- चकिया, तेतरिया, बंजरिया, आदापुर, तुरकौलिया व अन्य स्थानों में खुला क्लीनिक
- जाँच, इलाज के बाद एमएमडीपी किट का हो रहा वितरण
मोतिहारी । जिले में फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत हाथीपाँव एवं हाइड्रोसील के मरीजों की परेशानी को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से सभी 27 पीएचसी में एमएमडीपी क्लीनिक खोले जाने की मांग की जा रही थीं। जिसपर विचार करते हुए जिले में तत्काल चकिया, तेतरिया, बंजरिया,आदापुर, तुरकौलिया व अन्य स्थानों में एमएमडीपी क्लीनिक खोली गईं है। जिले के डीभीबीडीसीओ डॉ शरतचंद्र शर्मा ने बताया कि एमएमडीपी क्लीनिक खुलने से हाथीपाँव एवं हाइड्रोसील के मरीजों की जाँच व इलाज में आसानी होंगी। अब पीएचसी क्षेत्र के मरीजों को किसी प्रकार की तकलीफ होने पर उन्हें दूरदराज क्षेत्रों में भटकना नहीं पड़ेगा। साथ ही अनावश्यक खर्च से भी राहत मिलेगी। उन्होंने बताया कि जिले के फाइलेरिया प्रभावित प्रखंडों में फाइलेरिया मरीजों की लाइन लिस्टिंग के साथ ही संभावित मरीजों की खोज भी की जा रही है। वहीं फाइलेरिया के चिह्नित मरीजों के बीच स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा एमएमडीपी किट वितरित की जा रही है।
जिले में फाइलेरिया के हैं 7343 मरीज:
भीडीसीओ सत्यनारायण उराँव, धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि जिले में हाथीपांव के 6709 एवं हाइड्रोसील के 634 मरीज हैं। जिन्हें अब एमएमडीपी क्लीनिक पर बुलाकर जांच की जा रही है। साथ ही अल्बेंडाजोल एवं डीईसी की दवाई जाती है। वहीं हाथी पांव के गंभीर मरीजों को एमएमडीपी किट, इस्तेमाल करने के तरीके के साथ निः शुल्क दी जा रही है। उन्होंने बताया कि इस साल 2023 में केसरिया में 38, कल्याणपुर 51, मेहसी 34, सुगौली 50, तुरकौलिया 180, बंजरिया 21,चकिया 44, संग्रामपुर 300, तेतरिया में 24 किट का वितरण किया जा चुका है।
तुरकौलिया प्रखंड में 180 एमएमडीपी किट वितरित:
केटीएस ओमकार कुमार ने बताया कि हाथीपाँव के मरीजों के बीच तुरकौलिया प्रखंड में 180 एमएमडीपी किट अभी तक वितरित की गई है। वहीं उन्होंने मौके पर साफ सफाई एवं देखभाल के तरीके बताए।
प्रारंभिक लक्षणों की समय पर पहचान जरूरी:
जिले के डीभीबीडीसीओ डॉ शरत चंद्र शर्मा ने बताया कि फाइलेरिया ठीक नहीं होने वाला एक गंभीर रोग है। जिससे बचने के लिए सभी निर्धारित आयु वर्ग के लोगों को अल्बेंडाजोल एवं डीईसी की गोली स्वास्थ्य कर्मियों की देख रेख में सेवन करनी चाहिए।उन्होंने बताया कि इसके उन्मूलन के लिए उसके प्रारंभिक लक्षणों की समय पर पहचान जरूरी है। यदि समय पर इस बीमारी का पता लगा लिया जाए, तो उचित प्रबंधन और दवाओं के सेवन से इसे गंभीर रूप लेने से पहले रोका जा सकता है।
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