- भारतीय नारी की संपूर्ण स्वरूप थी मम्मा- :
- यज्ञ माता मम्मा मातेश्वरी गुणों की खान थी
- ब्रह्मा बाप समान उनमें निरंहकारिता का पाठ पक्का था
- 28 वर्षों के साकार यज्ञ पालना में मम्मा के चेहरे पर जरा भी गुस्सा नहीं आया
- अपने विशेष दिव्य गुणों के कारण 17 वर्ष की कुंवारी कन्या यज्ञ माता बन गई
- मम्मा का स्लोगन था- हुकुमी हुकुम चला रहा है और हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझो
बीके अशोक वर्मा
ड्रामा अनुसार पांच हजार वर्ष का सृष्टि चक्र जब गिरती कला के अंतिम दौर में प्रवेश किया तब परमपिता परमात्मा शिव बाबा गीता ग्रंथ में बताए अपने निर्धारित समय 1936 में अविनाशी खंड भारत की भूमि पर अवतरित हुए।उन्होंने एक अति धर्म परायण हीरे जवाहरात के व्यापारी दादा लेखराज के तन का आधार लेकर नई दुनिया निर्माण हेतू उनको निमित्त बनाया।शिवबाबा ने उनका नया नाम ब्रह्मा रखा। ब्रह्मा बाबा ने अखंड भारत के अलावा विश्व के विभिन्न देशों में बिखरे पड़े विशेष आत्माओं को अडॉप्ट किया और नई दुनिया निर्माण कार्य को गति दी।
शिव बाबा द्वारा स्थापित अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ में धीरे-धीरे काफी आत्मायें आ गए ।इस बीच यज्ञ वत्सो की पालना हेतु 17 वर्षीय राधे नाम की कन्या की प्रवेशता यज्ञ में हुई। बाबा ने राधे नाम की उस कन्या को देखते हीं समझ लिया कि यह कृष्ण की वही राधे है। राधे आते हीं अपने विशेष गुणों के कारण यज्ञ माता बन गई। वे ओम का उच्चारण विशेष प्रतिकम्पन युक्त ध्वनि के साथ करती थी । उच्चारण के साथ ही कई भाई बहन योग में चले जाते थे, सुध- बुध खो देते थे । मम्मा के इस विशेष ध्वनि को सुन काफी लोग प्रभावित हुए। राधे लगातार बाबा के सत्संग में आने लगी ।उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। लोगों ने इस बात को तेजी से फैलाया कि सत्संग में ऐसी कन्या आई है जिसके ओम की ध्वनि में जादू है। फिर तो उस जादू में खींचे हुए काफी लोग आने लगे। इस बीच राधे के परिवार वालों ने राधे की शादी की चर्चा करने लगे। यह बात बाबा के कानों में आई ।एक दिन ब्रह्मा बाबा ने राधे से पूछा कि क्या तुम सूट-बूट वालों के साथ जाओगी या उस पितांबर धारी के साथ रहोगी? उन्होंने राधे को 24 घंटे का समय दिया। लेकिन राधे ने बिना एक पल गंवाए तत्क्षण जवाब दिया कि बाबा मैं उस पितांबरधारी की राधे हूं ,मैं सूट-बूट वालों के साथ नहीं जाऊंगी । इस तरह से राधे यज्ञ में समर्पित हुई।राधे की पालना में यज्ञ के भाई बहनो का पुरुषार्थ काफी बढ़ने लगा। 17 वर्ष की राधे देखते-देखते यज्ञ माता बन गई। सभी उन्हें मम्मा कह कर पुकारने लगे ।यहां तक कि ब्रह्मा बाबा एवं उनकी युगल यशोदा माता भी राधे को मम्मा कह कर पुकारने लगे।
मम्मा को शिव बाबा का विशेष वरदान प्राप्त था । शिव बाबा ने पतित दुनिया को पावन बनाने हेतु ब्रह्मा बाबा के तन का आधार लिया था। समर्पण के बाद यज्ञ माता के रूप में राधे की भूमिका अपने स्वरूप में आ गई । यज्ञ में समर्पित लगभग चार सौ भाई बहनों की पालना की जिम्मेदारी मातेश्वरी मम्मा पर थी।अपने विशेष गुणों के कारण मम्मा शिव बाबा द्वारा स्थापित यज्ञ की पालना करने लगी। मम्मा में जो सबसे बड़ी विशेषता थी वह यह कि जिस तन का आधार शिव बाबा ने लिया उस ब्रह्माबाबा पर उन्हें पूरा निश्चय और विश्वास था। मम्मा ने हमेशा हां -जी का पाठ बजाया। बाबा के हर बात को उन्होंने शिरोधार्य कर ,उस पर चला। मम्मा पूरी तरह से बाबा की प्रतिमूर्ति थी । हर कदम पर उन्होंने बाबा के अंदर बैठे शिव बाबा को देखा। ड्रामा प्लेन अनुसार यज्ञ में विघ्न भी पडे। मम्मा हमेशा अटल रही। विरोधी उनके समक्ष आते आते उनके अंदर दुर्गा मां के स्वरूप का साक्षात्कार करने लगते थे ।वे मां -मां कह कर पुकारने लगते थे।सोना जैसा पात्र बन मम्मा ईश्वरीय शक्ति से भरपूर होती गई , उन शक्तियों को मम्मा ब्रह्मा बच्चों के बीच बांटती रही। धीरे-धीरे मम्मा गुणों की खान बन गई।मम्मा एक वैसी नारी के स्वरूप में आई जिसे भारत माता और वंदे मातरम कहा जाता है।
ब्रह्मा वत्सो को बाबा ने जो लक्ष्य दिया उसमें नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनने का था। मम्मा लक्ष्मी और बाबा नारायण के स्वरूप थे ।वास्तव में शिव बाबा ने भाई के रूप में ब्रह्म बाबा और बहन के रूप में राधे मम्मा को दुनिया के समक्ष एक उदाहरण के रूप में पेश किया । इन दोनों से ही नई दुनिया आरंभ होने वाली थी इसलिए बेदाग हीरा के रूप में दोनो को साकार रूप में दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया,कि तुम्हें भी ऐसा हीं बनना है। यज्ञ की बड़ी मां ब्रह्मा बाबा और छोटी मां मम्मा बनी। मम्मा में बाबा समान निरंहकारिता का पाठ पक्का था। जिस भारतीय संस्कृति एवं देवी गुणों की बातें आज भी विभिन्न मंचों से लोग करते हैं ,उस संस्कृति की शुरुआत बाबा और मम्मा के स्वरूप में हर कल्प में हुआ है।
बाबा ने उस तमाम ईश्वरीय शक्तियों को मम्मा के अंदर समाहित कर दी जिसके बदौलत भारत अपने अभी स्वरूप में आ सकता था ।मम्मा दया ,ममता ,करुणा ,क्षमा की प्रतिमूर्ति थी ।मम्मा का आंचल और प्यार की छतरी ने यज्ञ के बच्चों को शक्तियों से भरपूर किया।बच्चो में सतयुगी नई दुनिया के संस्कार को मम्मा ने भरा, ज्ञान गुणों से संपन्न कर उन्हें सजाया ,संवारा और शक्ति संपन्न किया। मम्मा का मुख्य स्लोगन था “हुकुमी हुकुम चला रहा है” और “हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझो”
17 वर्ष की उम्र में 1937 में यज्ञ में समर्पित जगदंबा सरस्वती मम्मा ने महज 45 वर्ष की उम्र में संपूर्णता को प्राप्त कर 24 जून 1965 को शरीर छोड़ा।
मम्मा की पालना में यज्ञ के समर्पित भाई बहनों ने भारत का यह ईश्वरीय ज्ञान पूरे विश्व भर में फैलाया। परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने ब्रह्मा तन का आधार लेकर और यज्ञ माता जगदम्बा सरस्वती की पालना में जिस सतयुगी नई दुनिया का कलम लगाया, आज वह कलम पूरे विश्व में वट वृक्ष का आकार ले चुका है। विश्व के 145 देशों में भारत का यह विशेष अध्यात्मिक ज्ञान फैल चुका है। मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का कार्य संस्था के 60,000 समर्पित भाई बहनों के द्वारा किया जा रहा है।
अविनाशी खंड भारत की भूमि पर ही परमपिता परमात्मा शिव बाबा का अवतरण प्रत्येक 5000 वर्ष के अंतराल पर होता है ,और उनके अवतरण के बाद शिव शक्ति नारी को उसका खोया सम्मान मिलता हैं ,आज परिवर्तन की वेला में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रपति के पद पर नारी शक्ति ब्रह्मा कुमारी द्रोपदी मुर्मु आसीन है। 1981 के ईश्वरीय महा वाक्य दैनिक मुरली में बाबा ने कहा था कि राष्ट्रपति भवन आप ब्रह्मा वतसो का घर होगा। 2022 में मुरली मैं कहीं बात सत्य साबित हुई ।आज द्रोपति मुर्मू जी राष्ट्रपति भवन को परिवर्तित कर दिया ।वहां ध्यान योग एवं शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था है।
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