अशोक वर्मा
मोतिहारी : भारतीय संस्कृति में मरजीवा भोग लगाकर फुलादान की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है। जीते जी अपने वजन के बराबर सामान के साथ अर्थ दान करने को ही फुला दान कहते है। यह परंपरा लंबे समय से देश में चल रही है। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिन्हें घर परिवार बाल ,बच्चे, पोता ,पोती ,नाती नतीनी के साथ पूरा भरा पूरा परिवार रहता है वावजूद वह व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप में अपने जीवन में ही दान पुण्य करके भविष्य में होने वाले श्राद्ध और दान पुण्य का विधि विधान संपन्न करता है। वैसे मृत्यु परांत वंशज या उत्तराधिकारी विधि विधान से दान पुण्य करते हैं बावजूद फूलादान कराने वाला व्यक्ति इस विधि को अपने जीवीत अवस्था मे हीं करके संतुष्ट होता है।
नगर के बनियापट्टी निवासी सत्य प्राकाश ने यह रसम नगर के बनियापट्टी स्थित ब्रह्माकुमारीज सेवाकेंद्र पर उपस्थित ब्रह्मा वत्सो की उपस्थिति मे किया।उक्त अवसर पर सत्य प्रकाश भाई की पत्नी, सेवाकेंद्र प्राभारी बीके वीभा,बीके सुनीता अगरवा,बीके बंशीधर भाई,बीके मंजू,बीके रंजन,बीके जगन्नाथ भाई, बीके ललन भाई, बीके गीता माता, बीके शिव पूजन भाई अधिवक्ता के अलांवा अन्य थे।
