मोतिहारी : स्वाधीनता संग्राम में चंपारण का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। चंपारण में स्वतंत्रता संघर्ष का इतिहास 1857 में आरंभ बताया जाता है । 18 57 के पूर्व भी जिले में बगावत हुए और स्वतंत्रता की लड़ाई धीरे-धीरे अपने प्रकाष्ठा पर बढ़ती गयी। यद्यपि इसे रोकने का भी प्रयास किया गया।1857 के सिपाही विद्रोह के बाद अंग्रेजों का दमन जोरदार ढंग से हुआ। काफी लोग मारे गए।दमन के कारण आंदोलन कुछ दिनों के लिए दब गया लेकिन 1900 ई० आते आते सुलगता आंदोलन ज्वालामुखी सामान बन गया । गांधी बापू के नेतृत्व में 1917 में सफल चंपारण सत्याग्रह चला। बापू के आगमन के साथ लोगों को एक नई शक्ति मिली, स्वतंत्रता सेनानियों में नया जोश भरा ।उसी कड़ी में जिला मुख्यालय मोतिहारी से सटा हुआ गांव पटपरिया के नवयुवक नरसिंह पाठक अपने दल बल मित्रों के साथ आंदोलन में कूद पड़े ।महावीर पाठक के पुत्र नरसिंह पाठक का जन्म 1911 में हुआ था तथा वे लगातार आंदोलन से जुड़े रहे ।गांधीजी के जाने के बाद भी वे सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेते रहें और नमक सत्याग्रह में गिरफ्तार किए गए तथा 8 माह की सजा हुई उसके बाद 6 माह तक विचाराधीन बंदी भी रहे। जेल से छूटने के बाद भी वे लगातार आंदोलन से जुडे रहे।देश की आजादी के लिये पूरी तरह से समर्पित रहे। भारत माता की बेड़ी को काटने के लिए लगातार प्रयासरत रहे ।सरकारी कार्यालयों पर झंडा फहराना ,सरकारी कार्य में बाधा डालना आदि उनकी दिनचर्चा थी।काफी दिनों तक वे भूमिगत भी रहे थे।गिरफ्तारी के बाद उन्होंने हंसते हुए जेल की सजा काटी ।देश जब आजाद हुआ तब आजाद भारत के निर्माण के लिए भी उन्होंने बहुत काम किया।
उनको 4 पुत्र हुए जिसमें आनंद किशोर ,हरेंद्र किशोर,विजय किशोर एवं कौशल किशोर पाठक हुए। तीन पुत्री की प्राप्ति हुई जिनका नाम सुरुची मिश्रा,पूनम पांडे ,ललीता तिवारी है। महान स्वतंत्रता सेनानी नरसिंह पाठक ने जिस प्रकार के समतामूलक राष्ट्र की परिकल्पना की थी जीते जी वैसा राष्ट्र तो उन्होंने नहीं देखा । जब तक वे रहे अपने परिकल्पना के राष्ट्र निर्माण के लिए हमेशा प्रयासरत रहे ।चंपारण और देश के लिए उन्होंने जो कुछ भी किया उनका कृतित्व हमेशा अमर रहेगा।