चंपारण के महान स्वतंत्रता सेनानी रामअवतार प्रसाद वर्मा

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अशोक कुमार वर्मा
स्वतंत्रता संग्राम में चंपारण के स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान की गाथा स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इनके त्याग, तपस्या और बलिदान की गाथा आज भी देश के विभिन्न भागों में विभिन्न अवसरों पर लोग  बड़े हीं गर्व और शान से  करते हैं। चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष 2017 मे भारत सरकार द्वारा देश भर में मनाए  गये चंपारण सत्याग्रह शताब्दी महोत्सव इस बात का गवाह है कि चंपारण के स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए जितनी कुर्बानी दी है वह अतुलनीय है।उनके त्याग और बलिदान की कथा आज भी गांवो में  बूढ़े बुजुर्ग लोग बड़े चाव से अपने वंशजो को सुनाते हैं।
 इसी श्रेणी में पश्चिमी चंपारण के भगडवा गांव निवासी रामअवतार प्रसाद वर्मा का नाम आता है ।आज भी लोग बड़े ही श्रद्धा से उनके त्याग और बलिदान की गाथा कहते हैं । मात्र 17 वर्ष की उम्र में रामअवतार प्रसाद वर्मा ने  देश को आजादी दिलाने के लिए  बहुत कुछ करने की ठानी।  19 17 में चंपारण की धरती पर महात्मा गांधी के आगमन  का असर यहां के नवयुवको पर काफी पड़ा था। भडगवा गांव से काफी निकट चनपटिया था, गांधी जी को चंपारण लानेवाले पंडित राजकुमार शुक्ल का आवास वहीं था ।चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी का भ्रमण संपूर्ण जिले में हुआ था।उस समय यहां के नवयुवकों में  गजब की जागृति आई थी, देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा उनमे आया था ।रामअवतार प्रसाद वर्मा अपने अल्प आयु में घर से बगावत कर  चुपचाप भागकर गोविंदगंज में संचालित ऋषि दल में शामिल हुए थे। उस समय रामर्षी देव ऋषि जी के नेतृत्व मे क्रांतिकारियों का एक बड़ा संगठन बना था जो अंग्रेजों से हर मौके पर टक्कर लेता था, उन्हें सबक सिखाता था। सरकारी कार्यालयों के ऊपर झंडा फहराना, अंग्रेजों के ऊपर छुपकर हमला करना यह तमाम ऋषि दल के आंदोलनकारी करते थे ।रामअवतार प्रसाद वर्मा भी  बड़े ही उत्साह और जोश के साथ आजादी की लडाई लड रहे थे।वे समयानुसार गुप्त भी हो जाते थे। इस बीच नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान 1932 में वे अपने साथियों के साथ गिरफ्तार किए गए। गिरफ्तारी की खबर जैसे ही उनके गांव उनके पिता सिद्धू लाल को मिली वे भागे- भागे गोविंदगंज आए ।उस दौर में कोई भी पुत्र अपने पिता के सामने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करता था। पिता को देखते ही रामअवतार बाबू सहम तो गये लेकिन चूकि उनके अंदर देश के लिए कुछ करने का जज्बा था इसलिए वे कुछ भी नहीं बोले। पिता ने उन्हें आदेश दिया कि माफी मांगो और घर चलो। उस समय ऐसा प्रावधान था कि कोई भी आंदोलनकारी अगर माफी मांग लेता था तो उन्हें छोड़ दिया जाता था, लेकिन रामअवतार वर्मा ने अद्भुत साहस का परिचय दिया और अपने पिता को स्पष्ट कहा कि मैं देश के लिए मर मिटने आया हूं ,अब वापस घर नहीं जाऊंगा ।पिता आग बबूला हो गए लेकिन  क्या करते  गुस्सा से आग बबूला होकर घर लौट आए । रामअवतार बाबू को पुलिस हथकड़ी लगाकर जेल भेजने के लिए  आगे बढी। उस समय उनका कद काठी बहुत दुबला पतला था ।हाथों से हथकड़ी निकल जाती थी, अंग्रेज पुलिस ने कहा कि जब हथकड़ी हाथ में निकल जा रही है तो बिना हथकड़ी का ही ले चलते हैं। रामअवतार बाबू ने इसका विरोध किया और कहा कि- नहीं मैं देश के लिए गिरफ्तार हुआ हूं और हथकड़ी के बिना मैं नहीं जाऊंगा। पुलिस वाले उस किशोर उम्र के लड़के के अंदर देशभक्ति का जज्बा देखकर हतप्रभ रह गयी।अंततः उसने हथकड़ी लगा करके उन्हें जेल ले गई। मोतिहारी कैंप जेल में रहने के बाद उनका हस्तांतरण भागलपुर जेल में हुआ और भागलपुर जेल से दो माह की सजा काट कर  वापस आए। उन्हें सश्रम कारावास की सजा हुई थी ।वापस आने के बाद  पुनः गोविंदगंज में ही आंदोलन मे सक्रिय  रहे ।कभी भूमिगत रहे कभी बाहर रहकर के अंग्रेजों से लोहा लेते रहे । इस कारण वे दोबारा गिरफ्तार हुये। इस बार  चार माह की सजा हुई। जेल से निकलने के बाद  लगातार आंदोलन में लग रहे और 1942 में भी काफी सक्रिय रहे। 1947 मे देश आजाद हुआ। आजादी के बाद वे स्वतंत्र भारत को नए रूप में सजाने में अपनी शक्ति और ऊर्जा  लगाए ।वे चरित्रवान और कर्मठ राष्ट्रवादी थे। बाद में गृहस्ती में चले गए और जीवन भर में खादी का वस्त्र ही धारण किए। उनको दो पुत्र और चार पुत्रियां हुई। बड़े पुत्र का नाम स्वर्गीय हृदेश कुमार वर्मा द्वितीय पुत्र अशोक कुमार वर्मा एवं चार पुत्रियों  में आशा शरण, रेखा श्रीवास्तव,शकुंतला सिन्हा  एवं गौरी  श्रीवास्तव है ।उनके सभी वंशजो मे  पिता का गुण समाहित रहा। उनके परिवार से आज तक किसी ने भी कोई गलत व्यवसाय या कार्य नहीं किया, सभी  ने राष्ट्र को सर्वोपरि माना। और आज  सभी अपने पिता  के परिकल्पना का राष्ट्र बनाने के लिए न सिर्फ कृत संकल्पित हैं बल्कि प्रयत्नशील भी है।1914 मे जन्मे रामअवतार बाबू 13 जुलाई 1978 मे इस दुनिया से समता मूलक राष्ट्र के स्वरुप को देखने की तमन्ना लिये चले गये। आज उनके वंशज अपने महान पिता के परिकल्पना को साकार मूर्त देने के लिये  संकल्पित और प्रयत्नशील  है।
रामअवतार बाबू का वर्तमान आवास मोतिहारी के मिस्कौट मुहल्ला  डा० अंजू वर्मा रोड मे है जो आज भी उस महान देश भक्त की गाथा को कह रहा है।
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