अशोक वर्मा
मोतिहारी : विगत कई वर्षों से जब गर्मी बढती है तब बिहार सरकार पारंपरिक जल भंडारण स्थलों की सुधि लेने निकलती है।खोज में मुख्य रूप से कुआं ,बंद पड़े चापाकल ,छोटे- छोटे तालाब, चवर आदि के गड्ढेऔर सरकारी जमीन आदि होते है । इस वर्ष भी सरकार पुनः उन आपदा स्रोतों को खोज रही है और जल भंडारण के लिए लगातार घोषणाये जारी कर रही है। सरकार की इन बातों पर प्रदेश की जनता सिर्फ मुस्कुराती है और उस दोहे को याद करती है आग लगे तो कुआं खोदे —।
प्रदेश की जो स्थिति है वह किसी से छुपी हुई नहीं है। चारों तरफ लूट का बाजार गर्म है सरकारी स्कीमों में जमकर धन उगाही, कमीशन खोरी जारी ही नहीं है बल्कि दिनों दिन बढ़ती जा रही है। निर्माण के साथ हीं पुल, भवन एवं रोड आदि ध्वस्त हो रहे हैं। कई नवनिर्मित नालो से पानी उल्टी दिशा की ओर बह रही है। तमाम दृश्य को बिहार की जनता भककू और तककू बनकर देख रही है। संघर्ष को अपने राजनीतिक दल का आधार बनाने वाले लोग भी ऐसा लगता है हार थक कर बैठ गए है।
जिस सरकार में बिहार के लगभग तमाम नाले जाम हो चुके हैं ,जल बहाव रुका हुआ है, हल्की बरसात में सड़कों पर नाली के पानी बहते हुए लोग देखते हैं, अब तो ऐसा लगता है कि मानो लोग निराश हो चुके हैं। कहीं-कहीं अगर आंदोलन हो भी रहे हैं तो सिर्फ अखबार छपाउ या फैशनेबल आंदोलन बन करके हीं रह जा रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि आंदोलन की औपचारिकता भर हो रही है तो कोई गलत नहीं होगा।
धीमी गति से होने वाले सरकारी विकास कार्य तथा अखबारी बयान बाजी से सस्ती लोकप्रियता लेने वाले सरकार के लोगों के पास शर्म नाम की कोई चीज नहीं बच गई है।पूरा विश्व गर्मी से जूझ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, मौसम वैज्ञानिक बराबर चेतावनी दे रहे हैं और अभी बिहार में 44-45 डिग्री टेंपरेचर चल रहा है ,जल स्रोत लगातार नीचे जा रहे हैं आम लोग काफी कष्ट में जी रहे है, सरकारी स्तर पर कहीं भी पेयजल की व्यवस्था नही है, ग्रामीण क्षेत्र में तो बिल्कुल हीं नही है। हां ,कहीं-कहीं नल जल योजना के टूटे हुए पाइप से पानी का बहाव सड़कों पर हो रहा है जिसे लोग देखते हैं और इस तपती धूप में सड़क पर पानी देखकर कुछ सुकून होता है लेकिन वह व्यर्थ में बहाये जाने वाले पानी है जो सरकारी कार्य के खोखले पन को उजागर कर रहा है। भले ही सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन पूरे बिहार में नल जल योजना फ्लॉप हो चुका है।
प्रत्येक वर्ष सरकार गर्मी के दिनों में घोषणा करती है कि जितने भी पारंपरिक जल स्रोत है उनकी स्थिति ठीक की जाएगी ,जितने भी बंद कुएं है सब का उड़ाही कराकर उन्हें चालू किया जाएगा। छोटे छोटे तलाब चवर आदि के गड्ढों में भी पानी भंडारण की व्यवस्था की जाएगी ताकि पशुओं को कोई कष्ट नहीं हो और किसान को भी पटवन के काम में वह पानी आ सके। लेकिन यह घोषणा सिर्फ घोषणा भर हीं रहती है ,कहीं से भी जमीन पर काम दिखता नही है ।सारे कुएं जो सरकारी है, लोगों ने हड़प लिये है। कुछ का तो अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है और कुछ ज़ो ज़रा दिख पाता है। कुछ दिनों तक तो लोगों ने उसको कूड़ेदान के रूप में इस्तेमाल किया ,लेकिन वर्तमान समय में वे अब पुरी तरह से भर चुके हैं ।और सिर्फ शोभा का वस्तु बनकर रह गये है।गांव से लेकर शहरों में काफी संख्या में ऐसे बंद कुंये बेकार पड़े हुए हैं। अगर सरकार सिर्फ उनको ही चालू कर दें तो बहुत हद तक समस्या दूर हो सकती है ।पारंपरिक पानी निकालने का जो तरीका था उसको आधुनिक सवरूप दिया जा सकता है। हरेक कुआं पर एक मोटर लगाकर पानी निकासी की व्यवस्था की जा सकती है ,लेकिन करेगा कौन? भ्रष्टाचार मे कंठ तक डूबे हुए सरकारी कर्मियों को सेवा से कोई मतलब नहीं है ।स्थिति नाजुक है ।
गर्मी दिनों दिन बढ़ रही है, पानी का लेवल नीचे जा रहा है ,पशुओं को नाली के पानी को पीते हुए देखा जा रहा है।संपन्न लोग घर में बोरिंग लगाए हुए हैं लेकिन पानी का लेवल काफी नीचे जाने से जो टंकी दो घंटे में भरती थी अभी 4 घंटे का समय लग रहा है, बिजली की खपत बढ़ गई है। व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो चुकी है। जैसे हीं बरसात शुरू होगी फिर सरकारी जल भंडारण की घोषणा ठंडे वस्ते मे चली जाएगी और फिर वही ढाक के तीन पात ।विकास धरातल पर नहीं उतर पाएगा ,यही स्थिति है बिहार की। लोगों का कष्ट जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है, सरकार के लोगों की मुस्कुराहट बढती जा रही है,क्योंकि राहत की सरकारी दरिया बहेगी,पून: लूट और कमिशन के धन का अकूत भंडारण होगा। उनके लिए प्राकृतिक आपदा तो धन का अवसर लेकर आती है। पानी सूखे या न सूखे कोई फर्क नहीं पड़ता है ,मारी जा रही है गरीब जनता।
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