मोतिहारी छतौनी के पातर झिझिया

3 Min Read
अशोक वर्मा
मोतिहारी : नवरात्रा चढ़ने के साथ नगर के गली मोहल्ले में माथे पर छिद्र युक्त घड़ा जिसका नाम” झिझिया” है, रख करके कन्याएं गीत गाते हुए मस्ती में निकल पड़ी है। मिट्टी के घड़े मे अपने हाथ से सैकड़ो छेद कर उस घडे के भीतर दीपक जलाकर उसे  माथे पर रखकर समूह में बच्चियों निकलती है। झिझिया  नृत्य करते घर-घर में बच्चियां जाती है और गीत गाती है। लोग उसे दक्षिणा स्वरूप कुछ राशि और चावल आदि देते है।यह पुरानी परंपरा है  इस परंपरा को झिझिया कहा जाता है।
चंपारण में एक कहावत है कन्या वह जो 21 कुल का उद्धार करें ।झिझिया के बारे में बताया जाता है कि यह एक लोक परंपरा है जिसके अंतर्गत कन्यायें  अपने मोहल्ले वासियों के मंगलमय और सुरक्षित जीवन की कामना करती है । दशहरा के मौके पर ऐसी मान्यता है कि जादूगर और डायन जोगिन अपना प्रभाव छोड़ते हैं। उसके प्रभाव से सुरक्षा के लिए कन्याएं झिझिया माथे पर रखकर मोहल्ले के चारों ओर घेरा बनाकर के राउंड लगाती हैं ताकि  उस घेरे के अंदर किसी भी जोगिन या जादूगर का जादू नहीं चले और हमारे मोहल्ले के लोग सुरक्षित रहे।
 झिझिया परंपरा  मिथिला का लोक परंपरा है इसमे गीत और नृत्य दोनो होते है । चंपारण मिथिला से सटा हुआ जिला है इसलिए यह लोक परंपरा चंपारण के गांव में आज भी जीवित है।  इस परंपरा को जिंदा रखने में गरीब घर की बच्चियां हीं आगे  है , वे हीं इस परंपरा को अभी भी जिंदा रख  लेकर के चल रही हैं ।इसमें अमीर घर की बच्चियां शामिल नहीं होती है ,लेकिन शौक के तौर पर सोशल मीडिया के युग में उन झिझिया वाली के साथ बैठ तस्वीर जरूर खिंचवाती है । आज पुराने लोक परंपराओं के विलुप्त होते दौर में आज भी यह लोक परंपरा जिंदा है । आधुनिकता के इस वर्तमान दौर में संध्या समय कन्याओं के माथे पर  सजी-धजी छिद्र युक्त झिझिया को देख आम लोग थोड़ा बहुत आश्चर्यचकित होते हैं लेकिन उन्हें इस बात की खुशी होती है कि इस लोक परंपरा को ये कन्यायें है जिंदा रखे हुये है।
32
Share This Article
Leave a review

Leave a review

Your email address will not be published. Required fields are marked *