लिए अलग से वार्ड संचालित है जहाँ प्रशिक्षित चिकित्सकों एवं नर्सेज द्वारा उत्कृष्ट चिकित्सीय सुविधा प्रदान की जा रही है. राजेन्द्र मेमोरियल मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरएमआरआई), पटना के निदेशक डॉ. कृष्णा पांडेय ने बताया कि संस्थान में कालाजार के विभिन्न पहलुओं तथा दवाओं पर लगातार शोध किये जा रहे हैं.
निगरानी, उपचार एवं एक्टिव केस सर्च है जरूरी:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्टेट एनटीडी कोऑर्डिनेटर डॉ. राजेश पांडेय ने बताया कि राज्य के कालाजार उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करने का सीधा अर्थ है कि राज्य में कालाजार अब एक सामुदायिक स्वास्थ्य समस्या नहीं है. उन्होंने बताया कि प्रखंड स्तर पर प्रति दस हजार की आबादी में कालाजार का एक से कम मरीज मिलने पर उन्मूलन की स्थिति आती है. निगरानी, उपचार एवं एक्टिव केस सर्च द्वारा कालाजार को दोबारा फैलने से रोका जा सकता है.
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