आपदा के समय बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव, डॉ. कुमार राका

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गया।दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय सीयूएसबी में आपदा जोखिम को कम करने और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में युवाओं को शामिल करने पर प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु आयोजित पांच-दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत चौथे दिन आपदा से जुड़े पहलुओं पर चर्चा की गई है । जन सम्पर्क पदाधिकारी पीआरओ मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह के संरक्षण में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान एनआईडीएम)श और सीयूएसबी के राष्ट्रीय सेवा योजना एनएसएस इकाई के संयुक्त तत्वावधान में इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को आयोजित किया गया है।इस कार्यक्रम समन्वयक डॉ. बुधेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि  चौथे दिन के औपचारिक उद्घाटन के पश्चात प्रथम सत्र में एनआईडीएम का प्रतिनिधित्व कर रहे डॉ. कुमार राका ने आपदा के समय बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में प्रतिभागियों के साथ चर्चा की है। अपनी चर्चा की शुरुआत उन्होंने बच्चों के मानसिक विकास से शुरू की जिसमें उन्होंने कहा कि बच्चों का मानसिक विकास पांच वर्ष की उम्र तक 90% तक हो जाता है। इसके साथ उन्होंने ये भी बताया कि बच्चों में ट्रामा अधिक होने की वजह उनका परिस्थितियों से पहली बार सामना होना है। जब बच्चे नई परिस्थिति या नए समस्याओं से गुजरते हैं तो यह उनमें तनाव पैदा करता है जो आगे चल कर ट्रॉमा में परिवर्तित हो सकता है। डॉ. राका ने बताया कि तनाव हमेशा नकारात्मक नहीं होता है तनाव का एक सकारात्मक रूप भी होता है पर अगर इस तनाव को भी समय रहते नहीं खत्म किया गया तो यह भी आगे चल कर समस्या उत्पन्न कर सकता है। उन्होंने तनाव के तीन स्तर, बुनियादी तनाव, संचयी तनाव और बर्न आउट तनाव बताए। उन्होंने बर्न आउट तनाव स्तर को खतरनाक बताया और बताया कि इस स्तर में लोगों में आत्महत्या की भावना सबसे प्रबल होती है। डॉ. राका ने यह भी बताया मानसिक तनाव से गुजरने वाले व्यक्ति को पहचानने के लिए प्रबल अवलोकन की जरूरत होती है । इसके साथ ही उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय मानसिक जांच एवं स्नायु विज्ञान संस्थान  साथ मिलकर आपदा के समय तनाव से ग्रस्त होने वाले बच्चों और वयस्कों के मानसिक स्वास्थ्य  के सुधार के लिए काम कर रही हैं।
सीसीडीआरआर सेंटर, एनआईडीएम के अनुभवी सलाहकार रंजन कुमार द्वारा आयोजित “युवाओं और किशोरों को शामिल करने और डीआरएम और सीसीए में उनकी भूमिका” पर अपने  विचार रखे हैं | बाल रक्षा भारत बीआरबी की प्रतिनिधि देबाद्रिता सेनगुप्ता के नेतृत्व में एक सत्र में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव स्वास्थ्य के बीच संबंध पर चर्चा की गई है। कार्यक्रम में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान एनआईडीएम, चाइल्ड राइट्स एंड यू क्राय और बाल रक्षा भारत की भूमिका अहम रही है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षकों को आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस करना है ताकि आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयासों में युवाओं और किशोरों को भागीदारी को अधिक-से-अधिक सुनिश्चित किया जा सके|
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