अशोक वर्मा
मोतिहारी : मुंशी सिंह महाविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में प्रो.रामाश्रय प्रसाद सिंह स्मृति व्याख्यानमाला सह प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन संपन्न हुआ।विदित हो कि प्रतिभा सम्मान के अंतर्गत स्नातक प्रतिष्ठा और स्नातकोत्तर हिंदी विषय में महाविद्यालय स्तर पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र छात्राओं को यह सम्मान नकद राशि के रूप में प्रदान किया जाता है।इस वर्ष स्नातक प्रतिष्ठा हिंदी के लिए गोल्डेन कुमारी और स्नातकोत्तर हिंदी के लिए चंदन कुमार को कुल 10/10 हजार की राशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की गई।यह सम्मान हिंदी के ख्यातनाम अध्यापक रह चुके प्रो.रामाश्रय प्रसाद सिंह के सुपुत्र सुबोध कुमार के सौजन्य से दिया जाता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता प्रो.(डॉ.)सतीश कुमार राय,संकायाध्यक्ष,मानविकी,बी. आर. ए.बिहार विश्विद्यालय,मुजफ्फरपुर,विशिष् ट अतिथि राम कथा मर्मज्ञ प्रो.रामनिरंजन पाण्डेय,प्रो.सुरेशचंद्र प्रसाद, डॉ.विनय कुमार और प्राचार्य प्रो.अरुण कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।इसके पश्चात अंगवस्त्रम और पुष्पगुच्छ देकर अतिथियों का स्वागत किया गया।वक्ताओं ने प्रो.रामाश्रय प्रसाद सिंह के चित्र पर पुष्पांजलि देकर श्रद्धा निवेदित की।व्याख्यानमाला के विषय”चंपारण की साहित्य साधना” पर बोलते हुए मुख्य वक्ता प्रो.सतीश कुमार राय ने कहा कि अच्छा समीक्षक और विद्वान होने से बेहतर है एक अच्छा अध्यापक और अच्छा आदमी होना।और इस दृष्टि से प्रो.रामाश्रय बाबू एक अत्यंत कर्मनिष्ठ अध्यापक और बेहतरीन आदमी थे बिल्कुल अजातशत्रु।उन्होंने रामकथा के वाचक के रूप में अपरिमित ख्याति अर्जित की थी।चंपारण में साहित्य साधना की एक अविछिन्न परंपरा रही है जिसमें महर्षि वाल्मीकि,सरभंग संप्रदाय, गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह “नेपाली” और फिर पंडित रमेशचंद्र झा ने यहां के साहित्यिक धारा को पुष्ट करने का कार्य किया है।चंपारण हितकारी नामक प्रथम हिंदी पत्र ने भी अपनी प्रगतिशीलता की मिसाल कायम की थी।खड़ी बोली हिंदी के विकास में पंडित चंद्रशेखरधर मिश्र द्वारा संपादित विद्या धर्म दीपिका ने भी बड़ा कार्य किया था।चंपारण के कीर्तिस्तंभ पुस्तक के द्वारा स्वयं मैंने भी चंपारण की साहित्यधारा को दर्शाने का विनम्र प्रयास किया है।सिद्ध साहित्य के कई साधक भी चंपारण के ही थे।चंपकप्पा चंपारण के पहले सिद्ध कवि थे जिन्होने जाति प्रथा का घोर विरोध किया था।मत्स्येंद्रनाथ भी यहीं हुए थे।नाथ साहित्य का भी यहां भरपूर विकास हुआ था।महाकवि विद्यापति बहुत दिनों तक सुगांव में रहे थे और पदावली के बहुत सारे पदों की रचना की थी। पीर मोहम्मद मूनिस ने हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़ा योगदान किया था। कार्यक्रम को प्रो.रामनिरंजन पाण्डेय,प्रो.सुरेशचंद्र प्रसाद और सुबोध कुमार ने भी संबोधित किया।कार्यक्रम का कुशल संचालन डा.विनय कुमार और स्वागत व्याख्यान हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.मृगेंद्र कुमार ने दिया।अंत में प्राचार्य डॉ.अरुण कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।