- खतरनाक गर्मी में राहत चलाना तो दूर बील में समा चुके हैं जनप्रतिनिधि
मोतिहारी : प्रकृति का तांडव आरंभ हो चुका है। ग्लेशियर का पिघलना, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और वैज्ञानिकों की चेतावनी को सरकार , जनप्रतिनिधि एवं जिला प्रशासन द्वारा लगातार अवहेलना की जा रही है।इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। मौसम विभाग एवं वैज्ञानिकों द्वारा जो घोषणायें की जाती है उसका उद्देश्य यह होता है कि आम जनता को सुरक्षित किया जा सके लेकिन प्रशासन इसे सिर्फ एक अखबारी बयान समझकर रूक जाती है , सुरक्षा का कोई उपाय या प्रबंध नहीं करती । पूरे जिले में अभी गर्मी चरम पर है, ऐसा लगता है कि शहर आग का भट्टी बन गया है।
अधिकतम तापमान 44 डिग्री तक चला गया है, गर्मी के चलते आम जनता का हाल बेहाल हो चुका है। वैसे स्कूल सभी बंद होने से थोड़ी राहत है लेकिन अब तक के रेकॉर्ड के अनुसार इस वर्ष की गर्मी ने तमाम रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। कभी सुबह ठंडी हवा बहती थी लेकिन इस वर्ष सुबह से हीं हवा गर्म हो जा रही है । 10:00 बजे के बाद घर से बाहर निकालना मानो मौत को निमंत्रण देने समान हो चुका है।कुछ स्वयंसेवी संगठनों द्वारा नगर में पेयजल की व्यवस्था की गई है लेकिन अभी तक प्रशासनिक स्तर पर कहीं भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है ।सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में नगर भवन से लेकर स्टेशन तक रोड के दोनों तरफ घने पेड़ लगाए थे जिससे आम यात्रियों को राहत मिलती थी। मीना बाजार से छांव मे लोग आसानी से ट्रेन पकड़ने स्टेशन जाते थे ।धीरे-धीरे शहर का स्वरूप बदलता गया। दुकानें बढ़ती गई तथा दुकानों के सामने जो भी पेड़ पड़े उन पेड़ों के जड़ में गुप्त रूप से प्रतिदिन डीजल गिरा कर उसे सुखा दिया गया। जिला प्रशासन ने नीलाम कर उन पेड़ों को कटवा लिया । आज स्थिति यह है कि पूरे शहर में ना तो कहीं स्थाई प्याऊ की व्यवस्था है न हीं किसी को गर्मी में कुछ देर बैठ कर सुस्ताने की व्यवस्था की गई है। दुकानदारो के रहमो करम पर वे चंद मिनट रुकते हैं लेकिन सरकारी स्तर पर कहीं भी कोई राहत कार्य नहीं हो रहा है । हां, गर्मी से अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो नेताओं का जमावड़ा शुरू हो जाएगा और मुआवजा की राशि उसे दे दी जाएगी।
शहर के बीचो-बीच सुभाष पार्क बना हुआ है लेकिन उसे भी निजी नर्सरी वाले को दे दिया गया है, उस पार्क में पहले एक बड़ा सा सेड था जिसके अंदर काफी लोग बैठकर आराम फरमाते थे। दूरदराज से आए हुए लोग दिन मे उसमें सोते भी थे। उस पार्क में अभी भी किनारे-किनारे यात्रियों के लिए शेड का निर्माण किया जा सकता है। इसके साथ-साथ अस्पताल रोड में शौर्य स्तंभ पार्क , पेंशनर भवन है जिसके पास काभी खाली जमीन हैं, अस्पताल रोड में डा श्रीकृष्ण की मूर्ति के पास भी काफी खाली जमीन है, टाउन थाना के पास कर्पूरी ठाकुर की मूर्ति के पास , चरखा पार्क के पास भी ठहराव स्थल के लिए काफी खाली जमीन पड़ी हुई। इन स्थलों को जनहीत मे यात्री ठहराव एवं ठंडा पेयजल की व्यवस्था प्रशासनिक स्तर पर स्थाई रुप मे की जा सकती है। कुल मिलाकर जिला प्रशासन द्वारा यात्रियों को बैठने की कहीं भी समुचित व्यवस्था आज तक नहीं की गई है। प्रशासन सिर्फ मुआवजा देने में आगे है, लेकिन व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि मुआवजा देने की नौबत ही नहीं आवे ।इस गर्मी मे कहीं भी कभी भी कोई अप्रिय घटना घट सकती है ।चलते-चलते गर्मी से लोग गिर सकते हैं और मौत के आगोश में समा सकते हैं। शहर का तापमान इतना ऊंचा हो चुका है कि आम लोगों का बदन झुलस रहा है। सबसे बुरा हाल रिक्शा ,तांगा, ठेला चालकों और मजदूरो का है वे पेड़ की तलाश मे रहते हैं जहां थोड़ी देर रुक कर सुस्ता सके।
अपने को गरीब मजदूरों के रहनुमा समझने वाले दल के लोग भी इस प्राकृतिक आपदा में कहीं नजर नहीं आ रहे है। कुछ व्यापारिक एवं सामाजिक संगठन के लोग ही अपने दरियादिली का एहसास करा रहे हैं।